अ. भा. प्र. स. प्रस्ताव – भारत को स्वावलम्बी बनाने हेतु कार्यों के अवसर बढ़ाना आवश्यक

अ. भा. प्र. स. प्रस्ताव - भारत को स्वावलम्बी बनाने हेतु कार्यों के अवसर बढ़ाना आवश्यक
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा प्रस्ताव
अ. भा. प्र. स. प्रस्ताव - भारत को स्वावलम्बी बनाने हेतु कार्यों के अवसर बढ़ाना आवश्यक
प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता, मानवशक्ति की विपुलता और अंतर्निहित उद्यम कौशल के चलते भारत अपने कृषि, विनिर्माण, और सेवा क्षेत्रों को परिवर्तित करते हुए कार्य के पर्याप्त अवसर उत्पन्न कर अर्थव्यवस्था को उच्च स्तर पर ले जाने की क्षमता रखता है। विगत कोविड महामारी के कालखंड में जहाँ हमने रोजगार तथा आजीविका पर उसके प्रभावों का अनुभव किया हैं, वहीं अनेक नए अवसरों को उभरते हुए भी देखा है; जिनका समाज के कुछ घटकों ने लाभ उठाया है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (अ.भा.प्र.सभा) इस बात पर बल देना चाहती है कि रोजगार की इस चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करने हेतु समूचे समाज को ऐसे अवसरों का लाभ उठाने में अपनी सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
अ.भा.प्र.सभा का मत है कि मानव केंद्रित, पर्यावरण के अनुकूल, श्रम प्रधान तथा विकेंद्रीकरण एवं लाभांश का न्यायसंगत वितरण करने वाले भारतीय आर्थिक प्रतिमान (मॉडल) को महत्त्व दिया जाना चाहिए, जो ग्रामीण अर्थव्यवथा, सूक्ष्म उद्योग, लघु उद्योग और कृषि आधारित उद्योगों को संवर्धित करता है। ग्रामीण रोजगार, असंगठित क्षेत्र एवं महिलाओं के रोजगार और अर्थव्यवस्था में उनकी समग्र भागीदारी जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा देना चाहिए। हमारी सामाजिक परिस्थिति के अनुरूप नई तकनीकी तथा सॉफ्ट स्किल्स को अंगीकार करने के प्रयास करना अनिवार्य है|
यह उल्लेखनीय है कि देश के प्रत्येक भाग में उपर्युक्त दिशा पर आधारित रोजगार सृजन के अनेक सफल उदाहरण उपलब्ध हैं। इन प्रयासों में स्थानीय विशेषताओं, प्रतिभाओं और आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखा गया है। ऐसे अनेक स्थानों पर उद्यमियों, व्यवसायियों, सूक्ष्म वित्त संस्थानों, स्वयं सहायता समूहों और स्वैच्छिक संगठनों ने मूल्य-वर्धित उत्पादों, सहकारिता, स्थानीय उत्पादों के प्रत्यक्ष विपणन और कौशल विकास आदि के क्षेत्रों में प्रयास प्रारंभ किए हैं। इन प्रयासों ने हस्तशिल्प, खाद्य प्रसंस्करण, घरेलू उत्पादों तथा पारिवारिक उद्यमों जैसे व्यवसायों को बढ़ावा दिया है| उन सभी अनुभवों को परस्पर साझा करते हुए जहाँ आवश्यकता है वहाँ, उन्हें दोहराने के बारे में विचार किया जा सकता है। कुछ शैक्षिक व औद्योगिक संस्थानों ने रोजगार सृजन के कार्य में उल्लेखनीय योगदान दिया है। अ.भा.प्र.सभा दुर्बल एवं वंचित घटकों सहित समाज के बड़े भाग को स्थायी रोजगार उपलब्ध कराने में सक्षम यशोगाथाओं की सराहना करती है। समाज में ‘स्वदेशी और स्वावलम्बन’ की भावना उत्पन्न करने के प्रयासों से उपर्युक्त पहलों को प्रोत्साहन मिलेगा।
उच्च रोजगार क्षमता वाले हमारे विनिर्माण क्षेत्र को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है, जो आयात पर हमारी निर्भरता भी कम कर सकता है। शिक्षा और परामर्श द्वारा समाज, विशेषकर युवाओं में उद्यमिता को प्रोत्साहन देनेवाला वातावरण देना चाहिए, ताकि वे केवल नौकरी पाने की मानसिकता से बाहर आ सकें। इसी प्रकार की उद्यमशीलता की भावना को महिलाओं, ग्रामीणों, दूरस्थ और जनजातीय क्षेत्रों में भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है। शिक्षाविद्, उद्योग जगत के पुरोधा, सामाजिक नेतृत्व, समाज संगठन तथा विविध संस्थान इस दिशा में प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं और उसके लिए यह आवश्यक है कि सरकारी तथा अन्य प्रयास इनके साथ मिलकर चलें।
अ.भा.प्र.सभा अनुभव करती है कि तीव्रता से बदलती आर्थिक तथा तकनीकी परिदृश्य की वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें सामाजिक स्तर पर नवोन्मेषी पद्धतियाँ ढूँढनी होंगी। उभरती डिजिटल अर्थव्यवस्था एवं निर्यात की सम्भावनाओं से उत्पन्न रोजगार और उद्यमिता के अवसरों का गहन अन्वेषण किया जाना चाहिए। रोजगार के पूर्व और दौरान मानवशक्ति के प्रशिक्षण, अनुसन्धान तथा तकनीकी नवाचार, स्टार्ट अप और हरित तकनीकी उपक्रमों आदि के प्रोत्साहन में हमें सहभागी होना चाहिए।
अ.भा.प्र.सभा भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करते हुए धारणक्षम एवं समग्र विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु नागरिकों से रोजगार सृजन के भारत केंद्रित प्रतिमान (मॉडल) पर काम करने का आवाहन करती है। अ.भा.प्र.सभा समाज के सभी घटकों का आह्वान करती है कि विविध प्रकार के कार्य के अवसरों को बढ़ाते हुए हमारे शाश्वत मूल्यों पर आधारित एक स्वस्थ कार्य-संस्कृति को प्रस्थापित करें, जिससे भारत वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर पुनः अपना उचित स्थान अंकित कर सके।
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *