अविचल भाव से लगातार आगे बढ़ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

अविचल भाव से लगातार आगे बढ़ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

लोकेंद्र सिंह

अविचल भाव से लगातार आगे बढ़ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में विजयादशमी के दिन शुभ संकल्प के साथ एक छोटा बीज बोया था, जो आज विशाल वटवृक्ष बन चुका है। दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक-सामाजिक संगठन के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमारे सामने है। नन्हें कदम से शुरू हुई संघ की यात्रा समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पहुँची है। न केवल पहुँची है, बल्कि उसने प्रत्येक क्षेत्र में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है। ऐसे अनेक क्षेत्र हैं, जहाँ संघ की पहुँच न केवल कठिन थी, बल्कि असंभव मानी जाती थी। किंतु, आज उन क्षेत्रों में भी संघ नेतृत्व की भूमिका में है। बीज से वटवृक्ष बनने की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यात्रा आसान कदापि नहीं रही है। सन् 1925 में जिस जमीन पर संघ का बीज बोया गया था, वह उपजाऊ कतई नहीं थी। जिस वातावरण में बीज का अंकुरण होना था, वह भी अनुकूल नहीं था। किंतु, डॉक्टर हेडगेवार को आशा थी कि भले ही जमीन ऊपर से बंजर दिख रही है, पंरतु उसके भीतर जीवन है। जब माली अच्छा हो और बीज में जीवटता हो, तो प्रतिकूल वातावरण भी उसके विकास में बाधा नहीं बन पाता है। अनेक व्यक्तियों, विचारों और संस्थाओं ने संघ को जड़ से उखाड़ फेंकने के प्रयास किए, किंतु उनके सब षड्यंत्र विफल हुए। क्योंकि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जड़ों के विस्तार को समझने में वह हमेशा भूल करते रहे। आज भी स्थिति कमोबेश वैसी ही है। आज भी अनेक लोग संघ को राजनीतिक चश्मे से ही देखने की कोशिश करते हैं। पिछले 96 बरस में इन लोगों ने अपना चश्मा नहीं बदला है। इसी कारण यह संघ के विराट स्वरूप का दर्शन करने में असमर्थ रहते हैं। जबकि संघ इस लंबी यात्रा में समय के साथ सामंजस्य बैठाता रहा और अपनी यात्रा को दसों दिशाओं में लेकर गया।

संघ के स्वयंसेवक एक गीत गाते हैं – ‘दसों दिशाओं में जाएं, दल बादल से छा जाएं, उमड़-घुमड़ कर हर धरती पर नंदनवन-सा लहराएं।’ इसके साथ ही संघ में कहा जाता है – ‘संघ कुछ नहीं करेगा और संघ का स्वयंसेवक कुछ नहीं छोड़ेगा।’ इस गीत और कथन, दोनों का अभिप्राय स्पष्ट है कि संघ के स्वयंसेवक प्रत्येक क्षेत्र में जाएंगे और उसे भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के साथ समृद्ध करने का प्रयत्न करेंगे। संघ का मूल कार्य शाखा के माध्यम से संस्कारित और ध्येयनिष्ठ नागरिक तैयार करना है। अपनी स्थापना के पहले दिन से संघ यही कार्य कर रहा है। यह ध्येयनिष्ठ स्वयंसेवक ही प्रत्येक क्षेत्र में संघ के विचार को लेकर पहुँचे हैं और वहाँ उन्होंने संघ की प्रेरणा से समविचारी संगठन खड़े किए हैं। आज की स्थिति में समाज जीवन का कोई भी क्षेत्र संघ के स्वयंसेवकों ने खाली नहीं छोड़ा है। संघ से प्रेरणा प्राप्त समविचारी संगठन प्रत्येक क्षेत्र में राष्ट्रीय हितों का संरक्षण करते हुए सकारात्मक परिवर्तन के ध्वज वाहक बने हुए हैं। शिक्षा, कला, फिल्म, साहित्य, संस्कृति, खेल, उद्योग, विज्ञान, आर्थिक क्षेत्र सहित मजदूर, इंजीनियर, डॉक्टर, प्राध्यापक, किसान, वनवासी इत्यादि वर्ग के बीच में भी संघ के समविचारी संगठन प्रामाणिकता से कार्य कर रहे हैं।

मैंने पहली बार ‘संघ दर्शन’ विद्यालय के दिनों में देखी। मैं जवाहर कॉलोनी, ग्वालियर में स्थित बाल सदन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में 9वीं कक्षा का विद्यार्थी था। अपने घर से पैदल ही विद्यालय जाता था। उस समय पहली बार जवाहर कॉलोनी के पार्क में शाखा लगते देखी। पार्क में बच्चे, युवक और कुछ प्रौढ़ लोग खाकी नेकर पहन कर खेल, योग और व्यायाम कर रहे थे। प्रतिदिन उन सबको देखकर अच्छा लगता था। सब मिलकर, अनुशासित होकर, सुबह-सुबह व्यायाम करते हैं. पार्क को भी साफ-सुथरा और हरा-भरा रखते हैं। हालांकि, उस समय किसी ने मुझे नहीं बताया कि ये आरएसएस की शाखा है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संबंध में मेरी बुनियादी समझ बनाने का काम किया, मेरे गुरुवर तीर्थरूप श्री सुरेश चित्रांशी ने। उन्होंने कुछ पुस्तकें मुझे दीं और कहा कि ये पुस्तकें संघ को समझने में तुम्हारी सहायता करेंगी। पुस्तकें पढ़ने के बाद जब मैं उन्हें लौटाने गया, तब उन्होंने कहा कि संघ एक विचार है। इसके तत्व को समझना आवश्यक है। संघ को कभी व्यक्तियों के आधार पर नहीं समझना। यद्यपि संघ और उसकी शाखा को व्यक्ति निर्माण का केंद्र कहा जाता है। कोई भी संगठन अपने कार्यकर्ताओं के आचरण के आधार पर ही समाज जीवन में अभिव्यक्त होता है। तब भी व्यक्ति तो स्खलनशील होता है. कभी-कभी श्रेष्ठ आचरण करने वाले लोग भी विकार की चपेट में आ जाते हैं। इसलिए संघ से जुडऩा हो या उसे समझना हो, तब उसके तत्व से जुड़ो। उनके सान्निध्य में आने के बाद मेरे समाज जीवन की भी शुरुआत हुई। मैंने सेवा भारती के माध्यम से गरीब और पिछड़ी बस्तियों में शिक्षा-संस्कार केंद्र पर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। उसके बाद ही संघ को, उसके कार्यों के आधार पर अनुभव करना शुरू किया।

जब कुछ लेखक और नेता संघ के संबंध में मिथ्या प्रचार करते हैं, तब मेरे जैसे लोग चकित हो उठते हैं। हमारे जीवन में संघ किसी और रूप में उपस्थित रहता है, जबकि आरएसएस विरोधी ताकतों द्वारा मीडिया में संघ की छवि किसी और रूप में प्रस्तुत की जाती है। हम हैरान रह जाते हैं कि जिस तरह का दुष्प्रचार ये लोग कर रहे हैं, वैसी अनुभूति तो अपने मन को कभी भी नहीं हुई। मुझे हैरानी यह भी होती थी कि संघ इस प्रकार के दुष्प्रचार का खंडन क्यों नहीं करता? मैंने जब भी यह प्रश्न किसी वरिष्ठ कार्यकर्ता या प्रचारक से पूछा तो, लगभग हर बार उनका उत्तर इसी तरह का होता था कि इनके दोषारोपण करने से क्या होगा? समाज तो प्रत्यक्ष संघ की अनुभूति करता है। बड़े से बड़े हमले संघ पर किये जा चुके हैं, जिन्हें समाज ने सदैव ही अस्वीकार कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समर्थन किया है। इसलिए इनके मिथ्या प्रचार के खंडन में ऊर्जा खत्म करने की आवश्यकता नहीं। हम देखते हैं कि संघ ने लंबे समय तक अपने विरुद्ध होने वाले नाना प्रकार के दुष्प्रचार का खण्डन नहीं किया। अब भी बहुत आवश्यकता होने पर ही संघ अपना पक्ष रखता है। दरअसल, इसके पीछे संघ का यह विचार रहा- “कथनी नहीं, व्यवहार से स्वयं को समाज के समक्ष प्रस्तुत करो”। विजयदशमी, 1925 से अब तक संघ के स्वयंसेवकों ने यही किया। परिणामस्वरूप सुनियोजित विरोध, कुप्रचार और षड्यंत्रों के बाद भी संघ अपने ध्येय पथ पर बढ़ता रहा।

जब भी संघ को जानने या समझने का प्रश्न आता है, तब वरिष्ठ प्रचारक यही कहते हैं – “संघ को समझना है, तो शाखा में आना होगा” अर्थात् शाखा आए बिना संघ को नहीं समझा जा सकता। यह बात सही है। परंतु, अब आरएसएस के संबंध में बुनियादी जानकारी प्राप्त करने एवं प्रारंभिक समझ बनाने के लिए द्वितीयक स्रोत भी उपलब्ध हैं। राजनीतिक और वैचारिक दुष्प्रचार से बने नकारात्मक वातावरण को पीछे छोड़कर अब लेखक एवं पत्रकार संघ पर प्रमाणिक लेखन कर रहे हैं। संघ के कार्यकर्ताओं ने भी अच्छी पुस्तकों की रचना की है। इन सबकी सहायता से भी हम संघ के दर्शन कर सकते हैं। हालांकि, इस तरह का ‘संघ दर्शन’ ठीक वैसा ही होता है, जैसा किसी देवालय में विराजमान देव प्रतिमा की जगह राह चलते  या अपने ठिकाने से ‘मंदिर का शिखर दर्शन’ करना। संघ की वास्तविक प्रतिमा का दर्शन तो ‘संघ में आकर’ ही किया जा सकता है।

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