विद्यालयों में शुक्रवार को अवकाश के निहितार्थ

विद्यालयों में शुक्रवार को अवकाश के निहितार्थ

डॉ. ऋतुध्वज सिंह

विद्यालयों में शुक्रवार को अवकाश के निहितार्थविद्यालयों में शुक्रवार को अवकाश के निहितार्थ

विगत कई दिनों से समाचार पत्रों की सुर्खियों में लगातार कुछ ऐसा देखने को मिल रहा है, जिसको पढ़ कर भारत में रहने वाला प्रत्येक भारतीय, जो भारतीय शासन व्यवस्था में विश्वास रखता है तथा विधि द्वारा स्थापित इस व्यवस्था का सम्मान करता है, आज चिंता में है। पीएफआई का विजन 2047 डॉक्यूमेंट सामने आ चुका है। झारखण्ड एवं बिहार के कई प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों में रविवार के स्थान पर शुक्रवार यानि जुम्मे के दिन अवकाश घोषित किया जाने लगा है। विद्यालय प्रशासन भी इसका कोई ठोस कारण न बताते हुए टाल मटोल के प्रयास करता दिख रहा है। शिक्षा विभाग से जुड़े अफसरों का कहना है कि ऐसी घटनाएं संज्ञान में आई हैं तथा कार्यवाही की जा रही है। परंतु प्रश्न यह है कि अफसर अब तक कहॉं थे? ऐसे बदलाव कोई एक दिन में होने तो सम्भव नहीं।

विद्यालयों में शुक्रवारीय अवकाश को लेकर अक्सर तर्क दिया जाता है कि मुसलमान जुम्मे के दिन नमाज पढ़ने जाता है, इसलिए वह विद्यालय पढ़ने/ पढ़ाने नहीं आ सकता। दूसरा, किसी विशेष क्षेत्र में अब वे बहुलता में हैं, इसलिए शरिया अनुसार चलेंगे। ऐसे लोगों को समझना होगा कि यह भारत है, जो संविधान से चलता है, न कि शरिया से। हर सरकारी विभाग के अपने नियम होते हैं। विद्यालय अध्यापकों की सुविधा पर नहीं चलते, नियमों के अनुरूप चलते हैं। यहॉं समझने वाली बात यह है कि प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले छोटे छोटे बच्चे इतने प्रज्ञ नहीं होते कि वे यह मांग करें कि हमें जुम्मे की नमाज पढ़नी है, आज विद्यालय नहीं आयेंगे। यह एक सोचा समझा षड्यंत्र है। इसके निहितार्थ हैं, यह भारत को इस्लामीकरण की ओर ले जाने का एक और कदम है। 

क्या कहता है देश का संविधान?

शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 तथा निःशुल्क व अनिवार्य बाल शिक्षा नियमावली 2011 के अनुसार, देश के 14 वर्ष से कम के सभी नागरिकों को निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा देना सरकार का कर्तव्य है तथा इसके समुचित प्रबंध का उत्तरदायित्व राज्य सरकारों पर है। यहां तक तो बात ठीक है, लेकिन गंभीर प्रश्न यह है कि विद्यालयों के संचालन  के लिए नियम कौन बनाएगा? अधिनियम 2009 के भाग 3 के अनुपालन में स्थानीय शिक्षा प्राधिकारी अर्थात बीएसए और प्रधानाचार्य दोनों का यह उत्तरदायित्व है कि विद्यालयों में अध्यापन एवम संचालन हेतु समय सारणी का निर्माण करेंगे तथा यह भी ध्यान में रखेंगे कि इस प्रक्रिया में केंद्र द्वारा स्थापित नियमों निर्देशों से अनुरूपता बनी रहे ।(भारत सरकार का राजपत्र, 27 अगस्त2009)। संविधान के अनुच्छेद 21 (1) के अनुसार राज्य द्वारा पूर्णतया वित्त पोषित एवं अनुरक्षित शिक्षण संस्थाओं में राज्य व केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए सभी नियम अपनाने आवश्यक होंगे। इन पर किसी भी प्रकार का बाह्य हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं होगा।

शिक्षण संस्थानों में सांप्रदायिक शिक्षा

संविधान भाग 3 अनुच्छेद 28 में कुल चार प्रकार के विद्यालयों का उल्लेख किया गया है 1. राज्य द्वारा पूर्ण वित्त पोषित संस्थाएं। 2. राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थाएं। 3. राज्य निधि से सहायता पाने वाली संस्थाएँ। 4. राज्य प्रशासित, किन्तु किसी न्यास के अधीन स्थापित संस्थाएँ।

इनमें, प्रथम श्रेणी के विद्यालयों में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती और न ही किसी प्रकार के धार्मिक नियम अनुपालित किए जा सकते। दूसरे एवम तीसरे प्रकार के विद्यालयों में धार्मिक शिक्षण और पद्धतियों के अनुपालन की अनुमति है, बशर्ते अभिभावक इसकी अनुमति दें तथा चौथे प्रकार के विद्यालय पूर्ण स्वायत्त हैं। यहां यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि विवादित विद्यालय श्रेणी एक के विद्यालय हैं।  

विवादित विद्यालयों में प्रार्थना पद्धति या अवकाश के दिनों में परिवर्तन इस आधार पर किया गया कि वे विद्यालय मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में हैं। अब यह स्पष्ट हो चुका है कि जहॉं मुसलमान बहुसंख्यक होंगे, शरिया थोपने के प्रयास करेंगे। वे उसी के हिसाब से चलेंगे, और न केवल चलेंगे बल्कि गैर मुस्लिमों को भी शरिया का पालन करने के लिए मजबूर करेंगे। फिर अधिकांश हिन्दू तो सेक्युलर हैं। उन्हें अच्छी सुविधाएं चाहिए, अपनी जाति का नेता चाहिए। लेकिन मुसलमानों को मजहब और शरिया कानून। उन्हें संविधान से भी तभी तक मतलब है, जब तक कि वे संख्या में कम हैं। यहां ध्यान देने की बात यह भी है कि ये विद्यालय देश के जनजातीय बाहुल्य क्षेत्र में हैं तथा राज्य सरकारों की मेहरबानी से यहां शासन और कानून व्यवस्था भगवान भरोसे ही है। ऐसे में पीएफआई जैसे संगठन यदि यहां बैठ कर देश को 2047 तक इस्लामिक राष्ट्र बनाने का सपना देखते हैं तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यह सरकारों का नकारापन और तुष्टीकरण ही है, जिसके कारण ऐसे राज्यों में इन्हें इस्लामीकरण व आतंकवाद के लिए उर्वर जमीन मिलती है। अब हर हिन्दू को निश्चित करना होगा कि उसे हिन्दू राष्ट्र चाहिए या अराजक क्योंकि सेक्युलर बने रहने की समय सीमा अब समाप्त हो चुकी है। इस देश में संविधान भी तभी तक मायने रखता है, जब तक हिन्दू बहुसंख्यक है।

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