आग छुपी थी अंगारों में….(कविता)
राम गोपाल पारीक
आग छुपी थी अंगारों में….(कविता)
आग छुपी थी अंगारों में, केवल राख हटानी थी
राजगुरु-सुखदेव-भगत सिंह, उनकी यह कहानी थी।
इनकी गर्मी से जलते थे, अंग्रेजों के पांव यहां
आजादी की हुंकारों से, पैदा होते घाव जहां।
इन वीरों के संग नाचती, आजादी दीवानी थी
आग छुपी थी अंगारों में, केवल राख हटानी थी
राजगुरु-सुखदेव-भगत सिंह, उनकी यह कहानी थी।
इनके नारों से डरती थी, अंग्रेजी सरकार यहां
ये सब पर भारी पड़ते थे, औरों की दरकार कहां।
देश प्रेम पर न्यौछावर थी, यह इनकी जिंदगानी थी
आग छुपी थी अंगारों में, केवल राख हटानी थी
राजगुरु-सुखदेव-भगत सिंह, उनकी यह कहानी थी।
फांसी के फंदे पर झूले, वंदे मातरम गाया था
नम आंखों से विदा किया, तब सबने शीश झुकाया था।
हंसते-हंसते विदा हो गए, यह कैसी कुर्बानी थी
आग छुपी थी अंगारों में, केवल राख हटानी थी
राजगुरु-सुखदेव-भगत सिंह, उनकी यह कहानी थी।