आद्य शंकराचार्य और उनके मानवीय विचार

आद्य शंकराचार्य और उनके मानवीय विचार

दर्शना

आद्य शंकराचार्य और उनके मानवीय विचारआद्य शंकराचार्य और उनके मानवीय विचार

 

भारत भूमि सदैव से पुण्यपुरुषों की जन्मस्थली एवं कर्मस्थली रही है। भारतभूमि में जब-जब भी विकृति उत्पन्न होती है, समाज में भेदभाव ऊँच-नीच, विचारों में मतभेद उत्पन्न होता है, तब-तब कोई न कोई महापुरुष अवतरित होता है। जो समाज की इन विकृतियों को समाप्त कर समाज में कीर्तिमान स्थापित करता है।

ऐसे ही पुण्यपुरुषों में आद्य शंकराचार्य का जन्म भारतभूमि के केरल प्रान्त के कालडि नामक ग्राम में हुआ। उन्होंने बाल्यकाल से ही समाज को शिक्षा देने का कार्य किया। कहा जाता है कि- यज्ञोपवीत संस्कार के समय बटुक बालक सर्वप्रथम अपनी माता से भिक्षा मांगते हैं, परन्तु शंकराचार्य ने सर्वप्रथम भिक्षा गांव में सफाई करने वाली महिला से मांगी और सिद्ध कर दिया कि त्याग की मूर्ति माता जिस प्रकार सन्तान के लिये पूज्य होती है, उसी प्रकार पूरे गांव के लिये त्याग करने वाली महिला सफाई कर्मचारी भी माता के समान पूज्य है।

माता बचपन में अपने बालक का मलमूत्र आदि बिना किसी परेशानी के अपना कर्तव्य मानकर साफ करती है। तब बालक का माता के प्रति सम्मान और आदर होता है, उसी प्रकार माता के समान महिला सफाई कर्मचारी भी बिना किसी परेशानी के अपना कर्तव्य मानकर पूरे गांव का मलमूत्र साफ करती है, तो वह माता के समान सम्मान और आदर की पात्र क्यों नहीं हो सकती अर्थात् अवश्य हो सकती है। उनका यह कृत्य यह दर्शाता है कि प्राणियों में समानता होनी चाहिये।

उनके जीवन की दूसरी घटना जो प्राणियों में भेदभाव को नष्ट करती है, काशी में शंकराचार्य और चाण्डाल का संवाद है। जब चाण्डाल शंकराचार्य का मार्ग अवरुद्ध करता है, तब शंकराचार्य के शिष्य उसे जाने को कहते हैं। तब चाण्डाल के प्रत्येक कण में ईश्वर की सत्ता है, यह कहे जाने पर कि किसे जाने को कह रहे हो, ईश्वर को अथवा चाण्डाल को। यह सुनकर शंकराचार्य को बोध प्राप्त हुआ और चाण्डाल को गुरु स्वीकार किया तथा जीवन भर अस्पृश्य जाति के लोगों तथा महिलाओं को शिक्षा और संस्कार का पूर्ण अधिकार है इसका प्रचार-प्रसार किया।

आद्य शंकराचार्य ने इसी प्रकार की शिक्षाओं की पूर्ति हेतु देश के चार कोनों में चार मठों की स्थापना की और देश को संदेश दिया कि जातिभेद से बढ़कर मानवता है, उसकी रक्षा प्रत्येक मानव का नैतिक कर्तव्य है।

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1 thought on “आद्य शंकराचार्य और उनके मानवीय विचार

  1. नमो नमः
    पाथेय कण अंक को प्रकाशित करने वाले सभी आदरणीय जनों को साभार व्यक्त करते हैं कि पाथेय कण अंक सदैव से सुगठित एवं स्वतंत्र विचारों को प्रकाशित करता है ।
    आज आद्यशंकराचार्य जंयती की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं एवं मंगलमय हो ।।
    साधुवाद।

    डॉ दर्शना जैन, जयपुर

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