श्रीकृष्ण जन्मभूमि-केशवदेव मंदिर : मंदिर के शिखर पर रखे दीये आगरा तक दिखाई देते थे
श्रीकृष्ण जन्मभूमि-केशवदेव मंदिर
इस्लामिक आक्रांता जब भी भारत आए, उन्होंने लूटपाट तो की ही, हमारी धार्मिक आस्थाओं को भी तार तार किया।मंदिर तोड़े, मूर्तियां तोड़ीं और उनके स्थान पर मजहबी ढांचे खड़े कर दिए जो स्वाधीनता के दशकों बाद भी हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं। राम जन्मभूमि की तरह ही कृष्ण जन्मभूमि भी हिन्दू आस्था का केन्द्र बिन्दु है। लेकिन जब तब उसे भी विवादों में घसीटा गया है। आइए जानते हैं श्रीकृष्ण जन्मभूमि–केशवदेव मंदिर का इतिहास….
- भगवान कृष्ण का जन्म 5 हजार वर्ष पहले द्वापर युग में मथुरा के मल्लपुर क्षेत्र के कटरा केशवदेव कारागार में हुआ था। तब कंस यहॉं का राजा था। उसने एक आकाशवाणी– देवकी के आठवें पुत्र द्वारा तू मारा जाएगा– के चलते अपनी बहन देवकी व जीजा वसुदेव को इस कारागार में कैद कर रखा था। रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को यहीं कृष्ण का जन्म हुआ।
- बाद में कृष्ण के प्रपौत्र ब्रजभान ने इसी स्थान पर कृष्ण मंदिर का निर्माण करवाया, जो केशवदेव मंदिर के नाम से जाना गया। 80-57 ईसा पूर्व के बीच एक मंदिर और बना। जिसे राजा शोडास के शासन में वसु नामक व्यक्ति ने बनवाया। मंदिर में तोरण द्वार और वेदिका भी बनवायी गई। ये बातें शीर्ष सिंह शिलालेखों पर ब्राह्मी लिपि में अंकित हैं।
- 400 ईसवी में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। मंदिर की सुंदरता के चलते मथुरा आध्यात्म, संस्कृति और कला का केंद्र बन गया।
- 1017 में महमूद गजनवी ने पहली बार मंदिर तोड़ा और लूटा। गजनवी के मुंशी मीर अल उत्वी ने अपनी पुस्तक तारीख-ए-यामिनी में लिखा है, “सुल्तान ने कहा था कि इस इमारत को बनाने में दस करोड़ दीनार और लगभग दो सौ साल लगे होंगे।”
- कटरा केशवदेव क्षेत्र में संस्कृत के कुछ शिलालेख मिले हैं, जिनके अनुसार 1150 में मथुरा के राजा विजयपाल देव के शासनकाल में जज्ज नामक व्यक्ति ने पुन: मंदिर निर्माण करवाया।
- 16वीं शताब्दी के आरम्भ में सिकंदर लोदी ने एक बार फिर मंदिर तोड़ा। 1616 में ओरछा के राजा वीरसिंह बुंदेला ने फिर मंदिर बनवाया। यह मंदिर भी भव्य था। मंदिर की ऊंचाई 250 फिट थी, इसे बनवाने में 33 लाख रुपए लगे। इटैलियन यात्री मनूची ने मंदिर पर लेख लिखे।उसने लिखा मंदिर 36 मील दूर तक दिखाई देता है। मंदिर के शिखर पर रखे दीये आगरा तक दिखाई देते हैं।
- 1669 में तीसरी बार औरंगजेब ने मंदिर तोड़ा और मंदिर के मलबे से ही इसके एक भाग पर ईदगाह मस्जिद का निर्माण करा दिया। श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर हिन्दुओं के जाने पर रोक लगा दी गई। उपरोक्त इतिहास से जुड़ा बोर्ड श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में लगा हुआ है।
- 1670 में मराठा युद्ध लड़े और जीतकर जमीन कब्जे में ले ली। 1803 में मथुरा क्षेत्र अंग्रेजों के कब्जे में आ गया।
- 1825 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने केशवदेव मंदिर नीलाम कर दिया। राजा पटनीमल ने 1410 रुपए में मंदिर की जमीन खरीदी। बाद में उनके वंशज स्वामीराय कृष्णदास अधिकारी बने। मुसलमानों ने जमीन के मालिकाना हक के लिए कोर्ट में चुनौती दी। इलाहबाद हाईकोर्ट ने कृष्णदास के पक्ष में फैसला सुनाया।
- 19वीं सदी की शुरुआत तक मंदिर जर्जर हो चुका था। पंडित मदनमोहन मालवीय ने इस बारे में उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला से बात की। 1944 में बिड़ला ने 13 हजार रुपए में पूरी जमीन खरीद ली। 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की गई। इस तरह पूरी जमीन ट्रस्ट की हो गई।
- 14 अक्टूबर 1953 को मंदिर निर्माण कार्य शुरू हुआ। 1982 में भव्य मंदिर और गर्भगृह बनकर तैयार हुआ। इस बीच मंदिर और मस्जिद पक्ष में विवाद हुआ।
- 1968 में दोनों के बीच समझौता हुआ कि 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों रहेंगे।
- 25 सितंबर, 2020 को श्रीकृष्ण जन्म स्थान की पूरी 13.37 एकड़ जमीन पर दावा पेश किया गया। वकील रंजना अग्निहोत्री ने दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते को गलत बताया और इसे रद्द करने की मांग की। उन्होंने एक याचिका लगाई जो स्वीकार कर ली गई।