आत्मनिर्भर, आत्मसम्मान और आत्मरक्षा हो हमारा मूलमंत्र

आत्मनिर्भर, आत्मसम्मान और आत्मरक्षा हो हमारा मूलमंत्र

23 जुलाई – बाल गंगाधर तिलक जयंती

डा० क्षिप्रा

आत्मनिर्भर, आत्मसम्मान और आत्मरक्षा हो हमारा मूलमंत्र

“स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे, स्वराज्य अस्तित्व के लिए अनिवार्य है। हमारा आदर्श दया याचना नहीं आत्मनिर्भरता है।” भारत आत्मनिर्भर बने, भारतीयों के भीतर आत्मसम्मान और आत्मरक्षा के विचारों का संचार हो, तब ही भारत एक सशक्त और मजबूत राष्ट्र बनकर खड़ा होगा। मजबूत और स्वाभिमानी राष्ट्र की लोकमान्य तिलक की मान्यता का भारत सदैव ऋणी रहा है। निश्चित रूप से भारत लोकमान्य तिलक की उस मान्यता के अनुरूप अपने कदम आगे बढ़ा रहा है। फिर चाहे वह आत्मनिर्भर भारत अभियान हो या चीन की चुनौतियों के समक्ष सीना तानकर खड़ा होना या फिर अपनी शक्ति के बल पर देश की अर्थ शक्ति को मजबूत करना। लोकमान्य तिलक का सपनों का भारत साकार हो रहा है। ऐसे में लोकमान्य तिलक की जन्म जयंती आज और भी प्रासंगिक है।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 ईस्वी को कोंकण जिले में रत्नागिरी जिले के चिकली गांव में हुआ था। तिलक को “लोकमान्य”की उपाधि का अलंकरण प्राप्त है। लोकमान्य से अभिप्राय है जो सभी लोगों (जनों) द्वारा मान्यता प्राप्त हो। तिलक जन जन के प्रिय थे। तिलक का नारा व उद्घोष आज भी जन-जन में ऊर्जा का संचार करता है।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक स्वदेशी के प्रबल समर्थक थे  एवं उसको राजनीतिक प्रभावी अस्त्र मानते थे। स्वदेशी का प्रचार उनके लिए राष्ट्र की आत्मनिर्भरता तथा आत्म सम्मान का प्रतीक था। तिलक का मानना था कि स्वराज्य विचार आर्थिक और नैतिक दोनों ही दृष्टि से भारतीय हित के लिए हैं। स्वदेशी विचार द्वारा भारत अपनी अर्थव्यवस्था प्राचीन एवं परंपरागत रूप से सुदृढ़ करें यही तिलक का व्यवहारिक दृष्टिकोण था।

तत्कालीन समय में विद्यमान पूंजी और तकनीकी कौशल के अभाव को दृष्टिगत करते हुए लघु एवं कुटीर उद्योगों को अधिकाधिक रूप में बढ़ाया जाए यही उनका मंतव्य था। लघु एवं कुटीर उद्योग के द्वारा निर्मित वस्तुओं का प्रयोग सभी जन करें, चाहे वे मशीनों द्वारा निर्मित वस्तुओं की तुलना में हल्की हो तो भी स्वदेशी वस्तुओं का ही प्रयोग करें। ऐसा करने से देश की आर्थिक आत्मनिर्भरता का मार्ग खुलता है। तिलक का मानना था कि तकनीकी शिक्षा और विदेशी पूंजी का विस्तार इन दोनों माध्यमों से स्वदेशी कौशल के बढ़ने से विदेशी पूंजी के आधार पर किया गया औद्योगिकीकरण ही देश की आत्मनिर्भरता का पूरी तरह माध्यम बन सकता है।

स्वदेशी भाव से नैतिक आधार पर देशवासियों में स्वाभिमान का भाव विकसित होगा। मात्र आर्थिक आधार ही नहीं वरन स्वाभिमान और आत्मनिर्भर बनने की भावना का सभी में संचार होगा। स्वदेशी भावना के लिए”बहिष्कार आंदोलन”आवश्यक है। जब तक बाहरी वस्तुओं का बहिष्कार नहीं करेंगे , तब तक हम पूर्णत: स्वदेशी नहीं हो सकते।

तिलक का बहिष्कार से अभिप्राय तत्कालीन समय के अनुसार “विदेशी माल का बहिष्कार” नहीं था वरन “ब्रिटिश शासन का बहिष्कार” था। तिलक ने “केसरी” साप्ताहिक पत्र में लिखा है- हमारा राष्ट्र एक वृक्ष की तरह है जिसका मूल तना स्वराज्य है और स्वदेशी तथा बहिष्कार उसकी शाखाएं हैं। स्वदेशी को अपनाने के लिए विदेशी का बहिष्कार करना ही होगा।

तिलक स्वयं द्वारा काते हुए सूत से अपने ही घर में स्वदेशी करघे से बने हुए वस्त्रों का उपयोग करते थे। तिलक मनसा, वाचा और कर्मणा त्रिविध रूप में “स्वदेशी” थे। तिलक ने “स्वदेशी” आंदोलन को आत्मविश्वास, आत्म सहायता व आत्मसम्मान प्राप्ति का द्वार बताया था। तिलक द्वारा प्रारंभ किए गए “गणपति उत्सव” और “शिवाजी उत्सव” आत्मविश्वास को बढ़ाने वाले तथा स्वदेशी के पोषक थे।

8 जनवरी 1907 में “केसरी” समाचार पत्र में उद्धृत हैं- “विदेशी वस्तु इस देश में नहीं आनी चाहिए केवल वही वस्तुएं जो यहां उत्पन्न होती हैं और निर्मित होती हैं इन्हीं का प्रयोग होना चाहिए। तिलक का पुरजोर मत था कि स्वदेशी का प्रयोग करना और विदेशी माल का बहिष्कार करना यदि इस नीति को अपनाया जाए तो देश में उद्योगों को “संरक्षण की स्थिति” प्राप्त होगी और देश का सर्वांगीण विकास संभव होगा।

वर्तमान परिदृश्य कोरोना महामारी के संकट से ग्रस्त है। संपूर्ण विश्व में अर्थव्यवस्था डगमगा गई है। हमें आत्मनिर्भर बनने की पुरजोर आवश्यकता है। चीन जैसे देश को शठे शाठ्यं नीति से सबक सिखाने का समय आ गया है और इसके लिए आवश्यक है कि पहले हम पूरी तरह आत्मनिर्भर बनें।

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *