कुछ लोगों ने हमारे इतिहास को खारिज करने का काम किया- डॉ. मोहन भागवत

कुछ लोगों ने हमारे इतिहास को खारिज करने का काम किया- डॉ. मोहन भागवत

कुछ लोगों ने हमारे इतिहास को खारिज करने का काम किया- डॉ. मोहन भागवतकुछ लोगों ने हमारे इतिहास को खारिज करने का काम किया- डॉ. मोहन भागवत

नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित कार्यक्रम में लेखिका नीरा मिश्रा एवं लेखक राजेश लाल की पुस्तक ‘Connecting With The Mahabharata’ का लोकार्पण किया।

उन्होंने कहा कि इतिहास मनोरंजन के लिए नहीं सुनना है या इन्फॉर्मेशन चाहिए ऐसा भी नहीं, लेकिन इतिहास से बोध लेकर अपने वर्तमान को ठीक बनाकर चलना है ताकि भविष्य ठीक हो जाए। इस इतिहास को पढ़ने का, इस इतिहास को याद करने का, इस इतिहास पर गौरव करने का, इसके अनुसार एक युगानुकूल, देशानुकूल नई रचना खड़ी करने का, रचना का रूप अलग हो सकता है।

हमारे सारे इतिहास को कुछ लोगों ने ख़ारिज करने का काम किया, ये हुआ ही नहीं…. ये रामायण- महाभारत कविताएँ हैं। क्या कोई कविता 8 हजार साल, 5 हजार साल चली है? केवल कविता होने से नहीं चलती है, लोकश्रुति की जो परम्पराएं चलती हैं, इतने दीर्घकाल वही चल पाती हैं, जिनके अंदर कुछ तथ्य हैं। कल्पनाएँ इतनी नहीं चलतीं।

उन्होंने कहा कि महाभारत जीवन की विद्या है, समाज जीवन कैसे चलता है, किसके क्या-क्या कर्तव्य हैं इसमें सारा विवरण है। जीवन के इस संघर्ष में चलते-चलते अपने मन में भी खटास आ जाती है, गुस्सा आ जाता है, शत्रुता आ जाती है। ऐसा हो सकता है मनुष्य हैं हम, तो उससे निवृत्त होने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता पढ़नी चाहिए।

मनुष्य जितना भी जिए, वो अच्छा होकर जिए, वो ऐसा जिए कि सारी दुनिया को अच्छा बनाए। दुनिया को अच्छा बनाते हुए चले और मानवता ऐसे चले कि सृष्टि का विकास हो, कल्याण हो, उसकी हानि न हो। ये जीवन जीने का तत्व है और उस तत्व को अपने यहां पर धर्म कहा गया है।

जीवन एक सतत चलने वाला प्रवास है। जीवन के बाद मृत्यु, मृत्यु के बाद ऐसा चलता रहता है। लेकिन वो यात्रा करने वाला जीव प्रारम्भ करता है, अंत में वहीं जाता है। ये यात्रा उसकी सतत चलती रहती है। धर्म कहता है जीवन का उद्देश्य उपभोग करना नहीं है, जीवन का उद्देश्य दूसरों का जीवन बनाना है।

जहां महाभारत पढ़ते हैं, वहाँ कलह होती है, ये बिल्कुल गलत बात है। पुरुषार्थ भीम और दुर्योधन दोनों में था, लेकिन हम भीम के पुरुषार्थ और उनकी दिशा से जुड़ते हैं, ये जुड़ना अत्यंत आवश्यक है।

सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कहा कि हम अगर भारत हैं तो हम भारत बनकर ही खड़े रहेंगे। हम चाइना बनेंगे, रशिया बनेंगे, अमेरिका बनेंगे वो तो नकल होगी।

समय, मतलब वर्तमान, भूत, भविष्य तीनों हैं। इनका एक संबंध है, उसको पहचानते हुए मनुष्य को जीना पड़ता है। कुछ ज्ञान सबूतों से मिलता है, कुछ ज्ञान परंपरा से मिलता है।

हमारे यहां हर एक बात में संतुलन है। वैराग्य बिल्कुल ठीक है, मोक्ष बिल्कुल ठीक है। लेकिन आप अन्य धर्मों की उपेक्षा करोगे, आप आत्मसाधना में अपने शरीर-मन-बुद्धि की उपेक्षा करोगे तो नहीं होगा। अगर आप धर्म की या मोक्ष की साधना में अर्थ काम को छोड़ देंगे तो साधना नष्ट हो जाएगी। हर बात में एक संतुलन है। ये जो संदेश है, हमारा सारा इतिहास, हमारा राष्ट्र इसी के लिए जन्मा है और इसी का प्रयोजन जब-जब उपस्थित होता है, तब हम आगे बढ़ते हैं।

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