गुंजन अग्रवाल
❖ इस्लाम, चन्द्र-पंचांग (हिज़री कैलेण्डर) से ही परिचालित होता है। सारी दुनिया के मुसलमान इस्लामी-पर्वों को मनाने का सही समय जानने के लिए इसी कैलेण्डर का प्रयोग करते हैं। इसमें वर्ष में 12 महीने (354 या 355 दिवस) होते हैं। चूँकि यह सौर वर्ष (365 या 366 दिवस) से 11 दिवस छोटा है, इसलिए इस्लामी-तिथियाँ, जो कि हिज़री कैलेण्डर के अनुसार तो स्थिर तिथियों पर होती हैं, परन्तु प्रत्येक वर्ष सौर वर्ष से 11 दिन पीछे हो जाती हैं।
❖ मुसलमान दिन की गणना सूर्यास्त से अगले सूर्यास्त तक करते हैं; क्योंकि रात्रि के समय ही चाँद दिखता है।
❖ मुस्लिम मास ‘रबी’ सूर्य के द्योतक रवि का अपभ्रंश रूप है; क्योंकि संस्कृत का ‘व’ प्राकृत के ‘ब’ में परिवर्तित हो जाता है।इसी महीने में आनेवाला दूसरा त्योहार ‘ग्यारहवीं शरीफ़’ है, जिसका अर्थ पवित्र ग्यारहवाँ दिन है। हिंदू-परम्परा में एकादशी सदैव पवित्र मानी गई है। अधिकांश मुस्लिम त्योहार शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही मनाए जाते हैं । यह एकादशी के पुरातन वैदिक महत्त्व के अनुरूप ही है।
❖ ‘ईद’ जैसे कुछ मुस्लिम त्योहार चन्द्र-दर्शन से ही तय होते हैं। कोई सुअवसर संपन्न करने से पूर्व चन्द्र-दर्शन की इस्लामी पद्धति का मूल हिंदू-रीति के अनुसार संकष्टी तथा वैनायकी चतुर्थी परचन्द्र-दर्शन के पश्चात् ही व्रत तोड़ने की परम्परा में है।
❖ स्वयं ‘अल्लाह’ (अथवा ‘अल्ला) शब्द भी देवी अथवा माँ अथवा मातृदेवी का संस्कृत-नाम है। (1) अपनी परम्परा में‘अल्लोपनिषद्’ (2) , ‘अल्लेश्वरी देवी’, ‘अल्लादिस्तोत्र’ इत्यादि धार्मिक-साहित्य उपलब्ध है। प्राचीन अरबी-नगर हथरा में अल्लात देवी की सिंहवाहिनी प्रतिमा प्राप्त हुई है (3)। जिस प्रकार सरस्वती-वन्दना में या कुन्देन्दु तुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता। या वीणा वरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥ या ब्रह्माच्युत शंकर प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता। उसी प्रकार मुसलमान ‘या अल्लाह’ कहते हैं। परन्तु अल्लाह को वे पुरुष मानते हैं। ब्रिटिशकाल में एक ‘सर अल्लादिकृष्णस्वामी अय्यर’ थे, वे ‘अल्लादि’ नामक स्थान पर रहते थे (दक्षिण भारत में पहले जन्मस्थान का नाम लगाते हैं, बाद में अपना)। (4)
❖ अरबी भाषा में ‘अल्लाह’ शब्द तिरछे ‘ॐ’ के समान लिखा जाता है— اللہ
❖ अरब से प्राप्त प्रागैस्लामी युग की हंसवाहिनी सरस्वती की प्रतिमा ब्रिटिश म्यूजियम में प्रदर्शित है (5)
❖ दुनियाभर के इस्लामी-विद्वान् ‘786’ अंक के रहस्य से अनभिज्ञ हैं। यह ‘786 का अंक भारत, पाक़िस्तान, बांग्लादेश और म्यान्मार के मुसलमानों में परम श्रद्धास्पद है। इसे कुरआन पर भी मुद्रित किया जाता है। मुसलमानों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि उनका परम श्रद्धास्पद 786 का अंक कोई इस्लामी-प्रतीक न होकर वैदिक-प्रतीक ‘ॐ’ ही है। वैदिक प्रतीक ‘ॐ’ को ही अज्ञानतावश ‘786’ का अंक समझ लिया गया है। ‘786’ को दर्पण में देखें- आपको ‘ॐ’ की आकृति ही दिखाई देगी। अरबी-कुरआन पर ‘ॐ’ का चिह्न ही 786 के रूप में मुद्रित किया जा रहा है।
❖ ‘कुरआन (कुरान) शब्द भी मक्का में पुराण वाचन बन्द किए जाने के बाद प्रचलित हुआ है। (6)
❖ मुसलमानों का प्रतिदिन पाँच बार नमाज़ पढ़ना भी सभी व्यक्तियों के लिए निर्धारित दैनिक वैदिक-कृत्य के अंश ‘पञ्च महायज्ञ’ के वैदिक-विधान से निःसृत है।
❖ नमाज़ के लिए पुकार लगाए जाने की क्रिया ‘अजान कही जाती है, जो संस्कृत-शब्द ‘आह्वान’ का अरबी-रूपांतर है।
❖ नमाज़ प्रारम्भ करने से पूर्व शरीर के पाँच भागों की स्वच्छता मुसलमानों के लिए विहित है। यह भी वैदिक-विधान शारीर शुद्धर्थपंचांगन्यासः से व्युत्पन्न है। (7)
❖ स्वयं ‘हज’ शब्द भी तीर्थयात्रा के द्योतक संस्कृत-शब्द ‘व्रज’ से व्युत्पन्न है। यही कारण है कि संसार का त्यागकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने वाले संन्यासियों को संस्कृत में ‘परिव्राजक’ कहा जाता है। (8, 9)
❖ सऊदी अरब की सरकार द्वारा मक्का को पवित्र धार्मिक स्थल घोषित किया गया है और काबा के 20 मील (32 किमी.) के क्षेत्र में हिंसा को प्रतिबन्धित किया गया है। मक्का में अहिंसा-व्रत का पालन इस बात का द्योतक है कि मुहम्मद साहब पर आर्य-सभ्यता के प्रमुख सिद्धांत अहिंसा का प्रभाव कुछ-न-कुछ अवश्य पड़ा था; क्योंकि सेमेटिक-संस्कृति में हिंसा और अहिंसा का कोई विचार ही नहीं किया गया है, वरन् ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए हिंसा को ही मुख्य कर्म समझा गया है। यदि हज़रत पर आर्य-सभ्यता का प्रभाव न पड़ा होता तो वह अहिंसा के सिद्धान्त को अल्पकाल के लिए भी न अपनाते।
(लेखक महामना मालवीय मिशन, नई दिल्ली में शोध-सहायक हैं तथा हिंदी त्रेमासिक ‘सभ्यता संवाद’ के कार्यकारी सम्पादक हैं)
संदर्भ सामग्रीः
1. भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें, पृ. 286, 290, 291.
2. अस्माल्लां इल्ले मित्रावरुणा दिव्यानि धत्ते।
इल्लल्ले वरुणो राजा पुनर्वदुः।
हयामित्रो इल्लां इल्लल्ले इल्लां वरुणो मित्रस्तेजस्कामः॥ 1 ॥
होतारमिन्द्रो होतारमिन्द्र महा सुरिन्द्राः।
अल्लो ज्येष्ठं श्रेष्ठं परमं पूर्णं ब्राह्मणं अल्लाम्॥ 2 ॥
अल्लो रसूल महामदरकबरस्य अल्ले अल्लाम्॥ 3 ॥
आदल्ला वृक मेककम् । लल्लबूक निखादकम्॥ 4 ॥
अलो यज्ञेन हुत हुत्वा । अल्ला सूर्यचन्द्रसर्वनक्षत्राः॥ 5 ॥
अल्ला ऋषीणां सर्वदिव्यां इन्द्रः पूर्व माया परममन्तरिक्षा॥ 6 ॥
अल्लः पृथिव्या अन्तरिक्षे विश्वरूपम्॥ 7 ॥
इल्लांकवर इल्लांकवर इल्लां इल्लल्ले ते इल्लल्लाः॥ 8 ॥
ओम् अल्ला इल्लल्ला अनादि स्वरूपाय अथर्वणा श्यामाहुह्री
जनान् पशून् सिद्धान् जलचरान् अदृष्टं कुरु कुरु फट॥ 9 ॥
असुरसंहारिणी हृं र्हृी अल्ली रसूल महामदरकबरस्य
अल्लो अल्लाम् इल्लल्लेति इल्लल्लाः॥ 10 ॥ इतिअल्लोपनिषद्॥
3. ‘विश्व दशहरा दिवस की गौरवगाथा’, वीरेन्द्रनाथ भार्गव, ‘वैचारिकी’ (हिंदी त्रैमासिक), अक्टूबर-दिसम्बर 2009, पृ. 73.
4. ‘इस्लामी-वास्तु को पर्दे में रखने की असलियत’, ‘हिंदू विश्व’(हिंदी पाक्षिक), नवम्बर (1-15), 2003, पृ. 22.
5. वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास, खण्ड 2, पृ0 510-11
6. ‘इस्लामी-वास्तु को पर्दे में रखने की असलियत’, ‘हिंदू विश्व’(हिंदी पाक्षिक), नवम्बर (1-15), 2003, पृ. 22.
7. भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें, पृ. 298.
8. वही, पृ. 343.
9. वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास, खण्ड 2, पृ. 494