भारतीय समाज के लिए एकता का सूत्र है सरसंघचालक का भाषण
सरसंघचालक का मुस्लिम राष्ट्रीय मंच पर दिया गया भाषण भारतीय समाज में पनप रहे विविधतापूर्ण अलगाववाद को समाप्त करने में मील का पत्थर साबित होगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत का राष्ट्रीय मुस्लिम मंच पर दिया गया भाषण कई तथाकथित उदारवादियों और भारतीय समाज को हिंदू-मुस्लिम समाज में बांटकर देखने वाले राजनैतिक व्यक्तियों को परेशान कर रहा है। सियासत की मजबूरियों के चलते वे लोग यह समझना ही नहीं चाहते कि भारतीय समाज का मूल हमेशा से एक ही था। यह अलग बात है कि भारतीय मुस्लिम समाज को सियासत के कारण हमेशा से एक वोट बैंक माना जाता रहा है। लेकिन भारतीय मुस्लिम समाज में ऐसे लोगों की संख्या लाखों में है जो मानते हैं कि उनके पूर्वज हिंदू थे और परिस्थितिवश उन्हें अपनी पूजा पद्धति, नाम और चिह्न बदलने पड़े। यदि सरसंघचालक उन लोगों को अपनी जड़ों के बारे में बताना चाहते हैं, तो इसमें क्या बुरी बात है। लोगों को उनकी बातों पर क्यों आपत्ति होनी चाहिए। आश्चर्य का विषय है कि जो हिन्दुत्व की बाराखड़ी भी ढंग से नहीं जानते, वो संघ को नैरेटिव, सनातन, ईको सिस्टम जैसे विशालकाय शब्दों से उलाहना दे रहे हैं। संघ कार्य बहुत प्रारम्भ से ही एकचालकानुवर्तित्व पद्धति से अपने नेतृत्व पर अटूट विश्वास के सहारे ही आगे बढ़ा है और वही हमें सर्वदा स्मरण रखना चाहिए।
सरसंघचालकजी के उद्बोधन में ऐसा कुछ भी नहीं है जो वर्षों से संघ न कहता रहा हो। संघ के अनुसार हिन्दू कौन है? हिन्दू वह है जो हिमालय से सागर पर्यन्त फैले विस्तृत भू भाग का निवासी है तथा इस भूमि को मातृभूमि, पितृभूमि, पुण्यभूमि मानता है तथा इसके मानबिंदुओं, श्रद्धा केन्द्रों तथा जीवन मूल्यों के प्रति आस्था रखता हो। यही बात वीर सावरकर तथा स्वामी विवेकानन्द भी स्वीकार करते हैं। यह स्पष्ट है कि हिन्दुत्व एक राष्ट्र्वाची शब्द है तथा उपासना पद्धति बदलने मात्र से कोई अहिंदू नहीं होता है। और इस बात के अनेकों प्रमाण हमारी सनातन काल से चली आ रही परम्परा में भी दृष्टिगोचर होते हैं। स्वयं सरसंघचालक जी ने भी न केवल इस भाषण में अपितु अनेकों बार इसका उल्लेख करते हुए समझाया है कि हम ” मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना” तथा ” जो चाहे जिस पथ से जाए” मानने वाली सांस्कृतिक परम्परा के वाहक हैं। इसलिए उपासना पद्धति बदलने से राष्ट्र नहीं बदलता। जब वो दोहराते हैं कि हमारा डीएनए समान है, तो वो उसी सत्य को उद्घाटित करते हैं, जो बताता है कि हमारे यहाँ रहने वाले मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू ही थे। किन्हीं तात्कालिक परिस्थितियों के कारण जो इस्लाम के अनुयायी हो गए, परिस्थितियाँ अनुकूल होने पर वो घर वापसी भी कर सकते हैं।
हमें समझना होगा कि हिन्दुत्व बहुत व्यापक है। और अब तो सुप्रीम कोर्ट का भी मनोहर जोशी वर्सेज नितिन भाऊराव पाटिल -1995 के मुक़दमे में जस्टिस जेएस वर्मा द्वारा दिया गया आदेश विद्यमान है कि हिन्दुत्व एक जीवन शैली है, न कि पूजा पद्धति। यद्यपि सेमेटिक पन्थों के भारत आगमन के उपरान्त से ही हमने हिन्दुत्व को भी उनके तराज़ू में तौलना शुरू कर दिया, सारे विभ्रम उसी से खड़े हुए हैं। यहाँ दो महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख आवश्यक है, जिनमें से एक के बारे में भागवत जी इसी भाषण में बता रहे हैं, एक – पूजनीय श्री गुरूजी की लिखी पुस्तक ” बँच ऑफ़ थॉट्स” जो हिन्दुत्व की ऐसी ही सहज- सरल परिभाषा करती है और उसकी व्याख्या में उपासना पद्धतियों के बदल जाने से राष्ट्र भाव के बदलाव को भी नकारती है, निस्सन्देह इसी कारण से भारत के मुस्लिम समाज को लगातार तब्लीगियों से लेकर जमातों तक के प्रयोगों से कट्टरता की ओर धकेलने के प्रयत्न भारतवर्ष में ही शुरू हुए। इसी कारण से मुस्लिम समाज को अल्पसंख्यकवाद के नाम पर वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया गया। दूसरा – सर्व समादर मंच के प्रादुर्भाव के उपरांत तत्कालीन सह सर कार्यवाह मान्यवर सुदर्शन जी को लिखे पत्र में श्री श्रीरंग गोडबोले लिखते है, “लाला हरदयाल जी द्वारा प्रतिपादित यह सिद्धांत मुझे स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है कि भारत में रहने वाला मोहम्मद साहब को मानने वाला इस्लाम का अनुयायी मोहम्मदपन्थी हिन्दू तथा ईसा मसीह को मानने वाला ईसाइयत का अनुयायी ईसापन्थी हिन्दू है। हमारी विविधरंगी पूजा- उपासना पद्धतियों तथा 33 कोटि देवी-देवताओं को मानने वाले हिन्दुत्व की बगिया में दो नए पुष्पों के खिलने से कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं है, किन्तु यह पागलपन है यदि इसे मुस्लिम तथा ईसाई स्वयं स्वीकार्यता न देते हों।”
पूज्य सरसंघचालक मोहन भागवत जी के उक्त भाषण को लेकर सबसे अधिक हो-हल्ला जिस बात पर मचाया जा रहा है वो है, लिंचिंग पर उनकी टिप्पणी। उन्होंने कहा, “गौ को अपनी माता मानने वाला हिन्दू समाज का कोई व्यक्ति किसी की लिंचिंग करता है, तो वो हिन्दू ही नहीं है।” ज़रा विचार कीजिए, उन्होंने क्या ग़लत कह दिया, कण-कण में ईश्वर के दर्शन करने वाला, प्राणी मात्र की चिन्ता करने वाला, पेड़- पौधे- पशु- पक्षी- चीटी- पत्थर तक में जीव देखने वाला अपना हिन्दू समाज ‘लिंचिंग’ अर्थात् किसी को घेरकर की गई हत्या को कैसे स्वीकार कर सकता है? किसी भी सभ्य समाज में इस प्रकार की अराजकता की अनुमति कैसे दी जा सकती है?
इन व्यर्थपूर्ण बातें बनाने वाले अनौचित्यपूर्ण व्यक्तियों के अनर्गल प्रलाप का दुष्परिणाम यह है कि मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के माध्यम से मुसलमानों को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने के प्रयास तथा राष्ट्र के प्रति उनके दायित्व बोध के अनुपम उपक्रम को दिग्दर्शन करवाने हेतु संघ के मान्यवर सरसंघचालक द्वारा अपने भाषण के अतुलनीय उपयोग का वास्तविक प्रतिदर्श सामने आने से रह गया है, मेरी दृष्टि में मा. मोहन जी भागवत के इस ऐतिहासिक भाषण के निम्नलिखित आयामों की सन्दर्भों के साथ सुविचारित – तर्कपूर्ण व्याख्या अवश्य की जानी चाहिए
1. ये कोई संघ की इमेज मेकओवर की एक्सरसाइज नहीं है, संघ क्या है 90 वर्षों से पता है लोगों को। संघ को इमेज की कभी परवाह रही नहीं है, हमारा संकल्प सत्य है, इरादा पक्का है, पवित्र है। किसी के विरोध में नहीं – किसी की प्रतिक्रिया में नहीं, ये अगले चुनावों के लिए मुसलमानों का वोट पाने का प्रयास भी नहीं है क्योंकि हम उस राजनीति में नहीं पड़ते।
2. हिंदू मुसलमान एकता, ये शब्द ही बड़ा भ्रामक है, ये दो हैं ही नहीं तो एकता की बात क्या? इनको जोड़ना क्या, ये जुड़े हुए हैं और जब ये मानने लगते हैं कि हम जुड़े हुए नहीं है तब दोनो संकट में पड़ जाते हैं।
3. हम लोग एक हैं और हमारी एकता का आधार हमारी मातृभूमि है। आज हमारी पूरी जनसंख्या को यह भूमि आराम से पाल सकती है, भविष्य में खतरा है – उसको समझ के ठीक करना पड़ेगा।
4. हम समान पूर्वजों के वंशज हैं, यह विज्ञान से भी सिद्ध हो चुका है। 40 हजार साल पूर्व से हम भारत के सब लोगों का डीएनए समान है।
5. हिंदुओं के देश में हिंदुओं की दशा यह हो गई तो जरूर दोष अपने ही समाज में है, उस दोष को ठीक करना है- यह संघ की विचारधारा है।
6. तथाकथित अल्पसंख्यकों के मन में यह डर भरा गया है कि संघ वाले तुमको खा जायेंगे, दूसरा ये डर लगता है कि हिंदू मेजोरिटी देश में आप रहोगे तो आपका इस्लाम चला जायेगा। अन्य किसी देश में ऐसा होता होगा, हमारे यहां ऐसा नहीं है- हमारे यहां जो – जो आया है वो आज भी मौजूद है।
7. अगर हिंदू कहते है कि यहां एक भी मुसलमान नहीं रहना चाहिए तो हिंदू, हिंदू नही रहेगा। यह हमने संघ में पहले नहीं कहा है, यह डॉक्टर साहब के समय से चलती आ रही विचारधारा है। यह विचार मेरा नहीं है, यह संघ की विचारधारा का एक अंग है, क्योंकि हिंदुस्तान एक राष्ट्र है। यहां हम सब एक हैं – पूर्वज सबके समान हैं।
8. लोगों को पता चले – किस ढंग से इस्लाम भारत में आया , वो आक्रामकों के साथ आया। जो इतिहास दुर्भाग्य से घटा है वो लंबा है, जख्म हुए हैं उसकी प्रतिक्रिया तीव्र है। सब लोगों को समझदार बनाने में समय लगता है लेकिन जिनको समझ में आता है उनको डटे रहना चाहिए।
9. देश की एकता पर बाधा लाने वाली बातें होती हैं तो हिंदू के विरुद्ध हिंदू खड़ा होता है, लेकिन हमने यह देखा नहीं है कि ऐसी किसी बात पर मुस्लिम समाज का समझदार नेतृत्व ऐसे आतताई कृत्यों का निषेध कर रहा है।
10. कट्टरपंथी आते गए और उल्टा चक्का घुमाते गए। ऐसे ही खिलाफत आंदोलन के समय हुआ, उसके कारण पाकिस्तान बना, स्वतंत्रता के बाद भी राजनीति के स्तर पर आपको ये बताया जाता है कि हम अलग हैं – तुम अलग हो।
11. समाज से कटुता हटाना है, लेकिन हटाने का मतलब यह नहीं कि सच्चाई को छिपाना है।
12. भारत हिंदू राष्ट्र है, गौमाता पूज्य है लेकिन लिंचिंग करने वाले हिंदुत्व के विरुद्ध जा रहे हैं, वे आतताई हैं, कानून के जरिए उनका निपटारा होना चाहिए, क्योंकि लिंचिंग केसेज बनाए भी जाते हैं तो बोल नहीं सकते आज कल कि कहां सही है – कहां गलत है।
13. हिंदू समाज की हिम्मत बढ़ाने के लिए उसका आत्मविश्वास, उसका आत्म सामर्थ्य बढ़ाने का काम संघ कर रहा है। संघ हिंदू संगठनकर्ता है, इसका मतलब बाकी लोगों को पीटने के लिए नहीं है।
14 . एक ने पूछा कि आप क्या करने जा रहे हैं? क्या होगा इससे? इससे तो हिंदू समाज दुर्बल होगा। मैंने कहा कमाल है- एक माइनोरिटी समाज है मुसलमान, उसकी पुस्तक का मैं उद्घाटन करने जा रहा हूं, उसमें कोई डरता नहीं है और तुम मेजोरिटी समाज के होकर के भी डरते हो कि क्या होगा? ऐसा व्यक्ति एकता नहीं कर सकता, जो डरता है। एकता डर से नहीं होती, प्रेम से होती है, निस्वार्थ भाव से होती है।
15. हम डेमोक्रेसी हैं, कोई हिंदू वर्चस्व की बात नहीं कर सकता – कोई मुस्लिम वर्चस्व की बात नहीं कर सकता, भारत वर्चस्व की बात सबको करनी चाहिए।
16. हम कहते हैं – हिंदू राष्ट्र, तो इसका अर्थ तिलक लगाने वाला, पूजा करने वाला नहीं है, जो भारत को अपनी मातृभूमि मानता है, जो अपने पूर्वजों का विरासतदार है, संस्कृति का विरासतदार है वो हिंदू है।
17. हम हिंदू कहते हैं, आपको नहीं कहना है – मत कहो, भारतीय कहो, यह नाम का, शब्द का झगड़ा छोड़ो। हमको इस देश को विश्व गुरु बनाना है और यह विश्व की आवश्यकता है, नहीं तो ये दुनिया नहीं बचेगी।
अंत में – मुस्लिम समाज को आईना दिखाने से लेकर यह स्वीकार करवाने तक कि उनके पूर्वज हिन्दू ही हैं और उन्हें हिन्दू समाज के साथ हिलमिल कर रहने से ही लाभ है, जैसे अनेकों अनछुए पहलुओं को एक भाषण में पिरोकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत जी ने अभूतपूर्व कार्य किया है। इस भाषण का स्वागत होना चाहिए। यह भाषण भारतीय समाज में पनप रहे विविधतापूर्ण अलगाववाद को समाप्त करने की दृष्टि से नवीन सोच का उन्नायक बनकर मील का पत्थर साबित होगा।