अक्षय कुमार की विशेष प्रयोजन से बनी फिल्म लक्ष्मी (फिल्म समीक्षा)
अक्षय कुमार की फिल्म लक्ष्मी को देखकर लगता है कि यह फिल्म किसी विशेष उद्देश्य को लेकर बनाई गई है।
फिल्म के निर्देशक दक्षिण भारतीय राघव लॉरेंस हैं। जिन्होंने अपनी पिछली दक्षिण भारतीय फिल्म कंचना में ईसाई धर्म के क्रॉस का प्रभाव बताया था। जिसमें क्रॉस दिखाने पर भूत भाग जाता है।
यहां राघव लॉरेंस कंचना फिल्म का रीमेक बनाना चाहते थे। प्रचारित भी यही किया गया कि कंचना फिल्म का रीमेक है।
लेकिन इस फिल्म की पटकथा को बदलकर पूर्णतया एक विशेष उद्देश्य वाली फिल्म बना दिया। जहां फ़िल्म में मुख्य किरदार का नाम राघव से बदलकर आसिफ कर दिया गया है।
फ़िल्म की शुरुआत में एक हिंदू संत को राख लपेटे हुए ढोंगी संत बताने की कोशिश की गई है। जबकि ऐसा काम सम्भवतया हिंदू साधु नहीं, ढोंगी लोग करते हैं भले ही वह मौलवी ही क्यों न हो। आसिफ नाम का यह किरदार संत को समाज में ढोंगी करार देता है।
हिंदू घर में मुस्लिम व्यक्ति यानी आसिफ की एंट्री होती है। जो कि कुछ वर्षों पहले हिंदू लड़की को भगाकर ले गया था। दिखाया गया है कि लड़की आसिफ के साथ पूर्णतया सुखी है। फिल्म में अच्छी तरह से यह बताने का प्रयास किया गया है कि एक मुस्लिम से यदि हिंदू लड़की विवाह करती है तो वह बहुत सुखी रहती है।
जब फिल्म में लक्ष्मी नाम के एक भूत की एंट्री होती है तो उस भूत को भगाने में हिन्दू साधु / पुजारी असफल हो जाता है।
लेकिन जब मौलवी के दरगाह में इलाज के लिए जाते हैं तो इलाज भी होता है और भूत को भगा भी दिया जाता है।
हिंदू के घर में जब मौलवी आता है तो भूत को पकड़ भी लेता है।
फिल्म में अब्दुल चाचा के घर एक हिंदू बच्चे को शरण मिलती है। क्योंकि ट्रांसजेंडर बच्चे को हिंदू परिवार अपनाने में भेदभाव करता है और उसे घर से निकाल देता है।
मैं इसे एक बकवास फ़िल्म करार दूंगा। क्योंकि ना तो फिल्म का फिल्मांकन अच्छा है, ना ही वह दर्शकों को बांध कर रखती है।
कुल मिलाकर शबीना खान निर्मित इस फ़िल्म में न तो कॉमेडी ही हो पाई है और न ही यह हॉरर फिल्म ही बन पाई है। इसे देखने से तो अच्छा है कि दक्षिण भारतीय फिल्म कंचना का ही हिंदी डब्ड पार्ट देख लिया जाए।