आरपीएससी कहीं सही में ना बन जाए नाथी का बाड़ा
कुमार ऋत्विज
राजस्थान कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष और शिक्षा मंत्री कुछ दिनों पहले अपने एक बयान, नाथी का बाड़ा से जबरदस्त चर्चा में आए थे। तब उनके महकमे के शिक्षक उन तक अपनी फरियाद ले कर पहुंचे थे और उन्होंने उसे यह कहते हुए सुनने से इनकार कर दिया था कि यह उनका घर है कोई नाथी का बाड़ा नहीं। लेकिन हाल ही घोषित हुए राजस्थान लोक सेवा आयोग के राजस्थान प्रशासनिक सेवा परीक्षा 2018 (RAS 2018) के परिणाम के बाद प्रदेशवासियों को आरपीएससी (RPSC) के नाथी का बाड़ा होने का संदेह होने लगा है। दरअसल इस परिणाम में गोविंद सिंह डोटासरा के बेटे के ससुराल पक्ष के दो अभ्यर्थियों के इन्टरव्यू में आए असामान्य अंकों ने परिणाम में न केवल भाई भतीजावाद चलने की अटकलों को बल दिया है बल्कि इससे इन आरोपों को भी हवा लगी है कि कहीं मंत्री महोदय ने अपने प्रभाव का प्रयोग अपने रिश्तेदारों को उपकृत करने के लिए तो नहीं किया।
आरपीएससी ने जैसे ही बहु प्रतीक्षित आरएएस परीक्षा 2018 का परिणाम घोषित किया वैसे ही सोशल मीडिया पर गोविन्द सिंह डोटासरा की बहू प्रतिभा के भाई गौरव और प्रभा के इन्टरव्यू में अस्सी प्रतिशत अंक मिलने को लेकर पोस्ट्स वायरल होने लगीं। दोनों को इन्टरव्यू में अस्सी अस्सी अंक मिले हैं। वहीं 2016 की परीक्षा में डोटासरा की पुत्रवधू प्रतिभा डोटासरा को 80 तो उनके बेटे अविनाश को 85 अंक मिले थे। 2018 आरएएस में टॉप करने वाली मुक्ता राव को भी इंटरव्यू में 77 अंक ही मिले हैं। लिखित में कम अंक आने और बाद में साक्षात्कार में भर भर झोली अंक मिलना पूरी प्रक्रिया को ही संदेह के घेरे में खड़ा कर देता है।
परिणामों में इस प्रकार के गड़बड़झाले से छात्र उद्वेलित हैं। प्रदेश भर में छात्रों ने पूरी प्रक्रिया में गड़बड़ी की आशंकाओं के चलते जगह जगह प्रदर्शन किया है। गोविंद सिंह डोटासरा के आवास पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने जमकर प्रदर्शन किया है। इस सारे मामले में डोटासरा की स्वयं की प्रतिक्रिया थी, कि बच्चे प्रतिभाशाली हैं, इसलिए उन्हें इतने अंक मिले। पर लोग इस पर प्रतिप्रश्न करते हैं कि यह प्रतिभा लिखित परीक्षा में कम क्यों रह गई और साक्षात्कार में ही कैसे इतनी ज्यादा प्रदीप्त हुई। अब तो डोटासरा के समधी परिवार को लेकर नए नए आरोप सामने आ रहे हैं, जिनमें उनके विरुद्ध एक इस्तगासा दायर होने की भी चर्चा है। इस इस्तगासे में गौरव और प्रभा पर गलत तथ्य दे कर ओबीसी का प्रमाणपत्र बनवा लेने के आरोप लगाए गए हैं।
जाहिर है यह आरपीएससी (RPSC) की प्रतिष्ठा को दांव पर लगा देने वाला मामला है। प्रदेश सरकार के एक कद्दावर मंत्री के परिवार को तरजीह देने के इस मामले में सरकार की चुप्पी रहस्यमय है। आरपीएससी के अध्यक्ष पूर्व आईपीएस अधिकारी भूपेन्द्र सिंह यादव इंटरव्यू की प्रक्रिया को फूलप्रूफ बता कर पूरे मामले से भले ही पल्ला झाड़ने के प्रयास करें लेकिन ज्यों ज्यों इस मामले में एक के बाद एक तथ्य सामने आ रहे हैं, वे गड़बड़ी की ओर इशारा कर रहे हैं। मीडिया में आ रहे समाचारों के अनुसार आयोग के ही सदस्य अन्दर ही अन्दर इस मामले से बैचेन हैं। उन्हें आयोग की छवि की चिन्ता है जो कि होनी भी चाहिए। कहा जा रहा है कि उन्होंने मामले की आन्तरिक जांच और फुल कमीशन बुला कर मामले पर चर्चा की मांग की है।
आरपीएससी, आरएएस 2018 (RAS-2018) के साक्षात्कार प्रारम्भ होने के साथ ही विवाद में आ गया था, जब एसीबी ने साक्षात्कार में सैटिंग करवाने के नाम पर खुद को आयोग के एक सदस्य के नजदीकी रिश्तेदार का पीए बता कर पैसे लेने के आरोप में दो जनों को गिरफ्तार किया था। मामले में एसीबी ने आयोग की सदस्य राजकुमारी गुर्जर के पति भैरों सिंह गुर्जर से जयपुर मुख्यालय में बुला कर पूछताछ भी की है। वहीं मीडिया में एक वाट्सएप चैट भी चर्चा मे आई है, जिसमें किन्हीं काकोसा पर 80 से अधिक नम्बर दिलवाने की बात कही गई है। चैट में सबके फ्री में नहीं होने की बात भी बताई जा रही है।
आरपीएससी की अपनी एक गरिमा रही है। पूरे देश में इसे एक प्रतिष्ठित चयन आयोग के रूप में जाना जाता है। इससे पहले भी आयोग के अध्यक्ष हबीब खान गौरान के समय यह विवाद में आया था। इस बार का विवाद अलग है। इसमें सीधे सीधे सरकार के एक मंत्री पर प्रक्रिया को प्रभावित करने के आरोप लगे हैं। एसीबी ने लेनदेन के मामले में दो जनों को गिरफ्तार किया है।
नहीं भूलना चाहिए प्रदेश के लाखों युवा कई कई साल तक इन परीक्षाओं के जरिए अपना भविष्य संवारने के लिए तैयारी में जुटे रहते हैं। उन्हें लगता है कि वे अपनी मेहनत पढ़ाई और प्रतिभा के दम पर अन्य अभ्यर्थियों से श्रेष्ठता साबित कर स्वयं का चयन करवा लेंगे। ऐसे में इस तरह के मामले उन लाखों युवाओं के विश्वास की हत्या है। सरकार को चाहिए कि वह आगे आ कर इस मामले की जांच करवाए। आयोग की कार्यप्रणाली मे इस प्रकार के सुधार करवाए कि केवल योग्य अभ्यर्थियों का ही चयन सुनिश्चित हो सके। जब तक मामले की जांच पूरी नहीं हो तब तक मंत्री जी को भी नैतिक आधार पर अपने सभी पदों का त्याग कर देना चाहिए। तब ही वे स्वयं के निष्पक्ष होने के तर्क को सार्थक कर पाएंगे। अन्यथा आरपीएससी की छवि को नाथी का बाड़ा जैसी होते कोई रोक नहीं पाएगा।