राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय करने वाला सुप्रीम कोर्ट का निर्णय प्रश्नों के घेरे में

राष्ट्रपति के लिए समय सीमा तय करने वाला सुप्रीम कोर्ट का निर्णय प्रश्नों के घेरे में
नई दिल्ली। उप-राष्ट्रपति आवास में राज्यसभा प्रशिक्षुओं के छठे बैच को संबोधित करते हुए उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रपति के लिए विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा निर्धारित करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय पर प्रश्न उठाया। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति नहीं हो सकती कि न्यायालय, देश के राष्ट्रपति को निर्देश दे। सर्वोच्च न्यायालय केवल संविधान की व्याख्या कर सकता है। उन्होंने कहा कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यकारी कार्य करेंगे और सुपर संसद के रूप में भी कार्य करेंगे। सत्ता का प्रयोग करते समय अत्यंत संवेदनशील होने की आवश्यकता है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे जीवन में मुझे कुछ ऐसा देखने को मिलेगा। भारत के राष्ट्रपति का दर्जा बहुत ऊंचा होता है। राष्ट्रपति संविधान की रक्षा, सुरक्षा और बचाव की शपथ लेते हैं। यह शपथ केवल राष्ट्रपति और उनके द्वारा नियुक्त राज्यपाल ही लेते हैं। प्रधानमंत्री, उप-राष्ट्रपति, मंत्री, सांसद, न्यायाधीश, संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं। लेकिन संविधान की रक्षा करने, संविधान को बनाए रखने की शपथ भारत के राष्ट्रपति लेते हैं। वे सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर हैं।
उन्होंने कहा, हाल ही के एक निर्णय के अनुसार राष्ट्रपति को भी निर्देशित किया जा रहा है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है? हमें बेहद संवेदनशील होना पड़ेगा। यह प्रश्न किसी के पुनर्विचार याचिका करने या न करने का नहीं है। हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र की कभी कल्पना नहीं की थी। राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा जाता है और यदि ऐसा नहीं होता है, तो यह कानून बन जाता है। तो हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं, जो कानून बनाएंगे, जो कार्यकारी कार्य करेंगे, जो सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि देश का कानून उन पर लागू ही नहीं होता।
दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के आवास से कथित तौर पर नकदी बरामद होने की हाल की घटना के बारे में उप-राष्ट्रपति ने कहा कि इस मामले में गहराई तक जाने की आवश्यकता है। एक न्यायाधीश के आवास पर एक घटना घटी, सात दिनों तक किसी को इसकी जानकारी नहीं थी। हमें स्वयं से प्रश्न पूछने होंगे। क्या देरी का कारण समझ में आता है? क्या यह क्षमा योग्य है? क्या इससे कुछ बुनियादी प्रश्न नहीं उठते? अब देश प्रतीक्षा कर रहा है, क्योंकि हमारी एक संस्था जिसे लोग हमेशा सर्वोच्च सम्मान और आदर से देखते हैं, उसे कटघरे में खड़ा किया गया है। एक महीने से अधिक समय हो गया है, अब इसे सबके सामने आने दें।
एक लोकतांत्रिक राष्ट्र में आपराधिक न्याय प्रणाली की शुद्धता उसकी दिशा निर्धारित करती है और जांच की आवश्यकता होती है। इस समय कानून के अंतर्गत कोई जांच नहीं चल रही है, क्योंकि आपराधिक जांच के लिए प्राथमिकी दर्ज किए जाने से शुरुआत होनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है। यह देश का कानून है कि हर संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट पुलिस को देनी होती है और संज्ञेय अपराध की रिपोर्ट न करना अपराध है।
इस देश में किसी के भी विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है, चाहे वह संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति ही क्यों न हो। इसके लिए केवल शासन को सक्रिय करना होता है, किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन अगर न्यायाधीश हैं, तो उनकी श्रेणी की प्राथमिकी शासन के माध्यम से दर्ज नहीं की जा सकती। इसके लिए न्यायपालिका में संबंधित शीर्ष पदासीन द्वारा अनुमोदन की आवश्यकता होती है। लेकिन संविधान में ऐसा उल्लेखित नहीं है। भारतीय संविधान ने केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को ही अभियोजन से प्रतिरक्षा प्रदान की है, तो कानून से परे एक श्रेणी को यह प्रतिरक्षा कैसे प्राप्त हो गई?