इस्लाम में नृत्य और संगीत हराम, फिर शाहरुख, सलमान आदि सच्चे मुसलमान हैं या नहीं, मोमिन स्पष्ट करें
हिजाब: कुरान का पालन या फसाद की तैयारी (4)
प्रो. कुसुमलता केडिया
इस्लाम पर पूरा ईमान लाना है तो स्त्रियों के विषय में उसमें जो कुछ कहा गया है, उसे तो मानना ही पड़ेगा और कुरान के अनुसार स्त्री का जो व्यक्तित्व है, वह पुरुष के अधीन है। यहां तक कि औरत की गवाही भी पुरुष की गवाही के बराबर नहीं। दो औरतों की गवाही एक पुरुष की गवाही के बराबर है। इस्लाम में स्त्री को शासक या शीर्ष अधिकारी या ज्यूडीशियल ऑफिसर, जिन्हें इन दिनों जज कहते हैं, होने का तो कोई प्रावधान ही नहीं है। इस्लाम में तो स्त्रियां पुरुषों पर शासन कर ही नहीं सकतीं। इसलिए चाहे वह नूरजहां या बेनजीर भुट्टो रही हों या वर्तमान समय में महबूबा मुफ्ती हों या स्वयं ममता बनर्जी, जो कुरान का पाठ करती हैं और नमाज पढ़ती देखी जाती हैं, कुरान को प्रमाण मानती हैं तो उन्हें पुरुषों पर शासन करने का अधिकार नहीं। इनमें से कोई हिजाब भी नहीं पहनतीं, कोई भी उस तरह अपना मुंह नहीं ढँकतीं, तो इन्हें सच्ची मोमिन कैसे माना जाएगा?
इतना ही नहीं अल्लाह की बनाई कायनात की अनुकृति करना या बनाना या फिल्मों में काम करना या ऐसे गीत-संगीत और नृत्य में भाग लेना, जिसमें हिंदू देवी देवताओं के भजन हैं, इस्लाम में हराम है। नृत्य और संगीत की तो इस्लाम में वैसे ही अनुमति नहीं। अगर कुरान में ऐसा नहीं है तो सच्चे मोमिन को उसका संदर्भ देना चाहिए।
इसी प्रकार, बहुत से मुसलमान पुरुष और स्त्रियां मंदिरों के सामने कुछ दुकानें लगाती हैं, पूजा का सामान देती हैं। अनेक मुसलमान हिंदू मंदिरों की तीर्थ यात्रा से जुड़े कामों में कई प्रकार के दायित्व निभाते देखे जाते हैं तो वे मोमिन कैसे कहे जाएंगे? वे तो मुशरिक कहे जाएंगे क्योंकि इस्लाम में तो अल्लाह के अतिरिक्त किसी अन्य की पूजा में शामिल होना इस्लाम के विरुद्ध है।
इसी प्रकार अभी एक समाचार आया था कि किसी मंदिर के परिसर में दुकानें बनाई गईं तो एक कोर्ट का आदेश था कि उसमें मुसलमानों को भी दुकान किराए पर दे देना चाहिए, परंतु फिर वह किराया तो मंदिर प्रबंधन को जाएगा जोकि हिंदू देवी देवताओं की पूजा के काम में लगेगा तो इस तरह हिंदू मंदिरों में बने परिसरों में दुकान किराए पर लेना तो मुशरिक होना है। यह तो सच्चे मोमिन का लक्षण नहीं है। इन सब प्रश्नों पर स्थिति स्पष्ट करनी होगी।
शाहरुख खान या सलमान खान या आमिर खान जो फिल्मों में काम करते हैं वे तो फिर मुनाफिकीन हुए ना? उन्हें तो नमाज पढ़ने का कहीं कोई हक नहीं क्योंकि कुरान में साफ कहा गया है कि मुनाफिकीनों को कोई हक नहीं है कि वह नमाज पढ़ने मस्जिद में जाएं। इन सब मुद्दों पर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
(क्रमशः)