इतिहास से अनभिज्ञ राणा सांगा को गद्दार कहने वाले- इतिहास संकलन समिति

इतिहास से अनभिज्ञ राणा सांगा को गद्दार कहने वाले- इतिहास संकलन समिति

इतिहास से अनभिज्ञ राणा सांगा को गद्दार कहने वाले- इतिहास संकलन समितिइतिहास से अनभिज्ञ राणा सांगा को गद्दार कहने वाले- इतिहास संकलन समिति

उदयपुर, 30 मार्च। समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन द्वारा महाराणा सांगा को गद्दार कहने के विरोध में भारतीय इतिहास संकलन समिति उदयपुर की ओर से शनिवार को एक परिचर्चा का आयोजन हुआ, जिसमें इतिहासविदों ने ऐतिहासिक तथ्य सामने रखते हुए सांसद के बयान को मिथ्या करार दिया और इसे वोट बैंक के लिए सस्ती लोकप्रियता पाने का एक उपक्रम बताया। इतिहासविदों ने कहा कि सांसद के इस बयान से न केवल ऐतिहासिक तथ्यों पर प्रश्न खड़े हुए हैं, बल्कि हर देशप्रेमी का मन भी आहत हुआ है।

परिचर्चा में इतिहास संकलन समिति राजस्थान के संगठन मंत्री छगनलाल बोहरा ने कहा कि राज्यसभा में चर्चा के दौरान भारत सम्राट महाराणा सांगा पर बिना ऐतिहासिक संदर्भों को जाने भारतीय संसद के उच्च सदन में बयान देना आपराधिक कृत्य है। उन्होंने ऐतिहासिक संदर्भों के साक्ष्य बताते हुए कहा कि महाराणा सांगा ने बाबर के पास कभी कोई प्रतिनिधिमंडल नहीं भेजा। इसका प्रमाण यह है कि ऐसा विषय सिर्फ तुजुक-ए-बाबरी से मिलता है। इस पुस्तक का फारसी से हिन्दी अनुवाद मुंशी देवी प्रसाद ने किया है। वहीं, राणा सांगा के पुरोहित अक्षयनाथ की पांडुलिपि में बताया गया है कि बाबर ने राणा सांगा से इब्राहिम लोदी के विरुद्ध सहायता मांगी थी। इसलिए इब्राहिम लोदी के विरुद्ध राणा सांगा की जगह बाबर को राणा सांगा की आवश्यकता थी, यह स्पष्ट हो जाता है।

तुजुक-ए-बाबरी के सिवाय किसी अन्य पुस्तक में बाबर के पास महाराणा सांगा द्वारा अपने दूतों को भेजने को कोई उल्लेख नहीं मिलता। लेकिन, बाबर द्वारा स्वयं लिखित तुजुक-ए-बाबरी, अफगान इतिहासकार अहमद यादगार की पुस्तक तारीख-ए-सल्तनत-ए-अफगान, हुमायूं के निजी लेखक जौहर आफताबची, तजकिरत-उल-वाकियात और जहांगीर के दरबारी लेखक नियामतउल्ला की तारीख-ए-मखजन-ए-अफगान में दौलत खां लोदी व आलम खान के द्वारा बाबर को इब्राहिम लोदी पर आक्रमण करने का निमंत्रण देने के प्रमाण मिलते हैं। ऐसे में सिर्फ बाबर द्वारा लिखा गया दैनंदिनी बयान सत्य कसौटी पर खरा नहीं उतरता। उन्होंने कहा कि सांसद रामजीलाल सुमन ने सदन में कहा था कि इब्राहिम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा बाबर को भारत लेकर आए थे। वह गद्दार थे, जो कि तथ्यहीन है।

दौलत खां लोदी द्वारा बाबर को बुलाने के प्रमाण

इतिहासविद एवं चित्तौड़ प्रांत के महामंत्री डॉ. विवेक भटनागर ने कहा कि अफगानी इतिहासकार अहमद यादगार की पुस्तक तारीख-ए-सल्तनत-ए-अफगान में लिखा हुआ मिलता है कि बाबर काबुल में अपने बेटे कामरान के निकाह की तैयारी में व्यस्त है। उस समय दिल्ली में सुल्तान इब्राहिम लोदी सत्तासीन है। उसका चाचा दौलत खां लोदी पंजाब का सूबेदार है। सुल्तान ने अपने चाचा को दिल्ली बुलाया। इस पर चाचा दौलत खां लोदी स्वयं नहीं जाता है और अपने बेटे दिलावर खान को भेजता है। दौलत खां के ऐसा करने से सुल्तान इब्राहिम लोदी चिढ़ जाता है और चचेरे भाई दिलावर खां को गिरफ्तार करने का आदेश देता है। दिलावर वहां से भागकर लाहौर जाकर अपने पिता को इसकी सूचना देता है। इस पर दौलत खां लोदी को आगे की परेशानी दिखाई देती है। वह जानता था कि सुल्तान उसे नहीं छोड़ेगा। ऐसे में इब्राहिम लोदी को दिल्ली की गद्दी से उतार कर उस पर कब्जा करना ही एक साधन बचा था, जो दौलत खां और उसके बेटे को बचा सकता था। दौलत खां लोदी ने तत्काल अपने बेटे दिलावर खान और आलम खान को बाबर से मुलाकात करने के लिए काबुल रवाना किया। दिलावर खां ने काबुल में पहुंच कर चारबाग में बाबर से भेंट की। बाबर ने उस से पूछा- तुमने सुल्तान इब्राहिम का नमक खाया है तो यह गद्दारी क्यों? इस पर दिलावर खां ने उत्तर दिया कि लोदियों के कुनबे ने चालीस वर्ष तक दिल्ली की सत्ता संभाली है, लेकिन सुल्तान इब्राहिम लोदी सभी अमीरों के साथ अपमानजनक व्यवहार करता है। पच्चीस अमीरों को उसने मौत के घाट उतार दिया है। किसी को फांसी पर लटका कर, तो किसी को जला कर मार डाला। अब सभी मीर उसके दुश्मन बन गए हैं और उसकी स्वयं की जान खतरे में है। उसे अनेक अमीरों ने बाबर से सहायता मांगने भेजा है। निकाह की तैयारियों में व्यस्त बाबर ने एक रात का समय मांगा और चार बाग में इबादत की-‘ए मौला, मुझे राह दे कि हिन्द पर हमला कर सकूँ। अगर हिन्द में होने वाले आम और पान उसे तोहफे में मिलते हैं तो वह मान लेगा कि रब चाहता है कि वो हिन्द पर आक्रमण करे।

अगले दिन दौलत खां के दूतों ने शहद में डूबे अधपके आम उसे भेंट किये। यह देख बाबर उठ खड़ा हुआ और आम की टोकरी देख वो सजदे में झुक गया और अपने सिपहसालारों को हिन्द पर कूच करने का आदेश दिया। इसके अतिरिक्त यह संदर्भ भी मिलता है कि दिलावर और आलम खां से मुलाकात के बाद बाबर ने महाराणा सांगा से इब्राहिम लोदी के विरुद्ध सहायता मांगी थी। इसके लिए उसने अपना दूत भी मेवाड़ राज दरबार में भेजा था, लेकिन सांगा ने उसकी सहायता करने से बिल्कुल मना कर दिया था।  

ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता

परिचर्चा में इतिहास संकलन के चित्तौड़ प्रांत अध्यक्ष डॉ. जीवन सिंह खरकवाल ने कहा कि बाबर अपनी पुस्तक बाबरनामा में यह रिकॉर्ड छिपा कर सांगा द्वारा पत्र लिखा जाना और हिन्द पर आक्रमण करने का न्यौता देने का उल्लेख करता है। इस प्रकार की कहानी सिर्फ बाबरनामा में ही मिलती है और कहीं नहीं। इसलिए बाबर का रिकॉर्ड सत्य नहीं माना जा सकता। जबकि, दौलत खां के दूतों का काबुल जाना और उसका पत्र ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में उपलब्ध है। तजकिरत-उल वाकियात में हुमायूं का लेखक जौहर आफताबची और जहांगीर के काल में तारीख-ए-मखजने अफगना का लेखक नियामतुल्लाह दोनों ही दौलत खां लोदी के पत्र लिखने की बात का वर्णन करते हैं। नियामतउल्ला 1609 में जहांगीर के दरबार में काम करता था। इसमें दिल्ली के अफगान सुल्तानों तथा अफगानी कबीलों के बारे में पर्याप्त जानकारी है। इस ग्रन्थ में सुल्तान बहलोल लोदी से लेकर इब्राहीम लोदी तक के समय का वर्णन मिलता है। इतिहास संकलन समिति ने एक मत से पारित किया कि इन विषयों को विद्यालयी पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए।

समिति ने किए बाबर समर्थकों से प्रश्न

1. राणा सांगा इब्राहिम लोदी को दो बार खातोली और बाड़ी के युद्ध में पराजित कर दिल्ली के आस-पास समेट चुके थे, तो फिर इब्राहिम पर नियंत्रण के लिए उन्हें किसी बाबर की क्या आवश्यकता थी?

2. राणा सांगा के काल में मेवाड़ का अखिरी राजस्व गांव दिल्ली के निकट बुराड़ी था। तो इब्राहिम लोदी का दिल्ली में होना ही संशय पैदा करता है। बाबर द्वारा उसे दिल्ली का सुल्तान कहने पर प्रश्न चिह्न है।

3. बाबर स्वयं बाबरनामा में लिखता है कि उस समय भारत में दो बड़े काफिर राजा हैं, एक विजयनगर का कृष्णदेव राय और दूसरा राणा सांगा, ऐसे में राणा सांगा बाबर से सहायता के बारे में सोचेंगे भी क्या?

4. बाबरनामा के अनुसार बाबर को लगता था कि उसकी भारत जीतने की इच्छा है, लेकिन इसमें प्रमुख बाधा महाराणा सांगा हैं। स्पष्ट है कि इब्राहिम लोदी के विरुद्ध बाबर को राणा सांगा की आवश्यकता थी न कि राणा सांगा को बाबर की। ऐसे में राणा सांगा को बाबर से सहायता की आवश्यकता का प्रश्न ही कहां पैदा होता है?

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