आमागढ़ धरोहर का हो संरक्षण

आमागढ़ धरोहर का हो संरक्षण

पंकज मीना

आमागढ़ धरोहर का हो संरक्षण

जयपुर के गलता की पहाड़ी में स्थित आमागढ़ को शायद ही कोई जानता हो अथवा कभी किसी ने देखा हो। 4 जून को मूर्तियां तोड़ने और 13 जुलाई को किले के बुर्ज पर केसरिया झंडा लहराने से उत्पन्न हुए बवाल से कम से कम यह तो हुआ कि एक गुमनाम धरोहर को लोग जानने लगे तथा देखने भी जाने लगे।

आमागढ़ का इतिहास आज भी खोज का विषय है, पर इतना सर्वविदित है कि राजपूत काल से पूर्व वर्तमान जयपुर व आसपास के क्षेत्र को समेटे हुए ढूंढाड़ क्षेत्र में 52 छोटे बड़े राज्य थे जिन पर मीणा वंश के शासकों का राज था। इसी मीणा वंश की एक शाखा नाडला (बड गोती) गोत्र के मीणा आमागढ़ पर राज करते थे। इसी किले के पास नाडला गोत्र की आराध्य कुलदेवी आमामाता का मंदिर है। मंदिर परिसर में शिव परिवार की मूर्तियां खंडित करने से ही वर्तमान बवाल हुआ था।

महाभारत काल के पूर्व से ही इस संपूर्ण क्षेत्रफल पर मीणा शासकों का आधिपत्य था, जिसके कारण से ही हरियाणा से लेकर उत्तर प्रदेश तक के भूभाग को मध्य प्रदेश कहा जाता है। धीरे-धीरे संपूर्ण क्षेत्र से मीणा राजवंश के पैर उखड़ने लगे और राजपूत वंश का आधिपत्य होने लगा। अकबर का काल आते आते आखिरी मीणा वंश (जो कि नाहन, वर्तमान नई नाथ व लवाण तक था) का आधिपत्य भी समाप्त हो गया।

आमागढ़ के किले में मंदिर परिसर में ज्यों ही मूर्ति तोड़ने और फिर केसरिया झंडा लगाने की घटना के बाद विभिन्न समाजों में विरोध शुरू हुआ, त्यों ही राजनीतिक लोग अपनी रोटी सेंकने चले आए और फिर शुरू हुआ आरोपों-प्रत्यारोपों और विघटनकारी बयानों का दौर और एक दूसरे को गलत बताने की होड़। इन सारे आरोपों-प्रत्यारोपों के दौरान किसी भी राजनीतिक नेता ने सामाजिक एकता को तवज्जो नहीं दी और केवल अपना चेहरा चमकाने के प्रयास करते रहे।

एक कटु सत्य यह भी है कि 2018 में भी आमागढ़ परिसर में मजार बनाने का कार्य शुरू हुआ था। उस समय कुछ जागरूक नागरिकों ने प्रशासन का सहयोग लेकर बवाल होने से बचाया था। परंतु वर्तमान में इस सारे विप्लव के बीच मूल प्रश्न कहीं छूट गया। राज्य की राजधानी की नाक के नीचे इतिहास और पुरातत्व की अनमोल धरोहर का आज तक संरक्षण क्यों नहीं हुआ? इसके इतिहास पर आज तक किसी प्रकार का शोध क्यों नहीं किया गया? किन मजबूरियों में ऐतिहासिक विरासत की उपेक्षा कर गुमनामी में ढकेल दिया गया? बेहतर होता जितनी भी सामाजिक संस्थाएं हैं जो एक दूसरे का विरोध करने के लिए एकत्रित हुई थीं, वे सब मिलकर एक सुर में आमागढ़ का संरक्षण करने, उसे मुख्यधारा के इतिहास में जोड़ने तथा पर्यटन केंद्र विकसित करने की मांग करतीं। वर्तमान राजस्थान जो कि पूर्व में मत्स्य जनपद या मत्स्य राज था, के इतिहास में अभी तक राजपूत काल को ही शामिल किया हुआ है, जबकि राजपूत काल से पूर्व भी यहां एक वैभव पूर्ण इतिहास रहा है। इसमें इतिहासकारों को दोष नहीं दिया जा सकता, परंतु फिर भी राजपूत काल से पूर्व के इतिहास, धरोहर आदि पर गंभीर मेहनत की आवश्यकता है।

इतिहास लिखने में त्रुटियां किस प्रकार गफलत पैदा करती हैं, इसका एक अन्य उदाहरण है पन्ना मीना कुंड। आमेर महल के पीछे लगभग 800 वर्ष पुराना कुंड, जिसे सैकड़ों वर्षों से पन्ना मीना कुंड के नाम से जाना जाता है। पुरातत्व विभाग के रिकॉर्ड में उसे पन्ना मियां कुंड कर दिया गया है। इसे हम इतिहास की भूल के रूप में भी देख सकते हैं या इतिहास से छेड़छाड़ के रूप में भी। संपूर्ण जयपुर शहर जानता है कि वह पन्ना मीना कुंड है। परंतु पुरातत्व विभाग उसे बदलने को तैयार नहीं है।

वर्तमान घटनाक्रम में मूर्ति तोड़ने से लेकर झंडा लगाने तक उद्वेलित हुए विभिन्न समाज के नेताओं का नैतिक कर्तव्य बन जाता है कि वे धरोहर के संरक्षण व इतिहास से हुई छेड़छाड़ को दुरुस्त कराने के प्रयास करें तथा आमामाता के पावन स्थान को एकता के केंद्र के रूप में विकसित करें। सरकार को भी आमागढ़ समेत सैकड़ों ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण का कार्य प्राथमिकता पर करना चाहिए, जिससे देशवासी गौरवपूर्ण इतिहास को जान सकें।

साभार पंजाब केसरी

(लेखक सनातनी आदिवासी मीणा संस्था के अध्यक्ष हैं)

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