क्या अफगानिस्तान फिर से तालिबान के हाथों की कठपुतली बन जाएगा?

क्या अफगानिस्तान फिर से तालिबान के हाथों की कठपुतली बन जाएगा?

प्रीति शर्मा

क्या अफगानिस्तान फिर से तालिबान के हाथों की कठपुतली बन जाएगा?

अफगानिस्तान से अमरीकी और नाटो सैनिकों की वापसी के बाद दक्षिण एशियाई देशों को अफगानिस्तान को आतंक से मुक्त कराने के लिए सामूहिक रूप से विचार करना चाहिए। इसमें भारत की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होगी।

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान से शेष अमेरिकी सेनाओं की 11 सितंबर तक वापसी की घोषणा की है। ध्यातव्य है कि अफगानिस्तान में अनुमानित रूप से 25100 अमेरिकी एवं 7000 नाटो सैनिक तैनात है जिसे 1 मई से चरणबद्ध रूप से 11 सितंबर तक वापस बुला लिया जाएगा। संयुक्त राज्य अमेरिका पर 2001 में 9/11 के आतंकवादी हमले के पश्चात अमेरिकी अफगान संघर्ष की शुरुआत से अब तक वहां ऑपरेशन एंडुरिंग फ्रीडम अभियान के तहत हज़ारों सैनिक तैनात थे तथा गत वर्ष तालिबान के साथ ट्रंप प्रशासन द्वारा किए गए समझौते के अनुरूप सेनाओं की वापसी की घोषणा की गई थी। सेनाएं वापस भी चली जाएंगी किंतु इस क्षेत्र का भविष्य क्या होगा?

भू राजनीति में किसी अंतरराष्ट्रीय शक्ति का हट जाना कई भीषण संभावनाओं की सूचना देता है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के कई विशेषज्ञों के मन में अमेरिका द्वारा सेनाएं वापस हटा लेने के बाद अफगानिस्तान को फिर से ऐसी अनिश्चयकारी स्थितियों में घिरने का पूरा अंदेशा है जो इस देश की शांति एवं सुरक्षा के लिए खतरा हैं। अफगानिस्तान में वर्ष 2001 से लगभग 50,000 स्थानीय नागरिक, पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता आदि मारे जा चुके हैं और हजारों की संख्या में सैनिक अपने जीवन की आहुति दे चुके हैं।

अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की उपस्थिति हमेशा सवालों के घेरे में रही है। प्यू ग्लोबल एटीट्यूड प्रोजेक्ट के अंतर्गत 47 देशों के सर्वे में इनमें से 41 देश अमेरिकी सेनाओं की वापसी चाहते थे। इसके बाद वर्ष 2008 में हुए एक सर्वे में भी लगभग 60 प्रतिशत अमेरिकी नागरिक सेनाओं की वापसी चाहते थे। किंतु 2009 में ओबामा प्रशासन ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सेनाओं में बढ़ोतरी कर दी।

आतंकवाद की समाप्ति के मंसूबों को लेकर अमेरिका ने पिछले दो दशक में अफगानिस्तान में जो सैन्य कार्रवाही की, उसका नकारात्मक प्रभाव अफगानिस्तान की जनता पर जिस रूप में पड़ा वह किसी से छिपा नहीं है। समानांतर सरकार के अधीन नागरिकों की मूलभूत अधिकारों की रक्षा की समस्या बनी रही। सेनाओं की वापसी के पश्चात भी अमेरिका आतंकवाद के पूर्ण सफाए का दावा नहीं कर सकता।

इस देश की सीमाएं एक बार फिर से पाकिस्तान के अमानवीय मंसूबों के लिए खुल जाएंगी। ऐसा इसलिए, क्योंकि पिछले सितंबर से काबुल और तालिबान के बीच शांति वार्ता के प्रयास चल रहे हैं। लेकिन अब स्थिति यह है कि तालिबान ने तुर्की में प्रस्तावित अमेरिकी नेतृत्व में होने वाली शांति वार्ता में सम्मिलित होने के लिए स्पष्ट रूप से मना कर दिया है। यह अत्यंत चिंताजनक विषय है। तालिबानी वार्ताकार मोहम्मद नईम ने ट्वीट कर समस्त अमेरिकी सेनाएं वापस लौट जाने तक कोई शांति वार्ता करने से मना कर दिया।

क्या यह आतंकवाद के दूसरे चरण के संकेत नहीं है? दूसरी ओर अमेरिका का मानना है कि अफगानिस्तान में स्थाई सेना बनाए रखना तर्कसंगत नहीं है। उसका मानना है कि 2001 की अपेक्षा 2021 की परिस्थितियों को देखते हुए वर्तमान में आतंक कम है। लेकिन कई अन्य देशों और महाद्वीपों में यह तेजी से उभर रहा है। यमन, सीरिया, सोमालिया आदि देशों में अमेरिका की प्राथमिकता अपने हितों की रक्षा करना अधिक है। यह विचारणीय है कि अमेरिकी सेनाओं की वापसी के पश्चात यह क्षेत्र अधिक संवेदनशील हो जाएगा क्योंकि तालिबान का आतंकवादी कार्रवाहियों के लिए मार्ग खुल जाएगा। पाकिस्तान में फिर से शरणार्थी समस्याओं और कमजोर आर्थिक की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।

भारत क्षेत्र में महत्वपूर्ण देश है जिस पर तालिबान और पाकिस्तान की तरफ से होने वाले आतंकवादी आक्रमणों का पहले भी बुरा असर रहा है और अब पुनः भारत को इस पर गंभीर निर्णय लेने होंगे। न केवल भारत बल्कि चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर पर भी इसका विपरीत असर होने के आसार है। यह दक्षिण एशियाई भू राजनीति की गतिविधियों को प्रभावित करेगा। यह घटना पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित करेगी। किसी राजनीतिक शक्ति के हटने पर अंतरराष्ट्रीय शक्तियों का बहाव उस शून्य को भरने के लिए उस और अधिक तीव्रता के साथ होता है। अब दक्षिण एशियाई देशों को अफगानिस्तान की आतंक से मुक्ति पर गंभीरता से विचार करने का समय है।

Share on

2 thoughts on “क्या अफगानिस्तान फिर से तालिबान के हाथों की कठपुतली बन जाएगा?

  1. The security concerns of the region have been well projected! The amendment of Article 370 stands vindicated! The Centre would be in full command in the hitherto most fragile bordering state!

  2. लेख में समस्या का वर्णन तो है
    समाधान के मार्ग का संकेत भी हो.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *