एमनेस्टी इंटरनेशनल : चोरी भी और सीनाजोरी भी
सूर्यप्रकाश सेमवाल
1961 में पीटर बेन्सन नामक एक ब्रिटिश वकील ने जब एमनेस्टी इंटरनेशनल की स्थापना राजनीतिक, धार्मिक अथवा शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति के लिये गिरफ्तार किये गए लोगों को मुक्त करने के लिए की थी, उस ज़माने में यह एक जनांदोलन के रूप में चर्चित हुआ था। उनको भी इस बात की कल्पना नहीं रही होगी कि अपने निहित उद्देश्यों से भटककर यह संस्था किसी देश के आंतरिक मामलों से लेकर सरकार की नीतियों के दुष्प्रचार तक के एजेंडे तक पहुंच जाएगी।
मानवाधिकारों की दुहाई देकर सरकार के नियम और मानकों को धत्ता बताकर सरकारी मंजूरी के बिना अवैध तरीके से विदेशों से बहुत बड़ी धन राशि लेकर एमनेस्टी इंडिया ने भारत में पिछले 20 वर्षों से यही सब किया और जब गृह मंत्रालय ने गलत रास्ते से धन मंगवाने को कानून के प्रावधानों का उल्लंघन बताया तो इसे अपने काम में बाधा दिखने लगी और भारत में लोकतंत्र खतरे में नजर आने लगा। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि वह भारत में अपने खातों के फ्रीज होने के कारण अपनी सभी गतिविधियों को रोक रहा है। गृह मंत्रालय ने 30 सितम्बर को एमनेस्टी इंटरनेशनल के उस बयान को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण, अतिरंजित और सच्चाई से परे बताया, जिसमें उसने कहा कि उसे भारत में लगातार निशाना बनाया जा रहा है। सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया फाउंडेशन के विरुद्ध कोई ईडी जांच नहीं की जा रही है और न ही उसके कामकाज में कोई रुकावट पैदा की जा रही है। सरकार केवल एनजीओ से जुड़ी प्राइवेट कंपनी के वित्तीय लेनदेन की जांच कर रही है, जिसने विदेश से 51 करोड़ रुपये प्राप्त किए। इसके बावजूद सरकार पर सवाल उठाने की कोशिश देश के अन्दर से लेकर विदेश तक खूब हुई।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि एमनेस्टी का बयान संस्था की उन गतिविधियों से सभी का ध्यान हटाने की कोशिश है, जो गैरकानूनी हैं। मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि ऐसे बयानों का उद्देश्य उसकी अनियमितताओं और अवैध गतिविधियों की विभिन्न एजेंसियों द्वारा की जा रही जांच को प्रभावित करना है। जबकि वास्तविकता यह है कि एमनेस्टी को 20 वर्ष पहले (19 दिसबंर, 2000) फॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) एक्ट (एफसीआरए) के तहत सिर्फ एक बार अनुमति मिली। तब से उसके बार-बार आवेदन के बावजूद उसे एफसीआरए की स्वीकृति नहीं दी गई, क्योंकि कानूनन वह पात्र नहीं थी। उसने एफसीआरए नियमों का उल्लंघन किया। एक एमनेस्टी की जगह एक साथ इसी नाम की भारत में चार कम्पनी खोल दीं और इनके माध्यम से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के तहत काफी धन जमा कर लिया।
मंत्रालय ने कहा कि एमनेस्टी के विरुद्ध उठाए गए कदमों से सिद्ध होता है कि उसने धन पाने के लिए संदिग्ध तरीके अपनाए। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ईडी एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड तथा इंडियंस फॉर एमनेस्टी इंटरनेशनल ट्रस्ट के खिलाफ संदेहास्पद रूप से वित्तीय लेन देन की जांच कर रही है। इनके खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) तथा फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के तहत जांच हो रही है। एजेंसी ने गत सितंबर में 51 करोड़ रुपये के फेमा उल्लंघन के मामले में एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। इस कंपनी ने ब्रिटेन के एमनेस्टी इंटरनेशनल से 2013-14 से लेकर 2018-19 के दौरान कथित रूप से 51.52 करोड़ रुपये प्राप्त किये। जांच के दौरान संदेहास्पद लेन देन के कारण ही बैंक अकाउंट फ्रीज किए गए। ईडी की इस कार्रवाई को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और कोर्ट ने एजेंसी की कार्रवाई को उचित ठहराया।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत में किसी गंभीर अनुसंधान अथवा मानवाधिकार का कोई लोक कल्याण वाला विशेष कार्य नहीं किया है, इसके ठीक उलट इस संस्था की गतिविधियां देश और सरकार के विरुद्ध ही ज्यादा देखने में आयी हैं। भारत में एमनेस्टी इंटरनेशनल की गतिविधियां संदेह के घेरे में हैं और जब इस संस्था पर जांच का शिकंजा कसने लगा तो सवालों का जवाब देने की बजाय बोरिया बिस्तर बांधकर भारत से भाग गयी। भारत में यदि इनकी कारगुजारियों और उपलब्धियों की चर्चा करें तो जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर दुनिया भर में भारत के खिलाफ अभियान, 26/11 हमले के दोषी अजमल कसाब, संसद हमले के दोषी अफजल गुरु और 1993 मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन के समर्थन में एमनेस्टी ने दुनिया भर में भरपूर अभियान चलाया था।
भारत विरोधी अर्बन नक्सल बुद्धिजीवियों और जिहादी सोच के साथ एमनेस्टी ने हमेशा सक्रिय सहयोग रखा है, भीमा कोरेगांव हिंसा को लेकर बयान जारी करने की बात हो, सरकार विरोधी आन्दोलन को आग देनी की बात हो या विदेशों में भारत की छवि खराब करने का कोई भी मौका एमनेस्टी कहीं भी चूक नहीं करती। दिल्ली में इसी साल फरवरी में हुए दिल्ली दंगों पर एक रिपोर्ट जारी करके ये साबित करने की कोशिश की गई कि ये दंगे मुस्लिम विरोधी थे, यानि इनमें चुन-चुन कर मुसलमानों को निशाना बनाया गया था। झूठ के कारण भारत की छवि को काफी नुकसान हुआ और पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसी रिपोर्ट का इस्तेमाल भारत के खिलाफ दुष्प्रचार में करता रहा।
एमनेस्टी इंटरनेशनल और उसके पोषक अथवा जुड़े लोग भारत सरकार पर बदले की कार्रवाई का विमर्श चलाते। लेकिन भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि मानवाधिकार संस्था होने का मतलब ये नहीं है कि देश के कानूनों का उल्लंघन किया जाए। भारत में एमनेस्टी इंटरनेशनल की गतिविधियों की जब जांच कराई गई तो पता चला कि इतने वर्षों से ये संस्था अवैध तरीके से भारत में काम कर रही थी। एमनेस्टी को हर वर्ष विदेशों से करोड़ों रुपए का फंड मिलता है। इसके लिए FCRA यानि फॉरेन कॉन्ट्रिब्यूशन रेगुलेशन एक्ट के तहत रजिस्टर होना जरूरी है। लेकिन एमनेस्टी ने ये रजिस्ट्रेशन कराया ही नहीं था और भारत सरकार ने इसी आधार पर एमनेस्टी के सभी बैंक खातों को सीज कर दिया। जांच में ये भी पता चला कि भारत में एमनेस्टी चार अलग-अलग नामों से सक्रिय है। एमनेस्टी पर ऐसे आरोप विदेशों में भी लगे हैं, अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया, रूस, कांगो, श्रीलंका, इजरायल तथा दर्जनों देशों ने संस्था को इसकी असलियत दिखाई है। भारत सरकार की जांच एजेंसी बिना किसी दबाव और परवाह के दूध का दूध और पानी का पानी अलग कर देश विरोधी षड्यंत्रों को सफल नहीं होने देगी।
साभार विसंकें भारत