अंग्रेज लाए थे भारत में विकसित शिक्षा प्रणाली…?

अंग्रेज जब भारत में हुकूमत करने की स्थिति में आए, तो उन्होंने सबसे पहले, भारत की शिक्षा प्रणाली का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण की रिपोर्ट इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और कुछ अंशों में भारत में भी उपलब्ध है। ये सारी रिपोर्ट सनसनीखेज हैं। हमारी सारी मान्यताओं को और हमें आज तक पढ़ाए गए इतिहास को झुठलाने वाली ये सारी रिपोर्ट्स हैं।

प्रशांत पोळ

हमारे देश में शिक्षा व्यवस्था तथा पाठशालाएं अंग्रेजों ने प्रारंभ कीं, ऐसा कहा जाता है। अंग्रेज़ आने के पहले देश में शिक्षा के मामले में अंधकार ही था, ऐसा भी बताया जाता है। हां, हमारे तक्षशिला, नालंदा जैसे विश्वविद्यालय रहे होंगे, उस जमाने में दुनिया में सर्वश्रेष्ठ। किन्तु, लगभग नौ सौ वर्ष पहले, जब मुस्लिम आक्रांताओं का आक्रमण होता गया, तब परिस्थितियॉं बदलीं। बख्तियार खिलजी जैसे अनपढ़, लड़ाकू सरदार ने नालंदा समेत अधिकतर विश्वविद्यालय नष्ट कर दिये। हमारी ज्ञान परंपरा खंडित हो गई, तो हमने समझा, हमारी सारी शिक्षा व्यवस्था ठप्प हो गई।

किन्तु ऐसा नहीं था।

मुस्लिम आक्रांताओं ने हमारे बड़े, छोटे विश्वविद्यालय ध्वस्त किए। अनेक गुरुकुल जला दिये। लेकिन उनके पास कोई शिक्षा का समानांतर मॉडल थोड़े ही था। उन के पास तो शिक्षा का ही मॉडल नहीं था। वे तो, खैबर के दर्रे के उत्तर – पश्चिम में स्थित, अनेक कबाइलियों में से थे। ये कबाइले अनपढ़, गंवार, खूंखार, लेकिन अपने धर्म के प्रति अत्यधिक कट्टर थे। कट्टरता के इसी जुनून ने उन्हें भारत में सत्ता दिलाई। लेकिन इस विशाल देश में प्रशासन चलाने का कोई विशेष ज्ञान या कोई व्यवस्था उनके पास नहीं थी। आज जिसे हम मुगल आर्ट और मुगल स्थापत्य कहते हैं, वह मूलतः भारतीय स्थापत्य ही हैं, जो इस्लामी राजाओं के लिए, या इस्लामी व्यवस्था के लिए बनाये गये हैं। यदि यह वास्तुकला इन आक्रांताओं के पास होती, तो इस शैली के अनेक वास्तु हमें भारत के बाहर, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, किरगिस्तान, उझबेकिस्तान आदि में मिलते, किन्तु ऐसा नही है।

इसलिए बड़े विश्वविद्यालय न सही, किन्तु प्राथमिक / माध्यमिक स्तर की शालाओं का जाल, सारे देश में था। यदि हिन्दू राजा, मांडलीक के रूप में थे, तो भी उन्होने शालाएं बनवाईं और चलवाईं।

अंग्रेज जब भारत में हुकूमत करने की स्थिति में आए, तो उन्होंने सबसे पहले, भारत की शिक्षा प्रणाली का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण की रिपोर्ट इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और कुछ अंशों में भारत में भी उपलब्ध है। ये सारी रिपोर्ट सनसनीखेज हैं। हमारी सारी मान्यताओं को और हमें आज तक पढ़ाए गए इतिहास को झुठलाने वाली ये सारी रिपोर्ट्स हैं।

जी. डब्लू. लेटनर नाम के ब्रिटिश आई सी एस अधिकारी ने शिक्षा व्यवस्था संबंधी सर्वेक्षण का काम किया था। उनमें से कुछ सर्वेक्षणों की रिपोर्ट के आधार पर उसने पुस्तक भी लिखी – History of Indigenous Education in Punjab : Since Annexation and in 1882. इसमें लेटनर बड़ी जबरदस्त बातें लिखता है। वो कहता है, ‘भारत में बड़ी अच्छी विकेंद्रित शिक्षा व्यवस्था है। लगभग प्रत्येक गांव की अपनी पाठशालाएं हैं, जो गॉंववाले चलाते हैं। इन पाठशालाओं को जमीन आबंटित है, जिसकी आमदनी से पाठशाला का खर्चा निकलता है।

सन 1757 में प्लासी का युद्ध जीतने के बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी का बंगाल पर कब्जा हो गया। जब उन्होंने अपना प्रशासन तंत्र अमल में लाने का प्रयास किया, तो उन्हें पता चला कि पूरे बंगाल में, कर वसूली लायक भूभाग में से, 34 प्रतिशत जमीन से कोई कर वसूली नही होती है। इस का कारण है, कि ये सारी जमीनें पाठशालाओं के लिए हैं।

लेटनर आगे लिखता है, ‘इन में से अनेक स्कूलों का स्तर तो हमारे ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज विश्वविद्यालय के बराबर का है। शिक्षकों को अच्छा वेतन दिया जाता है।

यह जी डब्लू लेटनर (G. W. Leitner) बड़े जबरदस्त व्यक्तित्व का धनी था। Dr. Gottlieb Wilhelm Leitner का जन्म 14 अक्तूबर 1840 में हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में हुआ था। लेटनर का परिवार यहूदी (ज्यू) था। उसे भाषाओं पर विलक्षण प्रभुत्व हासिल था। जब वह आठ वर्ष का था, तब कोन्स्टेंटिनोपोल (आज का ‘इस्तांबुल’) गया और वहां से अरबी तथा तुर्की भाषा सीख कर आया। दस वर्ष की आयु में वह इन दो भाषाओं के साथ, अधिकतर यूरोपियन भाषाएं सहजता से बोल लेता था। पंद्रह वर्ष की आयु में वह क्रिमिया में ब्रिटिश कमिशनरेट में अनुवादक की नौकरी करने लगा।

 

इस यहूदी नौजवान ने बाद में मुस्लिम धर्म अपना लिया, और वह अरेबिक का व्याख्याता बन कर विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगा। लंदन के किंग्स कॉलेज में पढ़ाते समय, उसे ब्रिटिश सरकार ने भारत में पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया। 1864 में लेटनर, लाहौर की Government University का प्रमुख बनकर, आई सी एस अधिकारी के रूप मे, भारत आया। 1882 में उसी ने पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना की। भारत में इस मुकाम में, उसने भारतीय प्रणालियों का गहन अध्ययन किया। लेटनर ने 1870 – 1875 के बीच में, उत्तर पंजाब के होशियारपुर जिले का बृहद सर्वेक्षण किया, जो पुस्तक के रूप में उपलब्ध है। लेटनर ने लिखा है – इस होशियारपुर जिले में साक्षरता की दर 84% है (अंग्रेजों के, भारत से जाते समय, सन 1948 में किए गए सर्वेक्षण में यह दर मात्र 9% बची थी। इस दौरान अंग्रेजों ने, गांव की पाठशालाओं को आबंटित जमीन हड़प ली। विकेंद्रित शिक्षा व्यवस्था बंद की। उसे केंद्रीकृत किया, और अंग्रेजों के अनुसार पाठ्यक्रम निर्धारित होने लगा)।

विलियम एडम यह और एक नाम है, शिक्षा प्रणाली संबंधी अध्ययन करने वाले व्यक्ति का। 1796 में स्कॉटलैंड में जन्मे विलियम, बाप्टिस्ट मिशनरी के रूप में सन 1818 में भारत आए। तब मराठों को हराने के बाद, अंग्रेजों ने लगभग पूरे देश पर अपनी हुकूमत कायम कर ली थी। विलियम 27 वर्ष भारत में रहे। यहां वे राजा राम मोहन रॉय के संपर्क में भी रहे।

लॉर्ड विलियम बेंटिक उन दिनों भारत के गवर्नर जनरल हुआ करते थे। अंग्रेजी सत्ता की राजधानी कलकत्ता थी। बेंटिक ने, विलियम एडम्स को शिक्षा विभाग में अधिकारी पद पर नियुक्त किया तथा उन्हें बंगाल और बिहार की पाठशालाओं के बारे में रिपोर्ट देने को कहा।

विलियम एडम्स ने सन 1835 से 1838 तक, तीन रिपोर्ट प्रस्तुत कीं, जो ‘एडम्स रिपोर्ट्स’ के नाम से प्रसिध्द हैं। अपनी पहली रिपोर्ट में एडम लिखता है, ‘बंगाल (उस समय का पूरा बंगाल, अर्थात आज का बंगला देश मिलाकर) और बिहार में एक लाख के लगभग स्कूल हैं। इन दोनों प्रान्तों की जनसंख्या चार करोड़ के बराबर है अर्थात प्रति 400 व्यक्तियों पर एक शाला है।

विलियम एडम ने जिसे शालाएँ कहा है, वे सारी बड़ी बड़ी शालाएँ नही हैं। उन में से अधिकतर शालाएँ, मंदिरों में, खुले आहाते में, बरगद के पेड़ के नीचे या पढ़ने वाले मास्टर जी के घर पर लगती हैं। सभी प्रकार की मूलभूत प्राथमिक शिक्षा यहां दी जाती है।

एंड्रयू बेल नामक शिक्षाविद ने सन 1802 के आसपास, भारतीय शिक्षा व्यवस्था का अध्ययन कर के इंग्लैंड की शालाओं में एक प्रणाली विकसित की, जो आज भी ‘मोनिटोरियल सिस्टम’ या ‘मद्रास सिस्टम’ के नाम से जानी जाती है। मद्रास सिस्टम इसलिए, क्यूँ कि एंड्रयू बेल और जोसफ लंकास्टर ने मद्रास इलाके के एगमोर में शालाओं का अध्ययन कर के, यह प्रणाली विकसित की।

एक और शिक्षाविद अलेक्जेंडर वॉकर ने इस भारतीय प्रणाली के बारे में लिखा है – ‘The children were instructed without violence and by a process, peculiarly simple. The system was borrowed from the Bramans and brought from India to Europe. It has been made the foundation of National Schools in every enlightened country. The pupils were the monitors of each other and the characters (अक्षर / आंकड़े) are traced with finger on the sand.’ (page no 263 of his book)

अर्थात भारत में स्वतंत्र विकसित, प्राथमिक शिक्षा की प्रणाली, इंग्लैंड ने अपनाई, और हमारी विकेंद्रित शिक्षा पद्धति को नष्ट कर के हम पर अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली थोप दी…!

क्या अब भी हम यही कहेंगे की भारत में विकसित शिक्षा प्रणाली अंग्रेज़ लाये थे…?

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