मी लॉर्ड! क्या अब से देश में ईश निंदा को लागू माना जाए….?

मी लॉर्ड! क्या अब से देश में ईश निंदा को लागू माना जाए….?

डॉ. अजय खेमरिया

मी लॉर्ड! क्या अब से देश में ईश निंदा को लागू माना जाए….?मी लॉर्ड! क्या अब से देश में ईश निंदा को लागू माना जाए….?

नूपुर शर्मा के बयान से देश में अप्रिय हालात निर्मित हुए। सुप्रीम कोर्ट का यह अभिमत स्वीकार्यता के साथ मैरिट पर भी उचित कैसे कहा जा सकता है। क्या देश और दुनिया भर में इस्लामिक आतंकवाद के पीछे सिर्फ नूपुर शर्मा जैसे बयान जिम्मेदार हैं? क्या सुप्रीम कोर्ट का यह रुख तालिबानी कार्य संस्कृति को तार्किक बनाने का काम नहीं करेगा? नूपुर शर्मा को इस तरह के बयान के लिए उकसाया गया, यह सुप्रीम कोर्ट भी मानता है, लेकिन इसके बाबजूद देश की शीर्ष अदालत का यह कहना कि देश में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए नूपुर जिम्मेदार है, किसी ऐसे आदमी के भी गले नहीं उतर सकता जो स्वयं नूपुर का घुर विरोधी हो। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि न्यायालय ने उन पर एक शब्द नहीं बोला जो गला काट देने और सर तन से जुदा कर देने का नारा एलानिया तौर पर लगा रहे हैं। न केवल लगा रहे हैं बल्कि पूरी व्यवस्था को चुनौती देते हुए ऐसा करके भी दिखा रहे हैं। नूपुर के बयान से सहमति-असहमति का अधिकार सभी को है, लेकिन तालिबानी तौर तरीकों से देश के प्रधानमंत्री तक को खत्म कर देने की सुनियोजित और बेखौफ घोषणाओं से न्यायालय कैसे अनजान रह सकता है? इस देश की न्यायपालिका की वैश्विक विश्वसनीयता है और इसे समय समय पर साबित भी किया गया है, लेकिन नूपुर के मामले में इस संस्था ने अपने संविधान के संरक्षक के दायित्व में न्यूनता का परिचय ही दिया है। नूपुर देश से माफी मांगे यह ठीक है लेकिन बेहतर होता मी लॉर्ड उस टीवी डिबेट में आदि देव शंकर का अपमान करने वालों को भी आपकी सेक्युलर दृष्टि ऐसा ही आदेश दे देती। हिन्दू देवी देवताओं का अपमान किसी कौम की भावनाओं की तुष्टीकरण की कीमत पर आखिर कब तक जारी रखा जाएगा? जिस संविधान की संरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का अस्तित्व है, उसमें तो कहीं अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का विभेद नहीं है। क्या नूपुर के इस बयान से पहले देश में इस तरह के हालात कभी निर्मित नहीं हुए हैं? कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक इस्लामिक आतंकवाद की जड़ कहाँ से पनपी है? क्या जाकिर नाइक और मकबूल फिदा की करतूतों से हिंदुओं की भावनायें आहत नहीं हुई होंगी? सुप्रीम कोर्ट को शायद ऐसे मामले देश के लिए खतरा नहीं महसूस होते हैं क्योंकि इस देश का बहुसंख्यक हिन्दू तालिबानी मानसिकता का नहीं है। वह अतिशय उदारमना है, और अपनी धर्म-सँस्कृति के इन मर्माहत करने वाले कृत्यों पर भी सर तन से अलग करने के  एलान नहीं करता है।

मी लॉर्ड, आप कहते हैं कि नूपुर पर सत्ता का नशा है। उन्हें पुलिस ने नहीं पकड़ा, उन्हें छूने की कोई हिम्मत नहीं कर सकता है तो आपको राजस्थान के उस मुख्यमंत्री के बारे में भी तो कुछ कहना ही चाहिए था, जिसकी पुलिस एक गरीब दर्जी की अर्जी पर निकम्मी बनी बैठी रही। छह दिन तक वह गरीब हिन्दू डर के मारे दुकान बंद करने पर मजबूर रहा और अंत में गजवा ए हिन्द की बलि चढ़ गया। मी लॉर्ड क्या इस राष्ट्र में अब ईश निंदा का कानून लागू माना जाए? आपके इस सेक्युलर प्रवचन से तो यही साबित होता है। हिन्दू देवी देवताओं पर मुस्लिम मतावलम्बी और वामपंथी आए दिन घटिया टिप्पणी करते हैं। ब्रह्मा जी ने सरस्वती के साथ दुराचार किया, यह तो आपकी अदालत के पास स्थित जेएनयू में प्रोफेसर तक बताते हैं। एकेडेमिक्स के महिषासुर के प्रसंग भी आपकी जानकारी में होंगे ही। मकबूल की कूची से कितनी कलात्मकता निखरती रही, यह भी आपको पता ही है। लेकिन हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं आपको कभी आहत महसूस नहीं हुईं क्योंकि यह समाज अपनी आहत भावनाओं को गोली, बंदूक और तलवार से अभिव्यक्ति देना नही जानता है। आपने नूपुर को ‘सिंगल हैंडेडली’ जिम्मेदार बताकर क्या यह कहने का प्रयास किया है कि उदयपुर के जल्लाद दोषी नहीं हैं? दोषी तो दिल्ली दंगों के वे आरोपी भी नहीं हैं, जिन्होंने एक पुलिस ऑफिसर के तन को 200 से ज्यादा बार चाकुओं से गोदकर छलनी कर दिया था। नूपुर के लहजे पर आपको आपत्ति है, लेकिन लहजे पर कत्ल कर दिया जाए इस पर आपको कुछ नहीं कहना है। भारतीय लोकतंत्र के लिए न्यायपालिका एक बड़ा संबल है, लोगों की आशाओं का केंद्र है, लेकिन नूपुर औऱ उदयपुर के मामले में सर्वोच्च अदालत का यह रवैया निसंदेह निराश करने वाला है। यह देश की एकता, अखंडता और संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध भी है।आशा है सुप्रीम अदालत इस पर पुनर्विचार करेगी।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *