रोटी तुम्हें वही खानी है
अंधकार गहरा है
श्वासों पर तम का पहरा है
आओ साथी, कुछ दीप जला लें।
मंजिल बहुत दूर है पंथी
पर चलना तुझको अकेला है
पग पग पर छलनायें हैं
रम्भाओं का मेला है।
लक्ष्मण तुमको छलने कोई
रावण भगिनी आएगी
सत्ता प्रभुता और वैभव के
कुछ इंद्रजाल फैलाएगी।
चमकीले दर्पण के नीचे
कूप यहाँ पर गहरा है
स्वाति की बूंदों से साथी
अपने मन का दीप सजा ले।
नेह चुके, घट सब रीते
कण कण बाती जल जाये
तन की आस भले ही छूटे
पर मन की श्वास न बुझ पाए।
पवन झकोरे, लौ कम्पित हो
प्राण ज्योति पर तम गहराए
तरुण तुम्हारी अंजलि तब
कवच दीप का बन जाये।
हर प्रकाश के तल में राही
छल का तम गहरा है
आओ साथी हम सूरज सा
एक दीप बना लें।
रोटी तुम्हें वही खानी है
जिस पर खूनी दाग न हो
धुली पसीने से हो
पर, किसी पेट की आग न हो।
श्रम सीकर से रोज़ नहाकर
करना कामदेव का वंदन
शील तुम्हारा मलय पवन हो
हो चरित्र तुम्हारा चंदन।
देखो जोंकों का पहरा है
चारो ओर पंक गहरा है
आओ साथी, हम पंकज सा रूप बना लें।
संचालिका
सुन्दर
Beautiful. Very well written. Some words are difficult. Will try to understand.