लव जिहाद: प्रेम की आड़ में मतांतरण की साजिश
मेघराज खत्री
लव जिहाद के मामले देश भर से लगभग प्रतिदिन ही प्रकाश में आ रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार जानकारी में आने वाले मामले केवल 10% ही हैं, शेष मामले परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा तथा युवतियों के भविष्य की चिंता को लेकर प्रकाश में ही नहीं आते हैं। समय, स्थान, लड़की-परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के अनुसार इन मामलों का स्वरूप बदलता रहता है। एक बात जो सब मामलों में समान रूप से पाई जाती है, वह है अपनी पहचान और धर्म छिपाकर सोशल मीडिया के माध्यम से युवती को दोस्ती के लिए प्रेरित करना, धीरे- धीरे प्रेम जाल में फंसाना, ब्रेनवाश कर घर से भागने के लिए तैयार करना, शादी अथवा बिना शादी के शारीरिक संबंध स्थापित करना, इन अंतरंग पलों के आपत्तिजनक फोटो-वीडियो बना निरंतर शारीरिक शोषण तथा मतांतरण के लिए ब्लैकमेल करना।
यह सामाजिक बीमारी भारत के सबसे शिक्षित प्रांत केरल से शुरू हुई और धीरे-धीरे कर्नाटक, तमिलनाडु होते हुए आज पूरे देश में फैल चुकी है। समाचारों के अनुसार 2009 से 2014 के बीच केरल में 4000 लड़कियां गायब हो गईं। हिंदू जनजागृति समिति के अनुसार कर्नाटक में 30,000 लड़कियां लव जिहाद की शिकार हुईं। राजस्थान में पिछले दो माह में लव जिहाद के पांच मामले प्रकाश में आए हैं। देश भर में चर्चित केरल के हदिया मामले की सुनवाई करते हुए वहां के हाईकोर्ट ने स्वीकार किया था कि अकेले केरल में 4000 से अधिक लव जिहाद तथा मतांतरण के मामले हैं। इसी मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने लव जिहाद मामले की जांच एनआईए से करवाने के आदेश दिए थे। इस मामले का जिक्र इसलिए समयोचित है ताकि हमें यह समझ में आ सके कि यह कोई अकेले मामले नहीं होते हैं, बल्कि इनके पीछे राष्ट्रविरोधी कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन काम कर रहे हैं, जिन्हें ऐसे कामों के लिए अथाह पैसा तथा मजहबी समर्थन प्राप्त है। इस मामले में मुस्लिम लड़के के समर्थन में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया तथा उससे जुड़े कई इस्लामिक संगठन यथा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया, नेशनल वूमेन फ्रंट, सत्य सरणी इत्यादि खड़े थे, जिन्हें खाड़ी देशों से जिहादी कार्रवाइयों के लिए धन मिलता है। हथियारों, सोने तथा ड्रग्स की तस्करी भी इन संगठनों की आय का बड़ा माध्यम है। इनके नापाक मंसूबों को पूरा करने के लिए देशभर में फैली मस्जिदें तथा मदरसे आधारभूत ढांचे के रूप में सहायक हैं।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां सत्ता के लिए कांग्रेस सहित लगभग सभी दल मुस्लिम तुष्टीकरण में संलग्न हैं। ये दल भूल गए हैं कि इस्लाम के मूल उद्देश्यों में से एक है काफिर देश (दार-उल-हर्ब) को मुस्लिम देश (दार-उल-इस्लाम) बनाना और भारतीय मुसलमान इसे सर्वोपरि मानकर कार्य-व्यवहार करता है। मुस्लिम समुदाय अधिक से अधिक बच्चे पैदा कर अपनी संख्या बढ़ा रहा है। गत दिनों एक समाचार छपा था कि केरल की मुस्लिम महिला ने शादी के 15 वर्षों में 12 बच्चों को जन्म दिया। अभी उसकी उम्र 33 वर्ष है और अगले 10-15 वर्षों तक उसमें प्रजनन क्षमता होगी। इस जनसांख्यिकीय युद्ध में मुस्लिम कोख सबसे ताकतवर हथियार के रूप में सामने आई है। एक गैर मुस्लिम स्त्री के इस्लाम स्वीकार करने का सीधा अर्थ है, गैर मुस्लिम कोख का मुस्लिम कोख में बदलना और ज्यादा जिहादी पैदा करना। इसलिए लव जिहाद एक ऐसी योजना है, जिससे हिंदू लड़कियों को झूठे प्रेम में फंसाने फिर इस्लाम स्वीकार करने को मजबूर करने और बच्चे पैदा कर मुस्लिम आबादी बढ़ाने का काम लिया जाता है।
इन घटनाओं की बढ़ोतरी के लिए बच्चों में बढ़ता स्वेच्छाचारी स्वभाव, घर से बाहर चेहरों को ढंके रहना, अपने विचार, कार्य कलाप, मित्रों की जानकारी परिवार से छिपाना, सोशल मीडिया पर सक्रियता तथा सबसे बड़ा है परिवार द्वारा मूल्य आधारित तथा नैतिकतायुक्त जीवन प्रणाली के संस्कार न देना। यदि परिवार के बड़े स्वयं ही धार्मिक आचरण नहीं करते, तो बच्चे क्या सीखेंगे। कितने हिंदू परिवार हैं जिनके घर प्रतिदिन सवेरे-शाम पूजा-आरती होती है, कम से कम एक समय का भोजन सभी मिलकर खाते हैं, दादा-दादी या माता-पिता के साथ दिनचर्या की चर्चा होती है तथा वह भी बच्चों के जीवन के अच्छे और बुरे पहलू का ज्ञान कराते हैं। नियंत्रण ना सही लेकिन उनकी सोच व क्रिया कलाप के बारे में जानकारी रखना प्रत्येक माता-पिता का दायित्व है। प्राय: पाया जाता है कि माता-पिता केवल अर्थ उपार्जन में ही सारा समय लगाते हैं तथा बच्चों के लिए महंगी वस्तुएं, फैशनेबल कपड़े, भौतिक सुख साधन जुटा अपने कर्तव्य की इतिश्री समझते हैं। ऐसी स्थिति में बच्चों का परिवार तथा समाज से भावनात्मक जुड़ाव नहीं बनता है। भावनात्मक रूप से कमजोर ऐसे बच्चे बाहरी दुनिया के भावपूर्ण प्रलोभन मैं अक्सर फंस जाते हैं।
कट्टरपंथियों की जिहादी मानसिकता, देश में बढ़ते लव जिहाद के मामले की रोकथाम के लिए सरकार को कड़े तथा प्रभावी कानूनी प्रावधान बनाने चाहिए। लेकिन यह काम अकेले सरकार के बस का नहीं है। हमें प्रबोधन द्वारा परिवारों में हिंदू संस्कारों की प्रतिस्थापना करनी होगी, सुख साधनों से कहीं ज्यादा परिवार को अपना समय देकर उन्हें भावनात्मक रूप से मजबूत, आचरण में जागरूक व दृढ़ बनाना होगा, तभी जिहादी साजिशों से अपने परिवार, समाज तथा राष्ट्र को बचाया जा सकेगा।