आमागढ़ : राजनीति चमकाने के लिए भगवा का अपमान क्यों?
जयपुर। हिन्दू समाज विविधताओं से भरा है, यहॉं हर चार कोस पर भाषा बदल जाती है और सामाजिक मान्यताएं भी, फिर भी सदियों से सब एक सूत्र में बंधे हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, अपने अपने स्वार्थ में हिन्दू समाज में फूट डालने वाले तत्व कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो गए हैं। अनुसूचित जाति समाज के साथ ही अब ये लोग अनुसूचित जनजाति समाज को भी अपना निशाना बना रहे हैं। ये लोग SC / ST समाज के भोले भाले लोगों को बरगला कर उनमें नक्सली जहर भरने और उनका कन्वर्जन कर उन्हें हिन्दू समाज से अलग करने के प्रयास कर रहे हैं।
जयपुर के गलता तीर्थ स्थित आमागढ़ दुर्ग पर विधायक की उपस्थिति में धर्म ध्वजा (भगवा ध्वज) फाड़ने वाला मामला अत्यंत गम्भीर है। राजनीति चमकाने या स्वयं को अलग दिखाने के लिए किए गए इस तरह के कृत्य समाज की सद्भावना के लिए घातक हैं।
दुर्ग पर लगाए गए भगवा ध्वज को हटाने व फाड़ने से सम्बंधित घटना के वायरल हुए वीडियो में गंगापुर सिटी के निर्दलीय विधायक रामकेश मीणा की उपस्थिति साफ दिख रही है। वीडियो में वो साफ कहते दिख रहे हैं कि इस ध्वज को हटाया जाए। एक वीडियो और है, जिसमें स्थानीय लोग जिन्होंने यह ध्वज लगाया, इस बात से आहत हैं कि यह ध्वज हटाने को कहा जा रहा है। एक युवक तो इस हद तक आहत हुआ कि उसका गला रुंध गया। ऐसा नहीं था कि ध्वज पर किसी समाज विशेष का नाम था। यह विशुद्ध तौर पर भगवा ध्वज था जो भारत की सनातन संस्कृति का प्रतीक है और भारत में जन्मे हर धर्म में भगवा का अपना महत्व है। इसके बावजूद इसे हटाया गया और फाड़ा गया।
इस काम की अगुवाई करने वाले विधायक रामकेश मीणा जो मौजूदा कांग्रेस सरकार को समर्थन दे रहे हैं, उनका कहना है कि यहां अम्बामाता का मंदिर है और मीणा समाज का ऐतिहासिक धर्मिक स्थल है। इस पर असामाजिक तत्व कब्जा करने के प्रयास कर रहे थे और इसीलिए यह ध्वज लगाया गया था। बाद में उन्होंने यह सफाई भी दी कि जिन लोगों ने ध्वज लगाया था, उन्होंने ही उसे हटाया भी है। रामकेश मीणा सार्वजनिक तौर पर यह कहते हैं कि अनुसूचित जनजाति समाज हिन्दू नहीं है। उनकी परम्पराएं और मान्यताएं हिन्दुओं से पूरी तरह अलग हैं। लेकिन साथ ही वे यह भी कहते हैं कि यहां हमारी माता का मंदिर है और यह मीणा समाज की ऐतिहासिक धरोहर है। ऐसे में यह अपने आप में ही एक विरोधाभासी बयान हो जाता है।
इस घटना की एक परत यह भी है
आमागढ़ दुर्ग में हुई इस घटना को एकाकी रूप में नहीं देखा जा सकता है, क्योंकि इस घटना की एक परत और है। दरअसल जहां अम्बामाता का मंदिर है, वहीं साथ में एक शिव मंदिर भी है। पांच जून को कुछ अज्ञात लोगों ने यहां स्थापित शिव पंचायत को खंडित कर दिया था। इस मामले में एक केस भी दर्ज हुआ था और मुस्लिम समुदाय के कुछ लड़कों को इस मामले में पकड़ा भी गया था। यह केस वहीं के एक स्थानीय व्यक्ति ने दर्ज कराया था, लेकिन बाद में मामला रफा-दफा हो गया। इस बीच सर्व समाज के लोगों ने कुछ समय प्रतीक्षा की और 13 जुलाई को इस शिव पंचायत को पुनः स्थापित कर दिया। इसी के बाद यहां यह भगवा ध्वज लगाया गया था। इस ध्वज को लगाने के पीछे मुख्य उद्देश्य यही था कि लोगों को लगे कि यहां लोग आते-जाते हैं और मूर्तियों को खंडित करने की जो घटना पहले हो चुकी है, वह फिर से ना हो। महत्वपूर्ण बात यह है कि रामकेश मीणा उस समय यहां नहीं आए, जब ये मूर्तियां खंडित की गईं और ना ही उन्होंने किसी तरह का विरोध किया।
भगवा ध्वज को फाड़ने की घटना के मामले में पुलिस में रिपोर्ट कराने वाले भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष जितेन्द्र मीणा का कहना है कि अम्बामाता मीणा समाज की आराध्य हैं, लेकिन मंदिर सबका होता है और हिन्दू समाज की परम्परा है कि हर मंदिर के साथ शिव पंचायत भी बैठाई जाती है। यदि रामकेश मीणा को मीणा समाज की धरोहर की इतनी ही चिंता थी तो उन्हें जब मूर्तियां खंडित हुईं तब भी यहां आकर विरोध करना चाहिए था, क्योंकि वे मूर्तियां इसी मंदिर का हिस्सा थीं। मीणा ने कहा कि जिस व्यक्ति के खुद के नाम में राम है, वह इस तरह की गतिविधियां और बयान दे कर हिन्दू समाज को तोड़ने की साजिश कर रहा है। यह अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि समाज को तोड़ने और आपस में लड़ाने की साजिश का हिस्सा बनना सही नहीं है।
समाज के लिए खतरनाक है यह स्थिति
प्रदेश में पिछले कुछ समय से आदिवासी समाज के कुछ प्रतिनिधियों द्वारा खुल कर यह बयान दिए जा रहे हैं कि वे हिन्दू नहीं हैं। ऐसे बयान देने वालों में अधिकतर कांग्रेस या उसे समर्थन देने वाले विधायक या भारतीय ट्राइबल पार्टी से जुड़े लोग हैं। प्रदेश के वनवासी अंचल में ये सारी ताकतें लम्बे समय से सक्रिय हैं और जनजाति समाज की अलग पहचान के नाम पर उन्हें बरगलाने के प्रयासों में जुटी हुई हैं। ये वहीं ताकतें हैं जो महाराष्ट्र, गुजरात और अन्य कई राज्यों में भी इसी तरह के प्रयास कर रही हैं। जनजाति समाज की अलग मान्यताओं और परम्पराओं से किसी का कोई विरोध नहीं है, लेकिन स्वयं को अलग दिखाने और उसके नाम पर हिन्दू समाज को तोड़ने की यह प्रवृत्ति खतरनाक संकेत है। इसे रोकने के लिए तुरंत और तेजी से प्रयास करने की आवश्यकता है।