सावरकर ने सम्पूर्ण विश्व में भारतीय स्वतंत्रता की अलख जगायी
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जन्म जयंती के अवसर पर प्रकाशित लेखमाला – भाग तीन
अनन्य
अभिनव भारत की निरन्तर चलने वाली अदम्य गतिविधियाँ स्कॉटलैंड यार्ड के लिए चिंता का कारण बनने लगी थीं। उनकी स्थिति गंभीर हो गई, अभिनव भारत ने यूरोप में “वंदे मातरम्” नाम से एक मुखर समाचार पत्र का प्रकाशन किया। मैडम कामा (पारसी महिला क्रांतिकारी) द्वारा संपादित, “तलवार”और श्याम जी का “भारतीय समाजशास्त्री” भी अंग्रेजों की चिंता का विषय बना। भारत की स्वतंत्रता के मामले को तीव्रता देने के लिए, विनायक समय-समय पर गुरुमुखी में भी सिखों को संबोधित करते अत्यधिक तेजस्वी पत्रक प्रकाशित करते थे।
सावरकर का अंतरराष्ट्रीय प्रेस द्वारा साक्षात्कार किया जा रहा था और वे भारत की स्वतंत्रता के संबंध में अमेरिकी और फ्रांसीसी पत्रों में नियमित रूप से संपादकीय लिख रहे थे। अंग्रेजी मीडिया भारतीयों को गंवार अनपढ़ के रूप में चित्रित करने के अभियान का सावरकर द्वारा हर संभव प्रतिवाद किया जा रहा था।
भारत में बमों के धमाकों से अंग्रेजों की नाक में दम करने और क्रांतिकारी लेखों से भारत में स्वतंत्रता की मशाल जलाए रखने के बाद अब बारी थी अंतराष्ट्रीय समर्थन जुटाने के लिए। इसके लिए मैडम कामा को पेरिस में होने वाले समाजवादी अधिवेशन में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था। इसके लिए सावरकर ने सभी पंथों और प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते हुए भारतीय स्वतंत्रता का पहला ध्वज तैयार किया था। अंग्रेजों के कानून में एडवोकेट बनने के लिए रानी के नाम की शपथ लेनी पड़ती थी, लेकिन सावरकर ने डिग्री नहीं लेना स्वीकार किया। केवल इसीलिए क्योंकि वो अंग्रेजी राज की परतंत्रता किसी भी स्वरूप में स्वीकार नहीं कर सकते थे।
अंग्रेजों के दमन और नीतियों से तंग आकर अभिनव भारत के साहसी क्रांतिनायक मदन लाल ढींगरा ने कर्जन वाइली को गोली मार दी। यह समाचार विश्व भर में भारतीय क्रांतिकारियों को एक तरफ़ प्रसन्नता देने वाला था, तो दूसरी तरफ़ उन पर अंग्रेजों के क्रूर अत्याचारों को बढ़ाने वाला भी। मदनलाल पर वाद दायर किया गया और फांसी दे दी गई।लंदन में रहने वाले प्रमुख भारतीयों द्वारा आयोजित बैठक में अधिकतर ने मदनलाल ढींगरा की फांसी का समर्थन कर सर्वसम्मति से निंदा प्रस्ताव पारित करना चाहा, लेकिन सावरकर ने अकेले इस प्रस्ताव का विरोध कर इसे सर्वसम्मति से पारित नहीं होने दिया।
लंदन में क्रांतिकारी आयोजनों से सावरकर का नाम खुलकर जोड़ा जा रहा था सावरकर अब पेरिस के लिए रवाना हो गए क्योंकि लंदन में उनके सभी काम अंग्रेजों ने रोक दिए थे ।
क्रमश: