यह कैसा प्रेम है, जो मज़हब बदलने की शर्तों पर किया जाता है

यह कैसा प्रेम है, जो मज़हब बदलने की शर्तों पर किया जाता है

लव जिहाद के विरुद्ध कानून

प्रणय कुमार

यह कैसा प्रेम है, जो मज़हब बदलने की शर्तों पर किया जाता है 

निक़ाह के लिए मजहब बदलवाने की कहाँ आवश्यकता है? चूँकि एक विशेष प्रकार के अंतरधार्मिक विवाह में असल जोर मतांतरण पर ही होता है न्याय के इसी फ़लसफ़े के अनुसार यदि लव ज़िहाद के विरुद्ध क़ानून बनने से एक भी कम उम्र-मासूम बहन-बेटियों का जीवन बर्बाद होने से बचता हो तो ऐसे क़ानून का स्वागत किया जाना चाहिए।

पिछले कुछ दिनों से देश के अलग-अलग शहरों में लव-ज़िहाद के बढ़ते मामले समाज एवं सरकार के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं। पूरब से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण तक लगभग सभी प्रांतों और प्रमुख शहरों में लव जिहाद के मामले देखने को मिल रहे हैं। स्वाभाविक है कि इसे लेकर भारतीय समाज उद्वेलित-उद्विग्न रहा है। समाज का एक वर्ग इसे साजिशन अंजाम दिया कृत्य बताता है तो दूसरा वर्ग इसे साधारण घटना बताकर अकारण तूल न देने की वकालत करता है और एक तीसरा वर्ग भी है, जो यूं तो ऐसे मामलों में तटस्थ दिखने का अभिनय करता है पर जैसे ही कोई सरकार इस पर क़ानून लाने की बात कहती है, जैसे ही कुछ सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन ऐसी बेमेल शादियों के विरोध में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, यह अचानक सक्रिय हो उठता है। क़ानून की बात सुनते ही इन्हें सेक्युलरिज्म की सुध हो आती है, संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार याद आने लगते हैं, निजता के सम्मान-सरोकार की स्मृतियाँ जगने लगती हैं।

सरकार की इच्छा जानते ही मौन साधने की कला में माहिर यह समूह पूरी शक्ति से मुखर हो उठता है। जिन्हें लव ज़िहाद के तमाम मामलों को देखकर भी कोई षड्यंत्र नहीं नज़र आता, आश्चर्य यह कि उन्हें सरकार की इच्छा में राजनीति अवश्य नज़र आने लगती है। सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों की प्रतिक्रिया में कट्टरता और संकीर्णता दिख जाती है। फिर वे अपने तरकश से अजब-गज़ब तर्कों के तीर निकलना प्रारंभ कर देते हैं। जैसे- क़ानून बनाने से क्या होगा, क्या क़ानून बनाने से महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराध कम हो गए, क्या अब सरकारें दिलों पर भी पहरे बिठाएंगी, क्या दो वयस्क लोगों के निजी मामलों में सरकार का हस्तक्षेप उचित होगा आदि-आदि?

प्रश्न यह है कि यदि उत्तरप्रदेश, हरियाणा या हिमाचल प्रदेश की सरकार अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए कोई क़ानून लाना चाहती है तो उसे लाने से पहले ही पूर्वानुमान लगा लेना या उन पर हमलावर हो जाना या उसमें राजनीति ढूँढ़ लेना कितना उचित है? क्या एक चुनी हुई सरकार को क़ानून बनाने का अधिकार नहीं है? क्या लव-ज़िहाद के अब तक उज़ागर हुए अनेक मामले सत्याधारित नहीं, केवल कपोल-कल्पना हैं? क्या ऐसे मामले समाज में विवाद और विभाजन के कारण नहीं बनते रहे हैं? क्या विवाद और विभाजन के कारणों को दूर कर उनके समाधान के लिए पहल और प्रयास करना अनुचित है?

यह सत्य है कि अपरिपक्व एवं भोली-भाली बहन-बेटियों को बहला-फुसलाकर उनका दैहिक एवं मानसिक शोषण करने का कुचक्र रचा जा रहा है। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि सीधी-सादी लड़कियों को फाँसने के लिए पद, पैसा, प्रभाव और पहुँच का दुरुपयोग किया जाता रहा है।  छद्म वेश में बदले हुए नाम, पहचान, चाल, चेहरा, वेश-भूषा के साथ किसी को प्रेमजाल में फँसाने जैसा धूर्त एवं अनैतिक चलन तेजी से फैल रहा है और सत्य के उज़ागर होने पर ऐसे प्रेम में पड़ी हुई लड़कियाँ स्वयं को ठगी-छली महसूस करती हैं। क्या छल-क्षद्म की शिकार ऐसी विवाहित या अविवाहित लड़कियों को न्याय या सम्मानपूर्वक जीने का कोई अधिकार नहीं मिलना चाहिए?

अतः वे प्रपंचों एवं वंचनाओं के शिकार ही न हों, ऐसे पहल एवं प्रयासों में क्या बुराई है या हो सकती है? प्रश्न यह भी उठता है कि बिना शास्त्र या सिद्धांतों-उपदेशों से प्रभावित हुए क्या विवाह मात्र के लिए किसी को मतांतरित करना औचित्यपूर्ण है? मतांतरण के पीछे तो कोई-न-कोई महान उद्देश्य, दिव्य बोध या आत्म साक्षात्कार जैसी प्रेरणा काम करती आई है। क्या निकाह के लिए किए जाने वाले मतांतरण में भी ऐसी ही प्रेरणा काम करती है। उल्लेखनीय है कि अभी कुछ दिनों पूर्व ही गत 8 अक्तूबर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मात्र विवाह के लिए मतांतरण को अनुचित, अमान्य एवं अवैधानिक क़रार दिया है।

विवाह को एक प्रकार से नए जीवन का शुभारंभ माना जाता है। जिसका आरंभ ही तरह-तरह के छल-छद्म, झूठी पहचान और मतांतरण जैसे स्वार्थ पर केंद्रित हो उसे शुभ कैसे माना जा सकता है। एक ऐसे दौर में जबकि स्त्री सशक्तिकरण, स्त्री-स्वतंत्रता, स्त्री-अधिकारों आदि की बातें जोर-शोर से की जाती हों, सवाल यह भी तो उठाया जा सकता है कि अंतर्धार्मिक विवाहों में केवल स्त्रियाँ ही क्यों अपना धर्म बदलें, पुरुष भी तो बदल सकते हैं। और पुरुषों का स्त्रियों के लिए धर्म बदलना कदाचित नारी सशक्तिकरण की दिशा में एक ठोस एवं सार्थक क़दम भी सिद्ध हो!

और विवाह भारतीय समाज में कभी केवल निजी मसला नहीं रहा। बल्कि विवाह भारतीय परिप्रेक्ष्य में दो आत्माओं के मिलन के साथ-साथ दो परिवारों का भी मिलन माना जाता रहा है। जिसमें निजी विचार-व्यवहार के साथ-साथ परिवारों की रीति-नीति, परंपरा-विश्वास आदि का भी विशेष ध्यान रखा जाता है। इसीलिए विवाह एक पारिवारिक उत्सव भी है। एक ऐसा उत्सव जिसकी प्रसन्नता दूल्हा-दुल्हन से अधिक परिजनों को होती है, माता-पिता को होती है। क्या यह लोक-अनुभव से उपजा सामूहिक निष्कर्ष नहीं कि रिश्तों के निर्वहन में निजी सोच-स्वभाव रुचि-अरुचि के साथ-साथ कुल-परिवार की परंपरा, पृष्ठभूमि, परिस्थिति की भी अपनी भूमिका होती है? इसीलिए यदि समाज अपने सुदीर्घ अनुभव के आधार पर अंतर्धार्मिक विवाह को अमान्य-अस्वीकार करता है, उसके प्रति आशंका से भरा रहता है तो यह एकदम निराधार तो नहीं।

समाज की मान्यताओं और विश्वासों का भी हमें सम्मान करना होगा। तब तो और जब निकिता तोमर जैसे हत्याकांडों को सरेआम अंजाम दिया जाता हो। माना कि विवाह दो वयस्कों की पारस्परिक सहमति का मसला है पर जिस सहमति में वास्तविक पहचान ही छुपाकर रखी जाती हो, वह भला कितनी टिकाऊ और आश्वस्तकारी हो सकती है? और जो लोग इसे मोहब्बत करने वाले दो दिलों का मसला मात्र बताते हैं, वे बड़ी चतुराई से यह सवाल गौण कर जाते हैं कि ये कैसी मोहब्बत है जो मज़हब बदलने की शर्त्तों पर की जाती है?

निक़ाह के लिए मज़हब बदलवाने की कहाँ आवश्यकता है?प्रेम यदि एक नैसर्गिक एवं पवित्र भाव है तो इसमें मज़हब या मज़हबी रिवाज़ों-रिवायतों का क्या स्थान और कैसी भूमिका? चूँकि एक विशेष प्रकार के अंतरपांथिक विवाह (लड़की हिंदु और लड़का मुस्लिम हो तो) में असल जोर मतांतरण पर ही होता है। इसलिए इसे लव-ज़िहाद कहना कदाचित उचित एवं तर्कसंगत ही है। आधुनिक न्याय-व्यवस्था इस बुनियाद पर टिकी होती है कि दोषी भले बरी हो जाय पर निर्दोषों को किसी क़ीमत पर सज़ा नहीं मिलनी चाहिए। न्याय के इसी फ़लसफ़े के अनुसार यदि लव ज़िहाद के विरुद्ध क़ानून बनने से एक भी कम उम्र-मासूम बहन-बेटियों की ज़िंदगी बर्बाद होने से बचती हो तो ऐसे क़ानून का स्वागत किया जाना चाहिए। स्वस्थ समाज की संरचना के लिए यह कानून समय की आवश्यकता है, जिस पर सरकारों को तेजी से काम करना चाहिए।

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *