सरोगेसी जैसे संवेदनशील विषय पर एक बेहतरीन फिल्म है मीमी (फिल्म समीक्षा)
प्रियंका गर्ग
सरोगेसी जैसे संवेदनशील विषय पर एक बेहतरीन फिल्म है ‘मीमी’। यह फिल्म 2011 की मराठी फिल्म ‘माला आई वहेची’ की रीमेक है। लक्ष्मण उतेकर के निर्देशन में बनी फिल्म ‘मीमी’ फिल्मों में हीरोइन बनने का सपना देखने वाली राजस्थानी लड़की मीमी की कहानी है। मुंबई जाकर हीरोइन बनने के लिए पैसा इकट्ठा करने के लिए होटल्स में नाचती युवती मीमी अपनी स्वस्थ काया के कारण एक अमेरिकी युगल को सरोगेसी के लिए उपयुक्त प्रतीत होती है।
टैक्सी ड्राइवर भानु मीमी को पैसे का लालच देकर सरोगेसी के लिए मना लेता है। समाज की नजरों से बचने के लिए अपनी सहेली के घर रहकर हीरोइन बनने के सपने देखती मीमी अचानक धरातल पर आ जाती है, जब डॉक्टर अपनी जांच में बताती है कि बच्चा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है। अमेरिकी युगल द्वारा बच्चे को अपनाने से इंकार किए जाने पर समाज की अवहेलना झेलती हुई भी मीमी बच्चे को जन्म देती है। बच्चे में अपना संसार ढूंढती मीमी की जिंदगी में तूफान आता है, जब बच्चे के बायोलॉजिकल माता-पिता बच्चे को लेने भारत आ जाते हैं। खुद ही देवकी खुद ही यशोदा बनी मीमी क्या कानूनी रूप से उस बच्चे पर अपना अधिकार जता सकती है? इन्हीं प्रश्नों के भावनात्मक उत्तर के साथ फिल्म का अंत होता है। फिल्म अंत तक दर्शकों को बांधे रखती है।
सरोगेसी जैसे जटिल और संवेदनशील विषय के बावजूद स्वस्थ हास्य विनोद कहानी को चुस्त बनाए रखता है। गरीब युवतियों का मजबूरी में कोख को किराए पर देना, भ्रूण हत्या, तीन तलाक और रंगभेद जैसे विषयों पर बात की गई है। बच्चा गोद लेकर किसी अनाथ को परिवार देने को बढ़ावा दिया गया है। बेहतरीन संवाद अदायगी पटकथा को और मजबूत बनाती है। राजस्थान की पृष्ठभूमि दिखाने के लिए कृति सेनन का राजस्थानी लहजा ओढ़ा हुआ प्रतीत होता है। कृति सेनन, पंकज त्रिपाठी, मनोज पाहवा, सुप्रिया पाठक और सहायक कलाकारों का श्रेष्ठ अभिनय देखने को मिलता है। फिल्म देखने के बाद अपने पीछे बहुत सारे प्रश्न छोड़ जाती है।