सरकारों को मंदिरों और मठों के अधिग्रहण का कोई अधिकार नहीं- शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती
सरकारों को मंदिरों और मठों के अधिग्रहण का कोई अधिकार नहीं- शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती
पुष्कर। 14 मई को पुष्कर में तीन दिवसीय 23वें साधना एवं चिंतन शिविर का समापन हुआ। इस अवसर पर गोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि सरकारों को मंदिरों और मठों के अधिग्रहण का कोई अधिकार नहीं है। मस्जिदों और चर्च की तर्ज पर हिंदू मंदिरों पर भी सिर्फ हिंदुओं का अधिकार होना चाहिए। उन्होंने पुष्कर के ब्रह्मा मंदिर के अधिग्रहण व 6 वर्षों से खाली पड़ी महंत की गद्दी पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इस मामले में पुष्करवासियों को चुप्पी तोड़कर आगे आना चाहिए। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में भी इसी तरह मंदिरों का अधिग्रहण किया गया था, लेकिन विरोध होने पर सरकार को अधिग्रहण रोकना पड़ा। पुष्कर में भी हिंदू समाज को आवाज उठानी चाहिए। उन्होंने कहा कि श्री ब्रह्मा मंदिर महंत की गद्दी आदि शंकराचार्य परम्परा से सम्बद्ध है, लेकिन दुर्भाग्य से 6 वर्षों से खाली पड़ी है। उन्होंने सरकार को भी चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार शीघ्र ही मंदिर को अपने प्रबंधन से मुक्त करे व आदि शंकराचार्य परम्परा से महंत को गद्दी पर विराजित करे।
उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों में आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में चार लाख से अधिक छोटे–बड़े मंदिरों का अधिग्रहण किया गया है। इनमें से अनेक मंदिरों की देखरेख व पूजन का दायित्व मुस्लिम व क्रिश्चियन मतावलम्बियों के हाथों में है। इस व्यवस्था से संत खिन्न हैं। मंदिरों को अधिग्रहण से मुक्त कराकर पुरानी व्यवस्था कायम कराने के लिए संत समाज व विभिन्न हिंदू संगठन अपनी आवाज उठाते रहे हैं।
विश्व हिंदू परिषद तो बार बार कहती रही है कि समृद्ध हिंदू मंदिरों को सरकार अधिग्रहीत कर लेती है और उसके पैसे को मनमाने ढंग से खर्च करती है। इन मंदिरों की धन–संपदा को गैर–हिंदुओं के कामों में लगाया जाता है, जबकि इसका प्रयोग हिंदुओं के हित और भलाई के कार्यों में होना चाहिए।