सिसक रहा प. बंगाल, हिन्दू बस्तियों को समाप्त कर रातों-रात मस्जिदें खड़ी की गईं
डॉ. मयंक चतुर्वेदी
बंगाल विधानसभा चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद से जैसे पश्चिम बंगाल को आग के हवाले कर दिया गया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस से जुड़े लोग हत्या और आगजनी में शामिल हैं, यह बात भी अब सामने आ गई है। हिंसा का यह खेल राज्यपाल के कई बार के हस्तक्षेप के बाद भी समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा। इसके विपरीत अब जिहादियों ने कमजोर हिन्दू को चुनावी हिंसा की आड़ में निशाना बनाना शुरू कर दिया है। वस्तुत: दुख की बात यह है कि भारत के लोकतंत्र को आघात पहुंचाती इन घटनाओं पर केंद्र से कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं दी जा रही और जो न्यायालय किसी आतंकवादी की फांसी को लेकर उठे सवालों के लिए देर रात खोल दिए जाते हैं और तमाम बातें स्वत: संज्ञान में ले ली जाती हैं, उन न्यायालयों से पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा पर अब तक कोई तीखी प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिल रही है।
अभी कुछ दिन पहले ही राज्यपाल जगदीप धनखड़ के पीड़ितों की करुण व्यथा सुन रोते हुए फोटो और वीडियो सामने आए। जिन्हें जिसने देखा, वह ध्वस्त हो चुकी कानून व्यवस्था को कोसता नजर आया। ममता की पार्टी और सरकार पीड़ितों को न्याय कैसे मिले यह ना करते हुए, इसमें लगी दिख रही है कि राज्यपाल धनखड़ को कैसे राज्य से विदा किया जा सकता है। दूसरी ओर ये हिंसा समय बीतने के साथ कम होने के स्थान पर बढ़ती जा रही है। सामने आ रहे वीडियो व फोटो में स्पष्ट दिख रहा है कि कैसे इस्लामिक जिहादियों की भीड़ किसी घर पर हमला करती है और मारकाट मचाती है।
गौर करने वाली बात यह है कि यहां प्रारंभ हुए हमलों में हिन्दू महिलाओं को योजनाबद्ध तरीके से निशाने पर लिया जा रहा है। 142 महिलाओं के साथ अमानवीय अत्याचार हुए हैं, अनेक महिलाओं के शील भंग हुए। फोटो ऐसे वीभत्स हैं कि देखे भी नहीं जा रहे। लगभग 11 हजार से अधिक हिन्दू बेघर हो चुके हैं तथा 40 हजार से अधिक प्रभावित हुए हैं। चुन-चुन कर पांच हजार से अधिक मकान ध्वस्त करने के साथ ही सात स्थान यहां ऐसे भी सामने आए, जहां पर हिन्दू बस्तियों को समाप्त कर रातों-रात मस्जिदें खड़ी की गईं। सिर्फ सुंदरबन में ही 200 से अधिक घरों पर बुलडोजर चला है। हिन्दू बस्तियों पर हमलों की 1627 घटनाओं की पुष्टि भी हो चुकी है। परिदृष्य इतना भयानक है कि दो हजार से अधिक हिन्दू असम, उड़ीसा व झारखंड में शरण लेने को विवश हैं। वस्तुत: पश्चिम बंगाल की स्थिति कितनी खराब है, वह राज्यपाल जगदीप धनखड़ के रुँधे कंठ से निकली इस बात से भी पता चलती है। जिसमें उन्होंने कहा, मेरे राज्य के लोगों को जीने के लिए धर्म परिवर्तन को विवश होना पड़ रहा है। बंगाल हिन्दुओं के लिए एक ज्वालामुखी बन गया है।
अब सवाल यह है कि क्या यह एक दिन भी पैदा हुई परिस्थितियां है? सही जानकारी के लिए हमें एक बार वर्षों पीछे जाना होगा। यहां के 2011 जनसंख्यात्मक आंकड़े देखें तो बहुत कुछ साफ समझ आने लगता है। पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी आबादी की व्यापक स्तर पर हुई अवैध घुसपैठ ने भू-राजनीतिक-सांस्कृतिक परिदृश्य ही परिवर्तित कर दिया है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद, मालदा और दक्षिण 24 परगना के सीमावर्ती जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण व्यापक रूप से जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुआ है. आज इन्हीं स्थानों पर स्थिति सबसे ज्यादा खतरनाक है।
देश विभाजन के बाद 1951 की जनगणना में पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की कुल जनसंख्या 49,25,496 थी जो 2011 की जनगणना में बढ़कर 2,46,54,825 यानि लगभग पांच गुना हो गई। भारत के जनगणना आयुक्त की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल में 2011 में हिन्दुओं की 10.8 प्रतिशत दशकीय वृद्धि की तुलना में मुस्लिम जनसंख्या की दशक वृद्धि दर 21.8 प्रतिशत रही। इस तरह, हिन्दुओं की तुलना में मुसलमानों की वृद्धि दर दोगुने से भी अधिक दर्ज की गई है।
देखा जाए तो 1951 के बाद से हर जनगणना में पश्चिम बंगाल के औसत की तुलना में हिन्दुओं की वृद्धि दर कम ही रही है। इसी के साथ यह बात भी ध्यान में आती है कि आखिर ऐसा क्यों है कि मुसलमानों की वृद्धि दर हमेशा से हिन्दुओं की वृद्धि दर की औसत तुलना में अधिक रहती है। हिन्दू जनसंख्या की वृद्धि दर के मुकाबले मुस्लिम जनसंख्या 1981 में 8.18 प्रतिशत अंक अधिक, 1991 में 15.80 अंक अधिक, 2001 में 11.68 अंक अधिक और 2011 में 11 अंकों की अधिक दर्ज की गई।
यही नहीं, वर्ष 2011 में पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर प्रदेश की औसत दशकीय वृद्धि की तुलना में 7.87 अंक अधिक थी। अगर जनसांख्यिकीय नजरिए से देखें तो इस तरह लगातार एक लंबे समय तक वृद्धि दर में इतना अधिक अंतर हैरतअंगेज ही नहीं, बल्कि बेहद चिंताजनक भी है। वस्तुत: इस वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा बांग्लादेशी घुसपैठ यानि बांग्लादेश के मुसलमानों का अवैध आगमन भी है।
आज बांग्लादेश से आए अवैध मुसलमान एवं रोहिंग्याओं का यह परिणाम है कि पश्चिम बंगाल में जनसंख्या संतुलन तो बिगड़ा ही है। धर्म के आधार पर हिंसात्मक गतिविधियों में भी वृद्धि हो रही है। मदरसों की संख्या बढ़ रही है। छोटे अबोध बच्चों को जिहादी शिक्षा दी जा रही है। यह कहने के पीछे का तर्क यही है कि यदि मदरसों में सर्वपंथ सद्भाव की शिक्षा दी जाती रही होती तो आज यहां इस तरह से योजनाबद्ध तरीके से हिन्दुओं पर हमले नहीं हो रहे होते।
अब बड़ा सवाल यह है कि हिंसा यहां रुके कैसे? इसका सीधा सा उत्तर है, केंद्र हस्तक्षेप करे। राष्ट्रपति शासन लगाए। जब स्थिति पूर्णत: शांत हो जाए तो सत्ता पुन: चुनी हुई ममता सरकार के हवाले कर दे, इस शर्त के साथ कि यदि फिर से कहीं भी कोई हिंसा हुई तो बिना देर किए राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाएगा। दूसरी ओर न्यायालय भी स्वत: संज्ञान ले और फिर वह हिंसा फैलाने वाला कोई भी क्यों ना हो, उसे सख्त से सख्त सजा सुनाने में जरा भी देरी ना करे। जारी हिंसा को रोकने के लिए भारतीय लोकतंत्र में यही आज सबसे बड़े हथियार पश्चिम बंगाल के लिए नजर आते हैं।