विवेक भटनागर
वामपंथ के बदले हुए रूपों को पहचाने की जरूरत है। वामपंथ अब सीपीआई और सीपीएम के रूप में नहीं है। वामपंथ अब कम्युनिस्ट शब्द का प्रयोग नहीं करता। अब वह लिबरल और दूसरी पीड़ित पहचान का प्रयोग करता है। पहले मजदूर, फिर जाति और समुदाय और अब किसान को अपनी पहचान बना रहा है। पीड़ित का दोहन वामपंथ का एजेण्डा है। भारत का वामपंथ पूरी तरह से अमरीकी वामपंथ की पैरोडी है। पूर्व में जो हरकते अमरीका में की गई थी, उसका स्वरूप बदल कर इसे भारत में दोहरा रहे हैं। जिस प्रकार अमरीका में ट्रप के दूसरे चुनाव से पहले एक अश्वेत की हत्या पुलिस के द्वारा होती है और फिर सरकार को उत्पीड़क बता कर लम्बे समय तक अराजकता फैलाई गई। रिपब्लिकंस ने इसका पूरा उपयोग सरकार को नतमस्त और कमजोर दिखाने में किया, ताकि ट्रम्प के टक्कर में आ सके।
यही आन्दोलन हमें सीएए-एनआरसी और उसके बाद हिंसक वारदात में नजर आया और अब हमकों किसान आन्दोलन में नजर आ रहा है। किसान आन्दोलन में 26 जनवरी को लाल किले पर हंगामा किया गया। ये लोग कौन है, इनका उद्देश्य क्या है। इनके खिलाफ बोलने पर आपको अन्नदाता का विरोधी बताया जाएगा। अब आन्दोलन में बलात्कार की घटना भी हो गई है। यह एक व्यवस्थित हिंसा है। इससे सरकार पर दबाव डालना उनका उद्देश्य है। यह चाहते हैं, कि सरकार उन पर शक्ति का इस्तेमाल करे और सरकार को कटघरे में खड़ा कर सके। इसके लिए सरकार पर नपुंसक होने का आरोप लगाना गलत है।
ये लिबरल होने का दावा करने वाले स्यूडो हिंसक समाज में अराजकता और हिंसा के माध्यम से कम्युनिज्म के रूल्स आफ रेडिकल्स का प्रयोग करना चाहते हैं। सरकार को इस षड्यंत्र को आम लोगों के बीच स्पष्ट करना चाहिए।
कांग्रेस का चरित्र भी अब स्पष्ट हो चला है कि यह भी लिबरल की बी टीम है। ये पूरे भारत में विभाजन और हिंसक आन्दोलन के माध्यम से छा जाना चाहते हैं। दिल्ली में केजरीवाल सरकार इसकी संरक्षक है और राष्ट्रीय मंच पर लगातार स्थान बनाए हुए है।
मुम्बई में एनसीपी-शिवसेना सरकार भी इनकी यूजफुल ईडियट है। वह कोरोना काल में भी अराजक हालात बनाने को तैयार है। यह पैटर्न पूरे भारत में नजर आ रहा है। सरकार को चिढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। दिल्ली में आक्सीजन को गैरकानूनी स्टाॅक करना और आक्सीजन को लीक करना इसका सबसे प्रमुख पैटर्न है। इसी प्रकार बंगाल में चुनाव बाद की हिंसा एक प्रकार है।