हिंदू विचार भारतवर्ष की विशालता, उदारता एवं मानवता के श्रेष्ठ गुणों का निचोड़ है
वीरेन्द्र पांडेय
आज देश में हिंदू विचार चर्चा का एक प्रमुख विषय है। वर्षों से वामपंथी बुद्धिजीवी इसकी गलत व्याख्या करते रहे हैं। देश के अंदर एक ऐसे वातावरण का निर्माण उन तथाकथित बुद्धिजीवियों के माध्यम से किया जाता रहा है कि जो व्यक्ति इस विचार का जितना विरोध करेगा, वह उतना बड़ा धर्मनिरपेक्ष कहलाएगा, इसके विपरीत इस विचार की बात करने वाला सांप्रदायिक। क्या हिंदू विचार के संबंध में इस प्रकार के विचार रखना उचित है? क्या यही इस विचार की मूल भावना है?
निश्चित रूप से जो लोग हिंदू विचार के प्रति इस प्रकार का दुराग्रह एवं लघु निरर्थक धारणा रखते हैं, वह उसकी महान संस्कृति परंपरा से अनभिज्ञ हैं तथा मजहबी संकीर्णता में जी रहे हैं। हिंदू विचार भारत की परंपरा एवं राष्ट्रीय पहचान है जो सभी मतों एवं पंथों को जोड़ने में सर्वाधिक सफल सिद्ध रही है। “सर्वे भवन्तु सुखिनः” “वसुधैव कुटुम्बकम” धर्म चक्र परिवर्तनार्थ” “सत्यमेव जयते” इत्यादि आखिर किस राष्ट्र-संस्कृति की वाणी है? अन्य धर्मों तथा राष्ट्रों के प्रति उदारता से सोचने की बात बाकी दुनिया के किसी धर्म में नहीं है चाहे वह ईसाइयत हो या इस्लाम।
हिंदू धर्म या विचार कोई पूजा पद्धति नहीं है। हिंदुस्तान के अंदर सैकड़ों पूजा पद्धतियां है और वह सबको मान्यता देता है। हिंदू विचार भारतवर्ष की विशालता, उदारता एवं मानवता के श्रेष्ठ गुणों का निचोड़ है। यह धर्म का पर्यायवाची है जो व्यक्ति और समाज में पारंपरिक सामाजिक समरसता, संतुलन तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए सहायक तत्व को स्पष्ट करता है। यह एक जीवन दर्शन एवं जीवन पद्धति है जो दुनिया भर में मानव जाति की समस्याओं को सुलझाने में सहायक है।
अभी तक हिंदू विचार को मजहब या संप्रदाय के समानार्थक मानकर उसकी गलत व्याख्या की गई। क्योंकि मजहब/संप्रदाय पूजा की पद्धति है, जबकि हिंदू विचार एक दर्शन है। जो मानव जीवन पर समग्रता से विचार करता है। समाजवाद और साम्यवाद नैतिकता पर आधारित राजनीतिक एवं आर्थिक दर्शन हैं। जबकि हिंदू विचार वह दर्शन है जो मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं के अतिरिक्त उसकी मानसिक, बौद्धिक एवं भावनात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। पिछले दिनों मैंने पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन की पुस्तक “द हिन्दू व्यू ऑफ लाइफ” पढ़ी। जिसमें वह लिखते हैं कि “हम हिंदुत्व के व्यवहारिक भाग को देखें तो पायेंगे कि यह जीवन पद्धति है। नास्तिक अथवा आस्तिक सभी हिंदू हो सकते हैं, बशर्ते वे हिंदू संस्कृति और जीवन पद्धति को अपनाते हों।” हिंदू विचार कोई संप्रदाय नहीं है, अपितु उन लोगों का समुदाय है जो सत्य को पाने के लिए प्रयत्नशील हैं। इसी प्रकार इंग्लैंड के एक महान लेखक अपनी पुस्तक “द एसेंशियल टीचिंग ऑफ हिन्दूज्म” में लिखते हैं कि “आज हम जिस संस्कृति को हिंदू संस्कृति के रूप में जानते हैं और जिसे भारतीय सनातन धर्म है या नियम कहते हैं, वह उस मजहब से बड़ा सिद्धांत है जिस मजहब को पश्चिम के लोग समझते हैं।
भारत के संदर्भ में हिंदू विचार ही राष्ट्रीयत्व है। जहां हिंदू विचार घटा, देश वहां बंटा। पूर्वोत्तर के राज्य तथा जम्मू-कश्मीर इसका ज्वलंत प्रमाण है।
“लोका समस्ता सुखिनो भवंतु”
(लेखक सहायक आचार्य एवं शोधकर्ता हैं )