मंदिर ही क्यों, गैरकानूनी तरीके से बने मजार, मस्जिद और चर्च भी हटने चाहिए
सारांश कनौजिया
दिल्ली में प्राचीन हनुमान मंदिर तोड़ दिया गया। इसके लिए वजह बताई गयी कि यह मंदिर सौन्दर्यीकरण के रास्ते में आ रहा था। लेकिन क्या यह इकलौता मंदिर है, जो गैरकानूनी था या जिसको तोड़ा जाना चाहिए था? यदि दिल्ली की ही बात करें तो विधानसभा चुनाव से पहले देश की राजधानी में गैरकानूनी तरीके से बनी मस्जिदों का मुद्दा गर्म हुआ था। तब पता चला की बहुत सी मस्जिदें ऐसी हैं, जो सरकारी जमीनों पर बनी हुई हैं, लम्बे समय से इन मस्जिदों को अवैध होते हुए भी सौन्दर्यीकरण या विकास के नाम पर छुआ तक नहीं गया है। चुनाव खत्म होने के बाद मुद्दा भी खत्म हो गया। लेकिन सवाल अभी भी वहीं है।
अखिलेश यादव जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब नोएडा की वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी दुर्गा नागपाल को निलंबित कर दिया गया था, क्योंकि उन्होंने अवैध रूप से बन रही मस्जिद की दीवार को गिराने का निर्देश दिया था। कानपुर के सेंट्रल स्टेशन पर एक मजार बनी हुई है। पूरे देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों में से एक होने के कारण यहां कई बार सौन्दर्यीकरण का काम हुआ। हर बार मजार को नुकसान पहुंचाए बिना काम पूरा किया गया। अर्थात योजना बदली लेकिन किसी ने मजार को हाथ लगाने की हिम्मत नहीं की। हाँ, यदि मजार को ठीक करने की जरुरत पड़ी, तो जरूर लोग सामने आये। इसी प्रकार गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर भी मजार होने की बात कही जाती रही है। वेरावल जंक्शन प्लेटफॉर्म पर बनी मस्जिद पर तो लाउड स्पीकर भी लगा है।
रामपुर में जंजीर शाह की मजार सरकारी जमीन पर बनी हुई थी। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद प्रशासन ने इस मजार को गिरा दिया। उ.प्र. के ही महोबा में एक अवैध मजार वन विभाग की जमीन पर बनी हुई थी, प्रशासन जब इसे हटाने के लिए गया तो मुसलमानों ने विरोध किया। दिल्ली में दुबारा हनुमान जी का मंदिर बनाने के लिए हिन्दू मांग कर रहे हैं तो यही मुसलमान और लिबरल उन्हें गलत बता रहे हैं, प्रशासन अवैध मजार तोड़ने गया तो वह भी गलत था, यह दोहरा व्यवहार क्यों? देश में हजारों की संख्या में मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गईं, जबकि इस्लाम में किसी दूसरे की जमीन पर मस्जिद के निर्माण को गलत बताया गया है। इसलिए ये मस्जिदें भी अवैध हैं। इस्लाम में अल्लाह को छोड़कर किसी और के आगे सजदा करने को गलत बताया गया है, इसके बाद भी जगह-जगह मजारों का नियंत्रण मुस्लिमों के हाथ में है। इसलिए इन्हें भी अवैध माना जाना चाहिए।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ मजारें और मस्जिदें ही अवैध रूप से बनी हैं, चर्चों ने भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। झारखण्ड के सिमडेगा नामक स्थान पर चर्च ने कैथोलिक डायोसिस एजुकेशन सोसाइटी बनाकर सरकार की लगभग दो एकड़ जमीन पर कब्ज़ा कर लिया। झारखण्ड के ही गोड्डा नामक स्थान पर चर्च का निर्माण सरकारी जमीन पर करने की कोशिश का कुछ स्थानीय लोगों ने विरोध किया, जिसके बाद यह मामला सामने आ सका। पूरे देश में इसी प्रकार मजारें, मस्जिदें और चर्च अवैध रूप से या सरकारी जमीन पर बने हुए हैं, लेकिन इन पर कोई ध्यान नहीं देता। यदि दिल्ली में विकास के नाम पर हिन्दू मंदिर हटा दिया जाता है, तो पूरे देश में इस आधार पर बने उपरोक्त धार्मिक स्थलों को हटाने की मांग भी ठीक लगती है।