चिपको आंदोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा

चिपको आंदोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा

कौशल अरोड़ा

चिपको आंदोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा

क्या हैं जंगल के उपकार,
मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार,
जिन्दा रहने के आधार।

पर्यावरण को स्थाई सम्पत्ति मानने वाले महापुरुष सुन्दर लाल बहुगुणा कल (21 मई 2021) हमारे बीच नहीं रहे। उन्हें पर्यावरण गाँधी भी कहा जाता है। सुन्दरलाल बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर संस्था ने उन्हें पुरस्कृत किया था।

देवभूमि उत्तरांचल के टिहरी जिले के मरोड़ा गाँव में जन्में बहुगुणा की स्कूली शिक्षा उत्तरांचल में हुई थी। उसके बाद स्नातक अविभाजित भारत के समृद्ध शहर लाहौर से किया। शिक्षा काल में ही वह गांधीवादी सर्वोदयी कार्यकर्ता मीराबेन व ठक्कर बप्पा के सम्पर्क में आये। उनके द्वारा चलाये जा रहे समाज के विपन्न वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिये उनके साथ जुड़ गये। आजादी के बाद के प्रथम दशक में बहुगुणा ने समाज के कथित निचले तबके के लोगों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए आन्दोलन किया।

बहुगुणा ने ठक्कर बप्पा की प्रेरणा से अपनी पत्नी विमला नौटियाल के सहयोग से ग्राम सिलयारा में ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना की। वर्ष 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए 16 दिन तक अनशन किया। इसी आंदोलन के समय उनका सम्पर्क गोविन्द सिंह रावत, चण्डी प्रसाद भट्ट तथा रेणी गांव की गौरा देवी से हुआ। गौरी देवी ने चमोली जिले के जंगलों में पेड़ों की कटाई के विरोध में झपटो-छीनो आन्दोलन चलाया हुआ था। यह आन्दोलन देव भूमि में अपनी विशिष्ट पहचान बनाये हुये था। इस आन्दोलन में गौरा देवी के नेतृत्व में बड़ी संख्या में स्त्रियां जुड़ी थीं। वनों का अव्यावहारिक कटान रोकने तथा वनों पर आश्रित लोगों के वनाधिकारों की रक्षा करना इस आंदोलन का मूल उद्देश्य था। सुन्दर लाल बहुगुणा ने पर्यावरण संरक्षण के लिये पर्वतीय क्षेत्रों में जागरूकता फैलाने के लिए पदयात्राएं कीं। जिससे चमोली जिले के साथ-साथ पूरे पर्वतीय क्षेत्र में यह आन्दोलन ‘चिपको आंदोलन’ के नाम से विख्यात हुआ। इसी कारण यह विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

वर्ष 1962 में चीन युद्ध के बाद सामरिक महत्व को ध्यान में रखते हुये भारत सरकार ने तिब्बत सीमा पर अपनी पकड़ मजबूत करने करने के लिये कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक अंतर्राष्ट्रीय सीमा क्षेत्र में सड़कें बनाने का काम शुरू किया। जिसमें पर्वतीय क्षेत्रों के जंगल काटे बिना सड़क बनना सम्भव नहीं था। ऐसे में बड़े पैमाने पर जंगल की कटाई का काम प्रारम्भ हुआ। 23 मार्च 1973 को पेड़ों की कटाई के विरोध में गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं के समूह ने रैली निकाली। जिसमें 27 महिलाओं के समूह ने प्राणों की बाजी लगाकर इस आन्दोलन को सफल किया था। पहले हमें काटो, फिर पेड़ को काटना जैसे नारों के साथ आन्दोलन चला। सरकार ने पेड़ों की कटाई का आदेश वापिस लिया। पेड़ों से चिपककर उन्हें बचाने का अभियान ही ‘चिपको आन्दोलन’ के नाम से जाना गया। भारत के पर्यावरण प्रेमी और पर्यावरण संरक्षण में लगी संस्थाएं इससे प्रेरित हुईं।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संसद में वन संरक्षण कानून प्रस्तुत किया। जिससे इस क्षेत्र में पेड़ों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी गई। साथ ही केन्द्र सरकार ने अलग से वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भी बना दिया। पर्यावरण के क्षेत्र में अतुलनीय कार्य के लिये उन्हें वर्ष 1981 में पद्मश्री और 2001 में पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया ।

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3 thoughts on “चिपको आंदोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा

  1. हमे जीवन में कम से कम 2 पौधे लगाने चाहिए । और उन्हें वृक्ष बनाना चाहिए, तभी हमारा जीवन सफल हैं ।एक वृक्ष देश पुत्र समान।

  2. धरती पुत्र को प्रणाम व विनम्र श्रद्धांजलि ?
    ऐसे धरतीपुत्र विरल ही इस धरा पर आते है और सिर्फ धरती के पोषण की ही बात करते है

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