सावरकर, एक वीर योद्धा, काल कोठरी में लिखी कविताएं
भाग – 6
अनन्य
सेल्युलर जेल में केवल शारीरिक यातना का कष्ट नहीं था, कष्ट और भी बहुत थे। भोजन ऐसा था कि किसी का भी पेट खराब हो जाए, पशु भी ऐसा भोजन न करें। दाल कच्ची होती थी, सब्जी कभी भी पूरी उबाली नहीं जाती थी और मिर्च मसाला तो छोड़ो नमक तक भी नहीं होता था। सावरकर को जिस बात से अधिक परेशानी हुई, वह यह थी कि पठान वॉर्डन ऐसा केवल जानबूझकर हिन्दू कैदियों के साथ करता था। उनकी थालियों में गोमांस के टुकड़े डाल देना आम बात थी। इस कृत्य के बाद, हिंदू कैदी भोजन का बहिष्कार कर देते थे।
हिन्दू कैदियों को मतांतरण के लिए मजबूर किया जाता था। धार्मिक आधार पर विभाजित करने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस तरह का अभ्यास नया नहीं था, जेल में भी ऐसा ही देखा गया। सावरकर के अनुसार जेल में भी हिन्दुओं का वैसे ही मतांतरण किया जाता, जैसे बाहर मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्रों में होता था।
मुस्लिम वॉर्डन को जान बूझकर हिन्दू राजनीतिक बंदियों के लिए नियुक्त किया गया था। ये वॉर्डन बंदियों को इस्लाम अपनाने के लिए कहते, परिणामस्वरूप उनकी शिकायत और दंड से छूट मिलेगी ऐसा प्रोत्साहन भी देते। लेकिन सावरकर ने इन सभी प्रतिकूलताओं का मुकाबला किया और मतांतरण से लड़ने के लिए शुद्धि का अपना आंदोलन शुरू किया। कई कैदियों को वापस हिन्दू धर्म में स्वीकार कर लिया गया, जिन्हें जिहादी इस्लाम में परिवर्तित कर दिया गया था।
कई ब्रिटिश अधिकारी सावरकर का साक्षात्कार लेने भी आए और उनके चेहरे पर पश्चाताप का कोई भाव नहीं देखा। वे उनके साथ किए गए बर्बर व्यवहार के विरुद्ध जेल में नियमित रूप से हड़ताल करते थे, जिसके लिए उन्हें कभी-कभी हथकड़ी या कई महीनों तक के लिए जंजीरों से दंडित किया जाता था। सावरकर के साथ इस व्यवहार की चर्चा ब्रिटिश संसद में भी हुई ।
विनायक दूसरों को शिक्षित करके राष्ट्रीय कर्तव्य और सामाजिक सेवाओं के अपने विचारों का प्रसार करते थे और विनायक द्वारा प्रशिक्षित जो भारतीय बन्दी जेल से छूटे थे, उन्होंने इसी तरह के विचार अन्य समूहों में ले जाने का कार्य प्रारम्भ किया। उन्होंने काल कोठरी की दीवारों पर कविताएँ और लेख लिखे क्योंकि उन्हें लेखनी और पन्नों से भी वंचित कर दिया गया था।
इस बीच प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, विनायक को अभिनव भारत के क्रांतिकारियों का संदेश मिला कि उन्होंने उन्हें जेल से छुड़ाने और बमबारी करने के लिए एक पनडुब्बी की व्यवस्था की है।
लेकिन युद्ध की समाप्ति के तुरंत बाद, जैसा कि सावरकर ने देखा, विश्व राजनीति में कट्टर इस्लामवाद का विचार डेरा डाल रहा था, जो भारत में भी बढ़ रहा था और गांधी जैसे भारतीय नेताओं द्वारा समर्थित था।
क्रमश:
हम दुःखी और व्यथित हो जाते है जब जब आज़ादी को बेड़ियों में झकड़े हुए पाते है ……!?
माना कि बेबसी की मजबूरियां उस वक्त रही
पर आज भी वही बेबसी फिर से क्यो नजर आई
#बंगाल_हिंसा #छबड़ा_हिंसा