वैवाहिक रेप : वामपंथ का नया शिगूफा

वैवाहिक रेप : वामपंथ का नया शिगूफा

अंजन कुमार ठाकुर

वैवाहिक रेप : वामपंथ का नया शिगूफा

भारत में बड़बोलों का प्रजातंत्र है जो जितना गाल बजाए उसकी उतनी पहचान बनती है। आज न्याय व्यवस्था को भी लोग इसी दृष्टि से देखने लगे हैं। अदालत में लगे केसों के अम्बार और न्याय पाने केलिए बुढ़ाते लोग इसका नमूना हैं, उम्र निकल जाती है लोगों की। न्यायालयों में एक एक जज पर हजारों की संख्या में केस निपटाने का भार है और आप देखेंगे कि न्यायालय उन मामलों में बड़ी तेजी दिखाता है, जिनमें न्याय नहीं करना होता है सिर्फ असंतोष की मंद मंद जलती हुई आग को खोर खोर करके प्रज्वलित करना होता है।

आजकल वैवाहिक रेप का मामला चर्चा में है। दिल्ली कोर्ट में प्रतिदिन सुनवाई हो रही है। क्या ये शब्द जाने अनजाने ही सही वामपंथी शिकंजे में फंसी भारतीय न्याय व्यवस्था के द्वारा उछाला गया सिक्का नहीं है? इतने केस लंबित पड़े हुए हैं कि एक सामान्य हत्या के केस को, अपराधी को फांसी तक पहुंचाते पहुंचाते चाहे मृतक का परिवार खुद मौत के मुंह में चला जाए पर कातिल की फांसी पर स्टे ऑर्डर देने में कोर्ट एक दिन की भी देरी नहीं करता। निर्भया के रेपिस्ट को सजा मिलने में बरस बीत गए। संसद पर हमले के आरोपी आज भी कुछ नामचीन विश्वविद्यालयों में शान से लिया जाने वाला नाम हैं। तो आखिर यह वैवाहिक रेप नाम का सिक्का क्यों चलाना पड़ा? आप पिछले दो वर्षों के समाचार पत्रों को पलट कर देख लीजिए तो भारतीय न्यायालय ने कुल 300 हत्यारों को भी सजा नहीं सुनाई होगी। आर्थिक घोटालेबाज, रेप, रियल एस्टेट, ठगी, लूट, एक्सीडेंट आदि के मामलों की तो बात ही मत पूछिए। कोर्ट का काम तो बस उसी गति से तारीख पर तारीख देना है जिस गति से आरोग्य सेतु एप ओटीपी भेजता है।

दरअसल भारतीय न्याय व्यवस्था तो नाली की सफाई, हेट स्पीच, कोरोना का लॉकडाउन, सांसदों की बर्खास्तगी, चुनावी रैलियों पर रोक, फांसी पर स्टे, घोटालेबाजों के लिए एंटीसिपेटरी बेल, जन्माष्टमी पर हांडी की ऊंचाई तय करने  जैसे कामों में ही व्यस्त रहती है, उसे फुर्सत कहां कि वास्तविक केसों को निपटाए।

अभी तक भारतीय न्यायालय ने पति पत्नी के बेडरूम को छोड़ रखा था, परंतु इस वैवाहिक रेप (marital rape) से भारतीय कानून की पहुंच भारतीय दंपति के बिस्तर पर रखे तकिए और तौलिए की तरह हो गई है। वैवाहिक रेप के नाम पर जब चाहे पत्नी अपने पति को जेल भिजवा सकती है। मेरा मानना है कि अब तक किसी पति ने भी मौखिक और रिकॉर्डेड सहमति के बाद अपनी पत्नी के साथ हमबिस्तरी नहीं की होगी, परंतु शायद अब पतियों को एक ब्लैंक एफिडेविट फॉर्म भी रखना पड़ेगा जो सहमति का प्रमाण होगा।

एक सर्वे के अनुसार लगभग 50% महिलाओं ने माना है कि वह अपने पति के साथ हमबिस्तर इसलिए होती हैं क्योंकि उन्हें उन पर दया आती है। तो जैसे ही यह दया का भाव गया, वैवाहिक रेप (Marital rape) टर्म आया। अब पत्नी जब चाहे पति के साथ अनुभूत दैहिक सुख को एक सामान्य नाराजगी के उपरांत रेप घोषित कर सकती है।

यही न्यायालय है जो शाहबानो केस में मुस्लिम पर्सनल लॉ के सामने झुक जाता है, तीन बार तलाक बोलने के बाद पछताए हुए पति को अपनी उसी पत्नी को वापस लाने के लिए किसी धर्माधिकारी के आदेश पर उस तलाकशुदा पत्नी के किसी परपुरुष के साथ कम से कम एक रात अनिवार्य रूप से हमबिस्तर होने को रेप नहीं मानता है, उसे हिन्दू पति पत्नी के मनमुटाव में वैवाहिक रेप की सम्भावना नजर आती है।

अगर यह वैवाहिक रेप का सिक्का चल निकला तो दहेज विरोधी और अस्पृश्यता निवारण कानून के बाद यह कानून भारतीय परिवार व्यवस्था की धज्जियां उड़ा देगा। भारतीय कानून संहिता आज भी वकीलों के द्वारा की गई व्याख्याओं की गुलाम है। भारतीय न्यायाधीश आईपीसी और सीआरपीसी तो समझते हैं, परंतु वकीलों के द्वारा इनमें उल्लेखित धाराओं के तात्पर्य में उलझ जाते हैं। यही कारण है कि कोई भी जागरूक नागरिक बलात्कार के 10 ऐसे केस नहीं बता सकता जिसमें बलात्कारी को सजा हुई हो।

भारतीय कानून को आज तक यह पता नहीं है कि वेश्याएं क्या होती हैं और भारत में रेड लाइट एरिया का न्यायिक रूप से कोई अस्तित्व है। लेकिन उसे वैवाहिक रेप की चिंता है।

आज न्याय व्यवस्था ने अपनी न्यायिक तंद्रा और निर्णयजन्य आलस्य झुठलाने के लिए सनातन समाज की एकमात्र स्थायी इकाई परिवार को खंडित करने वाला एक ऐसा सिक्का उछाल दिया है जिसके कारण आने वाले दिनों में शायद पति पत्नी नाम के जोड़े होंगे ही नहीं, परिवार के स्थान पर एक व्यक्ति ही समाज की इकाई बनकर रह जाएगा क्योंकि वह विवाह करने से डरेगा। उसे हर समय यह लगता रहेगा कि पता नहीं कब जुल्फों के साए में बीती हुई शाम जेल की काली अंधेरी रात में बदल जाए। क्या यह वैवाहिक रेप भारतीय न्याय व्यवस्था का बड़बोलापन और वामपंथी सोच का ढूंढा हुआ नया शिगूफा नहीं?

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