उमेश उपाध्याय का निधन : असमय अस्त हो गया पत्रकारिता का चमकता सितारा
उमेश उपाध्याय का निधन : असमय अस्त हो गया पत्रकारिता का चमकता सितारा
जयपुर। वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध लेखक उमेश उपाध्याय के असामयिक निधन से ना केवल मीडिया जगत बल्कि राष्ट्रीयता की भावना रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति स्तब्ध है। उमेश उपाध्याय को पत्रकारिता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता था। उन्होंने समाचारों के नैतिक प्रसार का समर्थन किया और पत्रकारों की अगली पीढ़ी को मार्गदर्शन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपनी पत्रकारिता और लेखन के माध्यम से समाज में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी विश्लेषणात्मक लेखन शैली और तीक्ष्ण दृष्टिकोण ने उन्हें एक ऐसा पुंज बना दिया जो हमेशा चमकता रहेगा। उल्लेखनीय है कि वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय का रविवार को एक दुर्घटना में निधन हो गया। वे अपने घर पर निर्माण कार्य के दौरान छत से गिर गये थे। उन्हें गंभीर चोटें आईं। उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन दुर्भाग्य से उनकी जान नहीं बच सकी। उनके निधन पर अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने दुख व्यक्त करते हुए कहा, ‘वरिष्ठ पत्रकार, लेखक व हमारे मित्र उमेश उपाध्याय जी का अकस्मात् निधन सभी के लिए अत्यधिक दुखद है। उन्होंने मीडिया जगत में चार दशक से अधिक सक्रिय भूमिका निभाते हुए, अपनी गहरी छाप छोड़ी है। वे सतत हँसमुख रहते हुए कार्यरत रहे। उनकी पवित्र स्मृतियों के साथ उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें तथा उनकी पत्नी, बेटा-बेटी सहित परिवार जन व मित्रों को यह दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करें।’
इनके अतिरिक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित लेखकों, साहित्यकारों और पत्रकारों ने भी गहरी संवेदना जताई।
उमेश उपाध्याय का जन्म 1959 में उत्तर प्रदेश के मथुरा में हुआ था। उन्होंने 1980 के दशक की शुरुआत में पत्रकारिता को करियर के रूप में अपनाया। देश में टेलीविजन पत्रकारिता के प्रारंभिक वर्षों के दौरान उनके करियर का ग्राफ काफी ऊंचा गया। उन्होंने कई प्रमुख नेटवर्कों के लिए न्यूज कवरेज और प्रोग्रामिंग रणनीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उमेश उपाध्याय ने टेलीविजन और डिजिटल मीडिया दोनों में व्यापक योगदान दिया। टेलीविजन, प्रिंट, रेडियो और डिजिटल मीडिया में चार दशकों से अधिक के अपने करियर के दौरान उन्होंने प्रमुख मीडिया संगठनों में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं। वे मीडिया उद्योग की बारीकियों की गहरी समझ, पत्रकारिता के प्रति समर्पण और तेजी से बदलते उद्योग के साथ सामंजस्य बिठाने की अपनी कुशलता के लिए जाने जाते थे। उमेश उपाध्याय ने अपनी पत्रकारिता में विभिन्न विषयों जैसे राजनीति, सामाजिक मुद्दों, अर्थव्यवस्था और संस्कृति को प्रमुखता से उठाया। उमेश उपाध्याय एक प्रमुख टीवी पैनलिस्ट और सामाजिक मुद्दों पर टिप्पणीकार भी थे। उन्हें उनकी गहरी विश्लेषणात्मक लेखन शैली और तीक्ष्ण दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है। उन्होंने जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज से मास्टर्स और एम.फिल. किया तथा दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद के सदस्य के रूप में भी कार्य किया।
उमेश उपाध्याय ने कई पुस्तकें भी लिखी हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख पुस्तकें भारत की राजनीतिक कहानी और सामाजिक परिवर्तन की दिशा हैं। उन्हें उनकी लेखन की क्षमता और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
हाल ही में उन्होंने वेस्टर्न मीडिया नैरेटिव्स ऑन इंडियाः फ्रॉम गांधी टू मोदी नामक एक पुस्तक लिखी थी। इसमें बताया गया था किस प्रकार से पश्चिमी मीडिया में भारत के विरूद्ध नैरेटिव्स स्थापित किए जाते हैं। पश्चिमी मीडिया के नैरेटिव्स में अक्सर गांधी और मोदी के बीच एक विभाजनकारी दृष्टिकोण देखा जाता है, जहां गांधी को शांति और अहिंसा के प्रतीक के रूप में चित्रित किया जाता है, जबकि मोदी को एक विभाजनकारी और हिंदू राष्ट्रवादी नेता के रूप में देखा जाता है। इस नैरेटिव में, गांधी को अक्सर भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नायक के रूप में बताया जाता है, जबकि मोदी को एक विवादास्पद नेता के रूप में देखा जाता है, जो भारत को एक हिंदू राष्ट्र में बदलने का प्रयास कर रहा है। इस नैरेटिव में अक्सर भारत की विविधता और जटिलता को नजरअंदाज किया जाता है और एक सरल और विभाजनकारी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जाता है। यह नैरेटिव भारत के बारे में एक पक्षपातपूर्ण और अधूरी तस्वीर प्रस्तुत करता है और भारत की वास्तविकता को समझने के लिए एक अधिक जटिल और बहुमुखी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
उमेश उपाध्याय ने अपनी पत्रकारिता और लेखन के माध्यम से उन धारणाओं को भी गलत साबित किया, जो बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा फैलाई जा रही थीं। उन्होंने हर उस नैरेटिव को प्रमुखता से उठाया, जो भारत को कमजोर करने के लिए था। आज भी पश्चिमी मीडिया में भारत के प्रति साफ पूर्वाग्रह दिखाई देता है। उसे भी उमेश उपाध्याय ने कई बार अपनी लेखनी से उजागर किया।