“संघ शिक्षा वर्ग” – संघ साधना की तपोस्थली
– वीरेंद्र पांडेय
संघ शिक्षा वर्ग में स्वयंसेवक किसी गुरुकुल के विद्यार्थी की भांति व्यक्तित्व विकास और राष्ट्र चिंतन हेतु कष्टप्रद परिस्थितियों में रहता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इन संघ शिक्षा वर्गों में आये शिक्षार्थी योजना, निर्माण, रचना पर अथक परिश्रम करते हुए सतत कर्मशील रहने का संकल्पित प्रशिक्षण लेते हैं।
कोरोना विश्व व्यथा है। इसकी औषधि का पता नहीं। मानव जीवन संकट में है। दुनिया की अनेक शासन -सभ्यताएं अग्नि परीक्षा में झुलस रही हैं। प्रश्न बड़े हैं – मानव जीवन की रक्षा राष्ट्र / राज्य का सर्वोपरि दायित्व है या अर्थव्यवस्था के साथ अन्य सामाजिक गतिविधियाँ? भारत के प्रधानमंत्री ने मनुष्य जीवन की रक्षा को सर्वोपरि महत्त्व दिया और पूरे देश के लिए लॉकडाउन चुना। इससे पहले मार्च के प्रथम सप्ताह में जब कोरोना की खतरे की घंटी सुनाई पड़ने लगी तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी अति महत्वपूर्ण वार्षिक प्रतिनिधिसभा को रोक दिया। साथ ही संघ ने देश भर में होने वाले वार्षिक प्रशिक्षण कार्यक्रम “संघ शिक्षा वर्ग ” को स्थगित कर दिया। यह वर्ग संघ के स्थापना कल से लगातार चलता आ रहा है। प्रतिबन्ध और आपातकाल का समय छोड़ दें तो संघ शिक्षा वर्ग कभी रुका नहीं। बात स्पष्ट है जो मानवता को ही धर्म का पर्याय मानते हैं और उसी आधार पर जीवन जीने का प्रयास करते हैं वे राष्ट्रहित के प्रति सजग है।
यह वह समय है जब देश भर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रशिक्षण वर्ग चल रहे होते हैं। वैसे तो ये वर्ग साल भर में कभी भी हो सकते हैं; पर गर्मी की छुट्टियों के कारण अधिकांश वर्ग इन्हीं दिनों होते हैं। 1925 में जब संघ प्रारम्भ हुआ, तो संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने स्वयंसेवकों में दक्षता हेतु संघ शिक्षा वर्ग जैसे प्रशिक्षणों का विचार सबके साथ साझा किया। यह संगठन विस्तार की दृष्टि से भी आवश्यक था। अधिक समय घर से दूर, एक संघानुकूल दिनचर्या में रह अधिकाधिक समय समाज व देश के बारे में सोचने तथा अनुशासन के साथ वर्ग भेद से ऊपर उठ सामूहिकता में रहने की नूतन पद्धति है संघ शिक्षा वर्ग।
गर्मी की छुट्टियों में जब सामान्यतः लोग किसी पहाड़ या ठंडे स्थान पर जाकर आराम करना पसंद करते हैं तब देश का एक बड़ा वर्ग स्वरुचि से संघ के अभ्यास वर्ग में जाकर कड़ा श्रम करता है। पसीना बहाता है। किसी गुरुकुल के विद्यार्थी की भांति, यहाँ व्यक्ति, व्यक्तित्व विकास व राष्ट्र चिंतन हेतु कष्टप्रद परिस्थितियों में रहता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इन संघ शिक्षा वर्गों में आये शिक्षार्थी योजना, निर्माण, रचना पर अथक परिश्रम करते हुए सतत कर्मशील रहने का संकल्पित प्रशिक्षण लेते हैं।
ये प्रशिक्षण उनके रोजी-रोजगार, आजीविका, व्यावसायिक अथवा कार्यालयीन कार्यकुशलता में वृद्धि के लिए नहीं होता। न ही ये प्रशिक्षण किसी सुविधाजनक होटलों में या रिसार्ट्स में आयोजित होते हैं। ये शिक्षा वर्ग बिना किसी भौतिक या व्यक्तिगत लाभ की दृष्टि से कष्टसाध्य वातावरण में किसी सामान्य से विद्यालय के कक्षों व प्रांगणों में आयोजित होतें हैं। सात दिनों से पच्चीस दिनों तक के इन वर्गों के पाठ्यक्रम में मोटे तौर पर प्रतिदिन 250 मिनट के बौद्धिक विकास कार्यक्रम तथा 200 मिनट के शारीरिक विकास के कार्यक्रम रखे जाते हैं। तथा बाकी समय में व्यक्ति को ऐसा परिवेश मिलता है कि व्यक्ति राष्ट्र आराधना में तल्लीन हो जाता है।
इन वर्गों से विधिवत, आयु के अनुसार प्राथमिक, प्रथम वर्ष, द्वितीय तथा तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण लेने के पश्चात ही प्रशिक्षित कार्यकर्ता संघ के कार्यों को अधिक कुशलता से संभाल पाता है। यही कारण है कि इस देश के ही नहीं अपितु विश्व के सर्वाधिक अनूठे, विशाल, अनुशासित, लक्ष्य समर्पित, तथा राष्ट्र प्रेमी संगठन के रूप में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पहचान होती है।
संघ के विषय में यह तथ्य भी बड़ा ही सटीक, सत्य तथा सुस्थापित है कि संघ का कार्य संसाधनों से अधिक भावना तथा विचार आधारित होता है। यदि आपका संघ के कार्यकर्ताओं से मिलना जुलना होता है तो एक शब्द आपको बहुधा ही सुनने को मिल जाएगा, वह शब्द है संघदृष्टि। यह संघदृष्टि बड़ा ही व्यापक अर्थों वाला शब्द है। संघदृष्टि को विकसित करनें का ही कार्य शिक्षा वर्ग में होता है। जीवन की छोटी-छोटी बातों से लेकर विश्व भर के विषयों में व्यक्ति, किस प्रकार समग्र चिंतन के साथ आगे बढ़े इसका प्रशिक्षण इन वर्गों में दिया जाता है। वसुधैव कुटुम्बकम, सर्वे भवन्तु सुखिनः, धर्मो रक्षति रक्षितः, इदं न मम इदं राष्ट्रं जैसे अति व्यापक अर्थों वाले पाठ व्यक्ति के मानस में सहज स्थापित हो जायें यही लक्ष्य होता है। ये वर्ग व्यक्ति में भाव जागरण या भाव विकास में सहयोगी होतें हैं, और संभवतः यही व्यक्तित्व विकास का सर्वाधिक सफल मार्ग भी है।
संघ शिक्षा वर्ग – प्राथमिक वर्ग, प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष और तृतीय वर्ष – कुल चार प्रकार के संघ शिक्षा वर्ग होते हैं. “प्राथमिक वर्ग” एक सप्ताह का होता है, “प्रथम वर्ष”और “द्वितीय वर्ष” 20-20 दिन के होते हैं, जबकि “तृतीय वर्ग” 25 दिनों का होता है। “प्राथमिक वर्ग”का आयोजन सामान्यतः एक या दो जिला मिला के करता है, “प्रथम वर्ष” का आयोजन सामान्यत: प्रान्त करता है, “द्वितीय वर्ष” का आयोजन सामान्यत: क्षेत्र करता है और “तृतीय संघ शिक्षा वर्ग अनिवार्यतः प्रत्येक वर्ष नागपुर में ही होता है।
जिस स्थान पर वर्ग लगते हैं, वहां की शाखा और कार्यकर्ताओं को भी इससे लाभ होता है। वर्ग के लिए कई तरह की व्यवस्थाएं करनी होती हैं। समाज से सहयोग तथा संस्थाओं से सम्पर्क कर वर्ग के लिए साधन जुटाने होते हैं। अतः अधिकांश कार्यकर्ताओं में सक्रियता निर्माण होती है। स्थानीय कार्यकर्ता नये-नये लोगों को वर्ग दिखाने के लिए लाते हैं। इससे वे भी संघ से जुड़ते हैं। वर्ग के दौरान पथ-संचलन तथा सार्वजनिक समापन कार्यक्रम से स्थानीय हिन्दू समाज में उत्साह का निर्माण होता है। इस प्रकार संघ शिक्षा वर्ग न केवल शिक्षार्थियों, अपितु व्यवस्थापकों और स्थानीय कार्यकर्ताओं के लिए भी वरदान बनकर आता है।
(लेखक सहायक आचार्य और शोधकर्ता हैं)