वे ही वीर कहलाते हैं

वे ही वीर कहलाते हैं

चंदन शर्मा

वे ही वीर कहलाते हैं

प्रतिक्षण विषपान को तत्पर जो,
कष्टों के घट को मथकर जो,
कंटक की शय्या पर जाकर,
आकाश तले सो जाते हैं,
वे ही वीर कहलाते हैं
वे ही वीर कहलाते हैं…।

असि की धारों पर चलकर जो,
दावानल भीतर जलकर जो,
बाधा की नाव बनाकर ही,
सहज ही लक्ष्य पा जाते हैं,
वे ही वीर कहलाते हैं
वे ही वीर कहलाते हैं…।

तूफानों से टकराकर जो,
लहरों की चोटें खाकर जो,
आतप में तपकर भी लेकिन,
जो अडिग खड़े रह जाते हैं,
वे ही वीर कहलाते हैं
वे ही वीर कहलाते हैं…।

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