न्यायाधीश नरीमन ने ऋग्वेद पर की विवादास्पद टिप्पणी, स्वामी विज्ञानानंद ने दी बहस की चुनौती
भारत में बहुसंख्यकों के देवी देवताओं व धर्म ग्रंथों पर अपमानजनक टिप्पणी करना जितना आसान है, उतना और कहीं नहीं। उच्च व जिम्मेदार पदों पर आसीन लोग भी ऐसा करने से अपने आप को रोक नहीं पाते। अब उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश रोहिंटन नरीमन ने ऋग्वेद का उद्धरण देते हुए सनातन परंपरा में महिलाओं की प्रतिष्ठा के संबंध में विवादास्पद टिप्पणी की है। उन्होंने अपने व्याख्यान में विश्व भर की महिलाओं के इतिहास के बारे में बोलते हुए कहा कि “ऋग्वेद का कहना है कि महिलाओं के साथ स्थायी दोस्ती न करें क्योंकि वह हाइना की तरह रहेंगी।” वे 16 अप्रैल को 26वें न्यायमूर्ति सुनंदा भंडारे स्मृति व्याख्यान में बोल रहे थे।
न्यायाधीश की इस टिप्पणी को वर्ल्ड हिन्दू फाउंडेशन के संस्थापक स्वामी विज्ञानानंद ने तथ्यात्मक रूप से गलत एवं अपमानजनक बताते हुए कहा कि उनकी टिप्पणी से विश्व के 1.2 अरब हिंदुओं की भावनाएँ आहत हुईं हैं। उन्हें अपने विवादास्पद बयान वापस लेने चाहिए।
स्वामी विज्ञानानंद ने कहा कि ऋग्वेद सहित सभी वेदों को सही ढंग से समझने के लिए ऋषि पाणिनि के व्याकरण, निरुक्त और प्रतिष्ठा का ज्ञान होना आवश्यक है। वेद ऐसे ग्रंथ नहीं हैं जिनकी केवल शाब्दिक व्याख्या की जाए। वेदों को समझने के लिए वैदिक संस्कृत का ज्ञान अनिवार्य है और वैदिक संस्कृत आधुनिक संस्कृत से कई मायनों में भिन्न है। वेद केवल मंत्र संहिता हैं। वेदों की व्याख्या कम से कम 5 विषयों/ ग्रंथों – पाणिनि व्याकरण, निघंटु, निर्कुट, प्रातिशाख्य एवं ब्राह्मण की पूर्ण जानकारी के बिना संभव नहीं है।
उन्होंने न्यायमूर्ति नरीमन को संबोधित करते हुए कहा, “मेरा यह मानना है कि वेदों और प्राचीन हिंदू ग्रंथों की व्याख्या करने की आप में अर्हता नहीं है। अतः आपको गौण स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर प्राचीन हिंदू ग्रंथों पर कोई भी टिप्पणी करने से बचना चाहिए। आप देश की न्यायपालिका में जिम्मेदार पद पर आसीन हैं। आपको इस देश के महान धर्म और संस्कृति के विराट वैभव से संबंधित कोई भी बात जिम्मेदारी के साथ ही कहनी चाहिए।”
स्वामी विज्ञानानंद ने न्यायमूर्ति नरीमन को इस विषय पर एक खुली सार्वजनिक बहस के लिए आमंत्रित करते हुए कहा, “मैं आपसे इतना अनुरोध करना चाहता हूँ कि आपने अपने व्याख्यान में ऋग्वेद से संबंधित जो भी गलत व्याख्या की है, उसके लिए आप हिंदू समाज से क्षमा माँगे और अपने शब्द वापस लें। यदि आपको वेदों की व्याख्या से संबंधित मेरी किसी भी बात पर संशय है तो मैं किसी भी मंच पर आपके साथ चर्चा करने की खुली चुनौती देता हूँ।”
उन्होंने कहा कि हमारे धर्म शास्त्रों और इतिहास के साथ औपनिवेशिक कुप्रथाओं के कारण भारत को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। भारत में ज्यादा बौद्धिक कहे जाने वाले लोगों ने वेदों के अंग्रेजी अनुवाद को ही पढ़ा है। लेकिन उस अनुवाद और असली ग्रंथ में बहुत अंतर है। इसी वजह से ज्यादातर लोगों को उथला ज्ञान है। उन्होंने आशा जताते हुए कहा कि न्यायमूर्ति नरीमन इस मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए जल्द से जल्द ऋग्वेद के बारे में अपने भ्रामक शब्दों को वापस लेंगे।
उल्लेखनीय है कि स्वामी विज्ञानानंद संन्यास आश्रम में प्रवेश करने से पहले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) के प्रतिभाशाली छात्र रहे हैं। बाद में उन्होंने संस्कृत भाषा पर पीएचडी की तथा पाणिनि व्याकरण, वेदांग, पूर्वी दर्शन, ब्राह्मण ग्रन्थ और वैदिक संहिता पर अध्ययन, शोध और अध्यापन किया।