सीवी रमन को नोबेल पुरस्कार मिलना भारतीय विज्ञान को मान्यता मिलने जैसा था
(भारतरत्न सीवी रमन जन्म जयंती/ 7 नवंबर पर विशेष)
वीरेंद्र पांडेय
भारत का स्वतंत्रता संग्राम संघर्षों-आन्दोलनों से भरा हुआ था, साथ ही उस दौर में एक और संघर्ष था भारतीय ज्ञान-विज्ञान को मान्यता दिलाने का। लोग भारतीय अविष्कारों को सहज में स्वीकार नहीं करते थे। यह संघर्ष भारतीय समाज और प्रतिभाओं को स्वाभिमान-स्वावलंबन की प्रेरणा दिलाने के लिए जरूरी था। आज जब हमारा देश स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है तो ऐसे में इस बात की आवश्यकता है कि भारत उन आविष्कारों और वैज्ञानिकों को याद करे स्मरणांजलि दे, जिनके कृतित्व से इस देश के प्रति लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ। ऐसे ही एक नायक थे सर सीवी रमन।
7 नवंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर में जन्मे चंद्रशेखर वेंकट रमन अपने माता पिता के आठ बच्चों में से दूसरे थे। उनके पिता चंद्रशेखरन रामनाथन अय्यर गणित और भौतिकी के शिक्षक थे। बहुत छोटी उम्र से ही सीवी रमन की शिक्षा असाधारण रही। वह पुस्तकें पढ़ने में रुचि रखते थे और विज्ञान एक विषय के रूप में हमेशा रमन को अपनी ओर आकर्षित करता था। जैसे-जैसे वे बड़े हुए, उन्होंने अपने पिता की पुस्तकें पढ़ना शुरू किया। कॉलेज और विश्वविद्यालय में पूरी शिक्षा के दौरान, अकादमिक उत्कृष्टता सीवी रमन की विशेषता बन गई। संभवतः 20वीं सदी के सबसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिक सीवी रमन को स्वतंत्रता के बाद भारत के पहले राष्ट्रीय प्रोफेसर के रूप में चुना गया था।
ब्रिटिश शासन काल में किसी भी प्रतिभाशाली भारतीय का वैज्ञानिक बनना आसान नहीं था। कॉलेज के बाद सीवी रमन ने भारत सरकार के वित्त विभाग की एक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। इसमें वे प्रथम आए और फिर उन्हें जून 1907 में असिस्टेंट अकाउंटेंट जनरल बनाकर कलकत्ता भेज दिया गया। एक दिन वे अपने कार्यालय से लौट रहे थे कि उन्होंने एक साइन-बोर्ड देखा – इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टीवेशन ऑफ साइंस। इसे देख उनके अंदर की वैज्ञानिक इच्छा जाग गई। रमन के अंशकालिक अनुसंधान का क्षेत्र ‘ध्वनि के कंपन और कार्यों का सिद्धांत’ था। सीवी रमन का वाद्य-यंत्रों की भौतिकी का ज्ञान इतना गहरा था कि 1927 में जर्मनी में छपे बीस खंडों वाले भौतिकी विश्वकोश के आठवें खंड का लेख रमन से ही तैयार कराया गया था। इस कोश को तैयार करने वालों में रमन ही ऐसे थे, जो जर्मनी के नहीं थे।
प्रकाश के क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए सर सीवी रमन को वर्ष 1930 में नोबेल पुरस्कार दिया गया था। उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले एशियाई होने का गौरव भी प्राप्त है। रमन को नोबेल पुरस्कार मिलना भारतीय विज्ञान को मान्यता मिलने जैसा था। उसके बाद भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रति पश्चिम का दृष्टिकोण बदलने लगा।यह घटना भारतीय वैज्ञानिक स्वतंत्रता के रूप में पहचानी गई। जब भारत से अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान ने चांद पर पानी होने की घोषणा की तो इसके पीछे भी रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का ही कमाल था। फॉरेंसिक साइंस में भी रमन प्रभाव काफी उपयोग साबित हो रहा है। अब यह पता लगाना आसान हो गया है कि कौन-सी घटना कब और कैसे हुई थी।
रमन प्रभाव क्या है?
जब किसी पदार्थ पर फोटोन आपतित करते हैं तो इस पदार्थ से टकराकर ये फोटोन प्रकिर्णित हो जाते हैं अर्थात ये फोटोन अलग अलग दिशाओ में फ़ैल जाते है या बिखर जाते हैं।अलग अलग दिशाओं में फैले या प्रकिर्णित हुए अधिकतर फोटोन की ऊर्जा वही पायी गयी जो आपतित फोटोन की थी। अत: अधिकांश फोटोन की ऊर्जा या आवृत्ति और तरंगदैर्ध्य वही रही जो आपतित फोटोन की थी, लेकिन लगभग 1 करोड़ फोटोन में से एक फोटोन ऐसा पाया गया जिसकी प्रकीर्णन के बाद ऊर्जा कम या अधिक हो गयी अर्थात प्रकीर्णन के बाद फोटोन की ऊर्जा परिवर्तित हो गयी , ऐसे फोटोन को जिनकी आपतित ऊर्जा और प्रकिर्णित ऊर्जा का मान परिवर्तित हो जाता है ऐसे फोटोन को रमन प्रकीर्णित फोटोन कहते हैं और इस प्रभाव को रमन प्रभाव कहते हैं।