विद्या साधना का दिवस है संस्कृत दिवस
डॉ. ओमप्रकाश पारीक
मनुष्य जीवन की सार्थकता ज्ञान एवं तदनुसार आचरण से है। हमारे क्रांत द्रष्टा ऋषियों ने अपनी अलौकिक प्रतिभा एवं तपश्चर्या से जीव, जगत और परमात्म तत्व की विशेषताओं को जाना तथा उन्होंने परमात्मा द्वारा प्रदत्त वेदों के अर्थ का साक्षात्कार कर उनके मंत्रों को देख अपने चिंतन से मनुष्य एवं सृष्टि के कल्याण हेतु ज्ञान के आलोक से आलोकित किया। विद्या वह है जिससे व्यक्ति अज्ञान की उलझनों से मुक्त होता है। ऐसी विद्या की साधना का दिवस श्रावणी पौर्णमासी को निश्चित किया गया है, जिसमें उपाकर्म अर्थात वेद का अध्ययन प्रारंभ किया जाता है। अविद्या के विनाश और विद्या की साधना का यह दिवस संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। वास्तव में जिस विद्या की साधना की जाती है और जिससे मनुष्य जीवन सार्थकता को प्राप्त होने वाला है वह विद्या संस्कृत भाषा में निबद्ध है ।
संस्कृत भाषा देव भाषा है। संस्कृत भाषा में ही वैदिक साहित्य व लौकिक साहित्य है। संस्कृत भाषा में निबद्ध ग्रंथों में कला, विज्ञान, साहित्य, तकनीक आचार विचार ,संस्कार सभी प्रकार के ज्ञान का अनूठा वर्णन है। एक सुव्यवस्थित जीवन जीने के लिए जिन बातों की आवश्यकता होती है उन सभी की जानकारी संस्कृत भाषा के प्राचीन ग्रंथों में विद्यमान है ।वेद भगवान स्वरूप हैं। हमारी संस्कृति में वेदों का विश्वास कर्ता ही आस्तिक है और जो वेदों का निंदक है वह नास्तिक है। उपनिषदों में ज्ञान की पराकाष्ठा है। मनुष्य के ऊहापोह का समाधान संस्कृत भाषा में निबद्ध ग्रंथों में तुरंत प्राप्त है। भगवान के श्री मुख से निसृत विश्व प्रसिद्ध श्रीमद्भगवद् गीता संस्कृत भाषा में ही है ।
आज संपूर्ण जगत इसके आगे नतमस्तक है। वाल्मीकि कृत रामायण हर घर में सम्मान से पढ़ी जाती है। वेद, उपनिषद, गीता पुराण, रामायण, महाभारत, यह हमारी संस्कृति के चमकते हुए मनके है। इसमें गुंथे ज्ञान से हम सिरमौर हैं। यह सारा सारस्वत ज्ञान, 64 कलाएं, 14 विद्यायें संस्कृत भाषा में ही हैं।
संस्कृत भाषा सरस भाषा है। समस्त देवताओं का आराधन मंत्रों द्वारा किया जाता है और यह मंत्र संस्कृत भाषा में ही हैं। किसी भी कार्य का प्रारंभ मंत्रों के मंगलाचरण से ही होता है। विद्यादात्री मां शारदा का स्तवन संस्कृत भाषा में ही किया जाता है। संस्कृत भाषा का महत्व सर्वोपरि है। इस भाषा का प्रचार व प्रसार सतत प्रवाहित रहे इसी भाव से श्रावण माह की पूर्णिमा को संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाता है। सन् 1969 से निरंतर श्रावणी पूर्णिमा को संस्कृत दिवस मनाया जा रहा है। संस्कृत दिवस भारत में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है।
इस दिन संस्कृत सेवा में जीवन समर्पित करने वाले विद्वानों को सम्मानित किया जाता है। संस्कृत प्रतियोगितायें कराई जाती हैं तथा पारंपरिक रूप से घरों में संस्कृत ग्रंथों का पठन-पाठन होता है। हमारी संस्कृति व संस्कारों का सारा निचोड़ संस्कृत ग्रंथों में निबद्ध है।
आज भौतिक अंधानुकरण का दौर है। वर्तमान में समूचा विश्व कोरोना महामारी से त्रस्त हुआ है। इस महामारी से बचाव हेतु बार-बार हाथ धोएं, सेनेटाइज करें, स्वच्छता रखें, इम्यूनिटी बढ़ाएं, योग करें, ऐसी शब्दावलियां हमें सुनने को मिल रही है। यदि हम प्राचीन शास्त्रों का पुनरावलोकन करें तो हम पाएंगे कि हमारी संस्कृति में हस्त प्रक्षालन व आचमन तथा पवित्रीकरण का विधान इसी स्वच्छता हेतु किया जाता था। गोमूत्र का छिड़काव घरों की शुद्धि हेतु किया जाता था। योग प्राणायाम तो दैनिक जीवन का आवश्यक अंग था एवं प्रतिदिन यज्ञ एवं हवन द्वारा पर्यावरण शुद्ध रहता था। निरोगी काया प्रथम धर्म था । आज योग को आवश्यक माना जा रहा है योग भारत में ही नहीं संपूर्ण विश्व में प्रिय हो रहा है। योग सनातन काल से चला आ रहा है। योग विषयक ग्रंथ संस्कृत भाषा में ही हैं।
संस्कृत भाषा सर्वप्रिय भाषा है। इस भाषा के कारण ही हम भारतीय सुसंस्कृत व सद्गुणों से पूर्ण हैं। संस्कृत भाषा को नयी शिक्षा नीति 2020 में महत्वपूर्ण स्थान मिला है। सभी सुधी उपासकों से यही आशा है इस देव भाषा संस्कृत को हम सभी अपने अंतःकरण में धारण रखें और इसमें ग्रथित ज्ञान एवं मूल्यों को चहुं ओर फैलाएं और अपने देश का गौरव बढ़ायें। यही शुभ भाव श्रावणी पूर्णिमा व संस्कृत दिवस के शुभ अवसर पर हम प्रकट करते हैं।
(लेखक संस्कृत राजकीय महाविद्यालय, आहोर में सह-आचार्य हैं)