हिन्दूफोबिया के शिकार खटाणा, आदर्श, कन्हैया…., लिस्ट लम्बी है
हिन्दूफोबिया के शिकार खटाणा, आदर्श, कन्हैया…., लिस्ट लम्बी है
दुनिया में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहॉं अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों से अधिक अधिकार प्राप्त हैं और वे (मुस्लिम) बहुसंख्यकों पर दबंगई से पेश आते हैं। उनकी घृणा (हिन्दूफोबिया) के चलते राजस्थान ही नहीं देश भर में न जाने कितने हिन्दू प्रति वर्ष अपनी जान गंवा देते हैं। राजस्थान में ताजा मामला कोटा का है।
गुरुवार (23 मई, 2024) को संघ के कार्यकर्ता रहे 65 वर्षीय सत्यनारायण खटाणा की मृत्यु हो गई। चिकित्सकों ने इसका कारण ब्रेन हैमरेज बताया। परिजन इसे स्वाभाविक घटना मान रहे थे। लेकिन तभी कुछ सीसीटीवी फुटेज सामने आए, जिनसे पता चला कि 22 मई को फैजान, फिरोज, जीशान तथा एक अन्य युवक बुंदू ने सत्यानारायण से मारपीट की थी। इस दौरान उनकी छाती पर मुक्का मारा, जिससे वे जमीन पर गिर गए। अस्पताल ले जाने पर चिकित्सकों ने उन्हें भर्ती कर लिया। लेकिन अगले ही दिन उनका निधन हो गया। खटाणा का कुसूर यह था कि उन्होंने मंदिर जाते समय रास्ते में पड़ी निर्माण सामग्री हटाने की बात कही थी। मुस्लिम युवकों को यह सहन नहीं हुआ। उन्होंने उनके साथ हाथापाई शुरू कर दी। बाद में पता चला कि वे तो सत्यनारायण खटाणा से दुश्मनी पाले बैठे थे और अवसर की तलाश में थे क्योंकि खटाणा ने फैजान के प्रतिबंधित इस्लामिक संगठन पीएफआई के साथ उसके संबंधों को उजागर किया था।
हिन्दूफोबिया की कुछ अन्य घटनाएं
1. मई 2022 में भीलवाड़ा शहर के ब्राह्मणी स्वीट्स चौराहे पर दो मुस्लिम युवकों ने वहीं के आदर्श तापड़िया पुत्र ओमप्रकाश को बुलाकर अचानक चाकू घोंप दिया। उसे जिला चिकित्सालय ले जाया गया, लेकिन अधिक रक्तस्राव होने के कारण बचाया नहीं जा सका। पता चला, आदर्श के भाई हनी की आरोपियों से कोई कहासुनी हुई थी, जिसका उन्होंने शाम को उलाहना दिया था, बस इसी से नाराज होकर उन्होंने आदर्श की हत्या कर दी।
2. 28 जून, 2022, उदयपुर में नूपुर शर्मा के समर्थन में कन्हैया लाल ने एक पोस्ट डाली, तो रियाज और गौस ने उनकी गला काट कर हत्या कर दी।
3. जुलाई 2021, झालावाड़ के झालरापाटन में सागर कुरैशी, रईस, इमरान, सोहेल, शाहिद और अख्तर अली ने वाल्मिकी समाज के युवक की निर्ममता से पिटाई कर हत्या कर दी। समाज में दहशत फैलाने के उद्देश्य से आरोपियों ने मारपीट का वीडियो भी वायरल किया।
4. सितम्बर 2021, अलवर जिले के बड़ौदामेव में मुसलमानों ने मीना का बास में भटपुरा के एक युवक योगेश जाटव की पीट पीटकर हत्या कर दी। योगेश जाटव अपनी बहन से मिलकर बाम्बोली गांव से वापस अपने गांव भटपुरा आ रहा था। गांव के रास्ते में पड़ने वाले मीना का बास में गड्ढे से बचने में उसकी मोटर साइकिल डगमगा गई और वह एक मुस्लिम महिला से टकरा गई। इस पर मुसलमानों ने उसे इतना मारा कि 17 वर्षीय योगेश जाटव की मौत हो गई।
5. अक्टूबर 2021, अलवर के रैणी उपखण्ड क्षेत्र के छिलोड़ी गांव के शाहरुख़ खान पुत्र जोरमल खान ने सम्पत की एक खेत में गमछे से गला घोट कर हत्या कर दी। इसके बाद वह वापस गांव आया और प्रभुदयाल पुत्र मंग्या राम बैरवा के पास गया और उसे भी बहाने से बुलाकर बाजरे के खेत में ले गया और गमछे से उसका भी गला घोट दिया फिर उसे मृत समझकर वहॉं से भाग गया। वह सौभाग्यशाली था, जो बच गया
6. दिसम्बर 2021 में अलवर के मालाखेड़ा थाना क्षेत्र के बालेटा गांव में खेत में तारबंदी कर रहे एक परिवार पर गांव के ही रहमत के तीन पुत्रों आरिफ, तैयब व हनी आदि ने लाठी-डंडे से हमला कर दिया। जिसमें धर्मचंद जोगी, महेंद्र, राजेश, हरिओम गंभीर रूप से घायल हो गए। जिन्हें उपचार के लिए मालाखेड़ा सीएचसी ले जाया गया। जहां धर्मचंद को चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया।
उपर्युक्त सारी घटनाओं का यदि विश्लेषण करें, तो एक ही बात सामने आती है, वह है हिन्दूफोबिया यानि हिन्दुओं से घृणा, जिसे दबंगई और हिंसा का रूप लेने में देर नहीं लगती। हिन्दूफोबिया पर डॉ. भीमराव अंबेडकर विवि, आगरा से समाजशास्त्र में एमए अमित शर्मा कहते हैं, हिन्दू धर्म सर्वसमावेशी है। इसलिए हिन्दुओं के संस्कार ही ऐसे हैं कि वे सबको अपना मान लेते हैं और इस्लाम की कट्टरता को समझ नहीं पाते। दूसरी ओर इस्लाम में मुल्ला-मौलवी, मदरसे मुसलमानों को प्रतिदिन बताते हैं कि हर गैर मुस्लिम काफिर है। इसलिए वे किसी गैर मुस्लिम को अपना मान ही नहीं पाते, उल्टे उनके अंदर गैर मुस्लिमों के विरुद्ध आक्रामकता बढ़ती जाती है, जो जरा सी असहमति पर फूटकर बाहर आ जाती है।
वकील सुबुही खान मुस्लिम असहिष्णुता पर अपने एक लेख में लिखती हैं कि हमें आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है। यहां असहिष्णुता, उग्रवाद, आक्रामकता, क्रोध और हिंसा का एक पैटर्न है। हमें अपने शैक्षणिक संस्थानों में जाकर यह देखना होगा कि वे हमारे बच्चों को क्या पढ़ा रहे हैं। मुस्लिम युवाओं को आक्रामक बनाने के लिए फतवा ब्रिगेड भी जिम्मेदार है क्योंकि जो कुछ भी और हर चीज किसी व्यक्ति को खुश और समावेशी बनाती है, उसे हराम घोषित कर दिया जाता है। इस्लाम में संगीत, नृत्य, कला, संस्कृति, सब कुछ वर्जित है। योग और ध्यान, जिनमें अवचेतन मन को भी तरोताजा करने की क्षमता और शक्ति है, इन मौलवियों द्वारा इसकी अनुमति नहीं दी जाती है। वे शांत, धैर्यवान और प्रसन्न आत्माओं के बजाय निराश और क्रोधित आत्माओं को पैदा करने में अधिक रुचि रखते हैं।
अध्यात्म में रुचि रखने वाले कृष्ण श्रीवास्तव कहते हैं कि इस्लाम ‘धर्म’ नहीं मजहब है। धर्म परमात्मा की प्राप्ति के लिए स्वयं का मार्ग खोजने की स्वतंत्रता देता है। धर्म परम शाश्वत और भावना प्रधान है। प्रभु से प्रेम और सबका सम्मान धर्म की मूल भावना है। जबकि मजहब को थोपा जाता है, जिसमें विचारों के लिए कोई स्थान नहीं होता। जो है सो है उस पर आप प्रश्न नहीं उठा सकते। 1400 वर्षों से एक ही विचारधारा चल रही है, जो क़यामत तक चलेगी। उसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। यही बात मुसलमानों को कट्टर बनाती है और आक्रामक भी। बहुदेव पूजक अपना दायरा कितना भी बड़ा क्यों न कर लें, लेकिन वे एकेश्वरवाद के संकुचित दायरे में फिट नहीं हो पाते, इसलिए एकेश्वरवादियों के निशाने पर रहते हैं।
जर्मनी में रह रहे, इस्लाम छोड़ चुके माइक मुलुक (How Muhammad Stole the Judeo-Christian Tradition पुस्तक के लेखक) कोरा पर अपनी एक पोस्ट में लिखते हैं, मैं अपने जीवन के एक बड़े हिस्से, वयस्क होने तक मुस्लिम था। शादी के समय भी मुस्लिम था। मैं जर्मनी में अपेक्षाकृत उदार माता-पिता के घर पैदा हुआ दूसरी पीढ़ी का तुर्की आप्रवासी हूं। माँ ने हिजाब नहीं पहना था, सिर्फ सिर पर स्कार्फ पहनती थीं। किसी भी परिभाषा के अनुसार, मेरे माता-पिता मजहबी कट्टरपंथी नहीं थे। वे उतने ही सेकुलर थे, जितना उस समय कोई उदारवादी मुसलमान होता। फिर भी, मुझे सिखाया गया कि कुछ चीजें समझौता योग्य नहीं हैं मुझे इनके लिए खड़ा होना होगा, भले ही इसके लिए प्रक्रिया में हिंसक होना पड़े- जैसे यदि कोई इस्लाम का अपमान करता है, पैगंबर का मज़ाक उड़ाता है, या आपकी आस्था का सम्मान नहीं करता। इसका असर यह हुआ कि, मैं अपनी कक्षा के साथ फील्ड ट्रिप पर गया, वहॉं मुझे हलाल भोजन नहीं मिला, तो मैं नाराज हो गया। मैंने मोहम्मद के बारे में एक गंदी कविता सुनाने के लिए प्राथमिक कक्षा में एक जर्मन बच्चे को बुरी तरह पीटा। एक अन्य अवसर पर, अन्य तुर्की लड़के और मैं गलती से हमें गैर-हलाल भोजन परोसने के लिए यूथ हॉस्टल के कर्मचारियों पर क्रोधित हो गए और जब सलमान रुश्दी ने अपनी पुस्तक प्रकाशित की तो मैं एक प्रदर्शन में भी गया, पूरी तरह से क्रोधित होकर।लेकिन शादी करने और घर बसाने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं तो यह भी नहीं जानता कि ये मोहम्मद वास्तव में कौन थे। मैंने कुरान को एक के बाद एक पढ़ा, फिर भी मेरे पास मोहम्मद कौन थे, इसकी कोई सुसंगत तस्वीर नहीं थी। मुझे यह भी नहीं पता था कि मुझे हलाल भोजन क्यों खाना चाहिए, सिवाय इसके कि “यह कुरान में है” या सलमान रुश्दी की पुस्तक “खराब” क्यों थी? पारंपरिक मुस्लिम परिवार पूछताछ की संस्कृति को बढ़ावा नहीं देते हैं। आप वैसा ही करें जैसा आपसे कहा गया है… अन्यथा। और आपसे कहा जाता है कि आप इस्लाम और पैगंबर के सम्मान और अप्रत्यक्ष रूप से अपनी संस्कृति और अपनी विरासत की रक्षा करें। यह सिर्फ एक स्टीरियोटाइप नहीं है। यह सिर्फ आपके दिमाग में नहीं है। यह निश्चित रूप से कोई पूर्वाग्रह नहीं है। हम मुसलमानों को औसत पश्चिमी लोगों की तुलना में अधिक क्रोधी होने के लिए पाला गया है और यह एक बहुत बड़ी समस्या है।
शायद इसीलिए आमतौर पर देखा गया है कि बहुसंख्य हिन्दू परिवारों के बीच एक मुस्लिम परिवार अपनी सभी आस्थाओं का पालन करते हुए आराम से रहता है, लेकिन बहुसंख्य मुस्लिम परिवारों के बीच एक हिन्दू परिवार सुरक्षित नहीं।