कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता- निम्बाराम

कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता- निम्बाराम

कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता- निम्बारामकोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता- निम्बाराम

जयपुर। कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। हमें अपने गांवों को सुदृढ़ बनाना है और गांवों से युवाओं का पलायन रोकना है, तो परम्परागत व्यवसायों की ओर लौटना होगा। ये उद्गार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक निम्बाराम ने गुरुवार (8 अगस्त) को राजस्थान विश्वविद्यालय के मानविकी सभागार में ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना और ग्राम्य आधारित अर्थव्यवस्था विषय पर आयोजित एक राष्ट्रीय परिचर्चा में व्यक्त किए।

मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा, कि हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है। यदि कृषि उत्पादों में जो जहॉं पैदा होता है, उसकी वहीं प्रसंस्करण यूनिट लगे, परम्परागत ग्राम्य व्यवसायों को बढ़ावा मिले, तो पलायन रुक सकता है। उन्होंने कहा, हाथ से काम करने वाला कभी बेरोजगार नहीं रहता। आज आईटीआई और पॉलीटेक्निक किया कोई युवा खाली नहीं बैठा, सबके पास काम है, लेकिन इंजीनियरिंग किए अनेक युवा काम ढूंढ रहे हैं।

मुख्य वक्ता बाल मुकुंद पांडे (संगठन सचिव, अ.भा. इतिहास संकलन योजना, दिल्ली) ने वेदों का उल्लेख करते हुए कहा, हमारी ज्ञान परम्परा समृद्ध रही है। ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है, जो ज्ञान का खजाना है। स्वर, ताल, लय, छंद का ज्ञान सामवेद में है, अथर्ववेद में रसायन, संगणक विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान का ज्ञान है। खेत कब जोतें, बीज कब लगाएं, हल का फलक कितना बड़ा हो, हमारे पूर्वज इन बारीकियों की भी जानकारी रखते थे। हमारी अर्थव्यवस्था पहले ग्राम आधारित थी। गांवों का अपना अर्थतंत्र था। गॉंव समृद्ध होते थे, तो शहर समृद्ध होते थे। हमारे 16 संस्कारों में 27 जातियों के लोगों का समावेश होता था। लोग एक दूसरे से सीखते थे। उन्होंने कहा आज सोने का गहना बनाना किसी पॉलीटेक्निक में नहीं सिखाया जाता, लेकिन कारीगरों की कमी नहीं है। यह परम्परागत ज्ञान है।

कार्यक्रम की अध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय की कुलपति अल्पना कटेजा ने कहा, हमें अंग्रेजों से स्वतंत्रता तो मिल गई, लेकिन अभी अंग्रेजी मानसिकता से स्वतंत्र होना बाकी है। इसके लिए हमें आर्थिक देशभक्ति और टेक्नोलॉजी देशभक्ति जगानी होगी। इसका अर्थ है हमें स्वदेश में बनी वस्तुओं और स्वदेशी टेक्नोलॉजी को अपनाने की मानसिकता बनानी होगी।

परिचर्चा का शुभारम्भ दीप प्रज्वलन से तथा समापन राष्ट्रगान से हुआ। कार्यक्रम के संयोजक कैलाश गूजर ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखी और गोपाल शरण गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

परिचर्चा का आयोजन भारतीय इतिहास संकलन समिति (जयपुर प्रांत) एवं राजस्थान विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में विश्व संवाद केंद्र जयपुर के सहयोग से किया गया। इस अवसर पर इतिहास संकलन समिति व विश्व संवाद केंद्र के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं समेत राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व छात्र उपस्थित रहे।

राजस्थान विश्वविद्यालय के मानविकी सभागार में ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना और ग्राम्य आधारित अर्थव्यवस्था विषय पर आयोजित राष्ट्रीय परिचर्चा में दीप प्रज्वलन करते अतिथिगण

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