असम सरकार का बड़ा कदम, बांग्लादेशी घुसपैठियों से खाली करा रही अवैध कब्जे
असम में स्वतंत्रता के बाद से ही बांग्लादेश से घुसपैठ जारी है। लाखों की संख्या में आए इन लोगों ने वन क्षेत्र एवं मठ-मंदिरों की जमीन पर अवैध कब्जे कर लिए थे। अब असम की बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सरकारी जमीन से अवैध कब्जे हटाने के लिए जो अभियान चलाया है उसके अंतर्गत अब तक लगभग 200 अवैध घुसपैठिया परिवारों से सरकारी जमीन मुक्त करा ली गई है। ये अवैध कब्जाधारी सभी परिवार मुस्लिम समुदाय से हैं।
हिमंत बिस्वा सरमा सरकार ने सरकारी जमीन खाली कराने का यह अभियान सबसे पहले दरंग जिले में शुरू किया था। स्थानीय प्रशासन ने अवैध तरीके से बसे बड़े पैमाने पर अप्रवासी मुसलमानों को हटाया जिन्होंने कथित तौर पर सिपाझार में धौलपुर शिव मंदिर के आसपास के नदी क्षेत्रों का अतिक्रमण किया हुआ था। हिमंत सरमा ने स्वयं इस बात की जानकारी देते हुए कहा, “प्रशासन ने सिपाझार में लगभग 180 बीघा, होजाई में लगभग 2,500 बीघा तथा सोटीया और करीमगंज में अवैध कब्जे वाली सरकारी और वनांचल की जमीन को खाली कराया है।”
असम प्रदेश भाजपा कमेटी के सदस्य विजय कुमार गुप्ता कहते हैं, “राज्य में बड़ी संख्या में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करके लोग बैठे हैं। ब्रह्मपुत्र नदी के उस पार 77 हजार बीघा (1 बीघा=14,400 वर्गफीट) सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा किया हुआ है।”
अपनी सरकार के 30 दिन पूरे होने पर मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक संवाददाता सम्मेलन में पूछे गए सवाल के जवाब में कहा था, “ कुछ लोग कह रहे हैं कि अवैध कब्जा करने वालों को बेदखल नहीं किया जाना चाहिए लेकिन वनांचल और मठ-मंदिरों में तो हम लोगों को बसने नहीं दे सकते।आज मंदिर में लोग बसेंगे, वनांचल में बसेंगे तो कल नई पीढ़ी को हम किस तरह का असम देकर जाएंगे?” उन्होंने यह भी कहा, “मैं दूसरी तरफ (मुसलमानों) की समस्याओं को भी समझ रहा हूँ। किस कदर वहाँ (मुसलमानों में ) जनसंख्या बढ़ रही है, इतने लोगों को कहाँ रखेंगे? आम्सू (ऑल असम अल्पसंख्यक छात्र संघ) तथा एआईयूडीएफ( एक मुस्लिम राजनैतिक दल) जैसे संगठनों को जनसंख्या नियंत्रण करने को लेकर सोचना होगा, वर्ना एक दिन ऐसा होगा कि कामाख्या मंदिर की जमीन पर लोग बसने आ जाएंगे।”
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा, “अगर कोई सोचता है कि एक लोकतांत्रिक सरकार वनांचल, मंदिर और मठ की जमीन पर लोगों को बसने देगी तो यह हमसे बहुत ज्यादा उम्मीद करने की बात होगी। इतनी उम्मीद हम मैनेज नहीं कर पाएंगे।… एक परिवार में 10-12 बच्चे जन्म लेंगे तो फिर हम नहीं कर पाएंगे।”
स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को घुसपैठ की समस्या की सही जानकारी है। न केवल यह कि बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों ने सरकारी व मठ-मंदिरों की जमीन पर अवैध कब्जा कर रखा है वरन यह भी कि उनकी जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। मुख्यमंत्री इस संबंध में कार्रवाई करने के मूड में हैं, कार्रवाई शुरु भी कर दी है। वे अपनी बात बिना लाग-लपेट के सीधे शब्दों में कहते हैं, जो तार्किक है।
अब तक की सरकारों ने वोटों के कारण मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते इस तरफ आँखें मूंद रखी थीं। परन्तु अब आशा जगी है।
बता दें कि मुख्यमंत्री ने असम में अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ को भंग कर दिया है तथा अपने शपथ ग्रहण के एक महीने के अंदर ही अवैध कब्जा हटाने का अभियान शुरू करवा दिया है।
गुवाहाटी विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर मोनिरूल हुसैन, आम्सू की सहायक सचिव हसीना अहमद तथा असम कांग्रेस की मीडिया प्रभारी बबीता शर्मा ने असम सरकार की उक्त कार्रवाइयों की निंदा व विरोध यही कह कर किया है कि भाजपा सरकार साम्प्रदायिकता फैला रही है।
जब भी घुसपैठ की बात की जाती है या उनके द्वारा भूमि हथियाने की बात होती है, या जनसंख्या नियंत्रण की बात होती है तो कहा जाता है कि भाजपा सरकारें साम्प्रदायिकता फैला रही हैं। समस्या को साफ-साफ शब्दों में कहो तो कहा जाता है कि मुख्यमंत्री मुसलमानों को टारगेट कर रहे हैं।
असम सरकार का दावा है कि असम की भूमि, पहचान, संस्कृति, भाषा और विरासत को हमलावरों और अवैध प्रवासियों से बचाने के लिए अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया गया है। अतिक्रमणकारियों से वनांचल और अन्य सरकारी भूमि को पुनः प्राप्त कर उस जमीन को “स्वदेशी” भूमिहीन लोगों कोआवंटित करना भाजपा के चुनावी वादों में से एकथा।
असम में दो बच्चों की नीति
असम के मुख्यमंत्री ने जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में अपनी सरकार की नीति साफ कर दी है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि जनसंख्या नीति शुरु हो गई है। अब असम में ॠण माफी हो या अन्य सरकारी योजनाएं, दो बच्चों की नीति का ध्यान रखा जाएगा।
बीते 10 जून को मुख्यमंत्री ने अल्पसंख्यक समुदाय से उचित परिवार नियोजन अपनाने का अनुरोध किया था। उन्होंने कहा था कि (मुस्लिम) समुदाय में गरीबी कम करने में सहायता के लिए सभी पक्षकारों को आगे आना चाहिए और सरकार का समर्थन करना चाहिए। मुख्यमंत्री सरमा ने कहा कि उनकी सरकार अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं को शिक्षित करने की दिशा में काम करेगी ताकि इस समस्या से प्रभावी रूप से निपटा जा सके। उन्होंने (मुस्लिम) समुदाय के नेताओं से आत्मावलोकन करने तथा लोगों को जनसंख्या नियंत्रण करने के लिए प्रेरित करने का अनुरोध भी किया।
असम के एक भाजपा नेता विजय कुमार कहते हैं, “नदी तटीय चार इलाकों में मुसलमान महिलाएं बहुत गरीबी की हालत में रहती हैं। उनके पास शिक्षा का अभाव है। एक महिला के 10 से 15 बच्चे होते हैं। अगर महिलाएं शिक्षित होंगी तो स्वभाविक रूप से जनसंख्या कम होगी। उनको उचित शिक्षा मिले और आर्थिक तौर पर उनका विकास हो यह बात समुदाय के लोग भी अब महसूस करने लगे हैं। आम्सू (ऑल असम अल्पसंख्यक छात्र संघ) की सहायक सचिव हसीना अहमद ने मुख्यमंत्री की बात का समर्थन करते हुए कहा है, “मुसलमानों में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर मुख्यमंत्री ने जो मिलकर काम करने की बात कही है, हम उसका स्वागत करते हैं।” वस्तुतः यही उचित दृष्टिकोण है तथा दूसरे राजनैतिक दलों तथा मुस्लिम संगठनों को भी सरकार का समर्थन करना चाहिए। यद्यपि दो बच्चों की नीति से चाय बागानों में काम करने वाले मजदूर तथा एससी/एसटी वर्ग के लोगों को अलग रखा गया है परन्तु असम सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि भविष्य में सरकारी योजना का लाभ लेने हेतु सभी के लिए दो बच्चों की नीति अनिवार्य होगी।