कट्टरपंथियों ने सामाजिक समरसता के त्यौहारों को भी बना दिया हराम और हलाल

कट्टरपंथियों ने सामाजिक समरसता के त्यौहारों को भी बना दिया हराम और हलाल

अजय सेतिया

कट्टरपंथियों ने सामाजिक समरसता के त्यौहारों को भी बना दिया हराम और हलालकट्टरपंथियों ने सामाजिक समरसता के त्यौहारों को भी बना दिया हराम और हलाल

इस बार होली में बहुत बदमजगी फैली। संभल के सीओ अनुज चौधरी के एक बयान को ऐसे तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया कि जैसे उन्होंने मुसलमानों को कोई धमकी दे दी हो। जब अनुज चौधरी के मुंह में माइक ठूंस दिया गया तो उन्होंने एक नेक सलाह ही दी थी कि जिन्हें होली पसंद नहीं, वे अपने घरों में रहें। यही होता रहा है, कई हिन्दू भी होली का हुड़दंग पसंद नहीं करते तो वे रंग फेंकने वालों से सड़कों पर लड़ते नहीं फिरते, वे उस दिन अपने घरों में रहते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपने पुलिस अफसर का समर्थन करके कोई अपराध नहीं किया, योगी आदित्यनाथ के मुंह में भी माइक घुसा कर उनसे पुलिस अधिकारी के बयान पर प्रतिक्रिया पूछी गई थी। योगी ने वही प्रतिक्रिया दी, जो उन्होंने 2017 में स्वयं कही थी कि जिन्हें होली पसंद नहीं, वे होली के समय अपने घरों में रहें। न तो पुलिस अधिकारी के बयान में कुछ खराबी थी, न मुख्यमंत्री के बयान में। संभल बहुत वर्षों से सांप्रदायिक तनाव का कारण बना हुआ था। अगर अनुज चौधरी का यह बयान न आता कि जिन्हें होली से घृणा है, वे अपने घरों में रहें, तो संभल में जरूर दंगा होता। क्योंकि संभल से हिन्दुओं को सालों साल पलायन करना पड़ा था, उनके मंदिरों कुओं पर कब्जा कर लिया गया था या उन्हें दफन कर दिया गया था। योगी आदित्यनाथ ने हिन्दुओं को वापस लाकर बसाना शुरू किया है। यह सख्ती का ही असर था कि संभल की होली बिना किसी दुर्घटना के शांतिपूर्वक संपन्न हुई।

बयान में खराबी थी तो असदुद्दीन ओवैसी के बयान में थी, जिन्होंने संविधान के अनुच्छेद 25 में मिली मजहबी स्वतंत्रता का प्रश्न उठाया। क्या सारी मजहबी स्वतंत्रता सिर्फ मुसलमानों को ही मिलनी चाहिए, क्या बहुसंख्यक हिन्दुओं को धार्मिक स्वतंत्रता नहीं मिलनी चाहिए। क्या रिलिजन के आधार पर देश का बंटवारा हो जाने के बाद भी देश के हिन्दुओं को अपने ही देश में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार नहीं है। क्या हिन्दुओं को अधिकार नहीं है कि वे बिना रोक टोक होली का त्यौहार मना सकें या हनुमान जयंती और रामनवमी पर जुलूस निकाल सके। असदुद्दीन जैसे मुस्लिम नेता लगातार मुसलमानों को भड़काने का काम कर रहे हैं। देश के कानून इतने कमजोर हैं कि भड़काऊ बयानबाजी करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। असदुद्दीन ओवैसी के भाई अकबरूद्दीन ओवैसी ने 2012 में देश के 80 प्रतिशत हिन्दुओं को चुनौती देते हुए बयान दिया था कि 15 मिनट के लिए पुलिस हटा लो, फिर पता चल जाएगा कि कौन ताकतवर है। आज 2025 आ गया, कोई अदालत उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाई। इससे समाज में बदमजगी फैलाने वालों के हौंसले बढ़ते हैं कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

असदुद्दीन ओवैसी जैसे भारत के कट्टरपंथी मुसलमानों ने होली के त्यौहार को मुस्लिम विरोधी त्यौहार बना कर रख दिया है। ऐसे कट्टरपंथियों को उत्तर मुसलमानों की ओर से ही दिया जाना चाहिए। इस्लाम में कहा गया है कि रंगों का त्यौहार उनके लिए वर्जित है। भारत में जितने भी मुसलमान हैं, वे सभी हिन्दू से मुसलमान बने हैं। सबके पूर्वज हिन्दू थे, जो होली बहुत ही धूमधाम से मनाया करते थे। उन्होंने विवशता में कन्वर्जन के बाद अपनी पूजा पद्दति बदली थी, भारत की सांस्कृतिक परंपराएं नहीं। इसलिए मथुरा वृन्दावन के मंदिरों में जो गीत गाया जाता है- ‘राग रंग गहगड मच्यौ री, नंदराय दरबार, गाय खेलि हंसि लीजिए, फाग बडो त्यौहार, तिन में मोहन अति बने, नाचत है सब ग्वाल।’ यह गीत बेगम ताज का लिखा हुआ है, जो मुस्लिम थीं। उन्हें मुस्लिम मीरा के नाम से जाना जाता है।

रसखान ने लिखा ‘फागुन लाग्यो सखी जबतै, तब तै ब्रज म धूम मची है।’ रसखान के तो होली पर अनेक गीत हैं। नजीर बनारसी ने लिखा- ‘अगर आज भी बोली-ठोली न होगी तो होली ठिकाने की होली न होगी, नजीर आज आएंगे मिलने यकीनन, न आए तो आज उनकी होली न होगी।’ नजीर बनारसी ने ही लिखा- ‘कहीं पड़ी न मोहब्बत की मार होली में, अदा से प्रेम करो दिल से प्यार होली में, गले में डाल दो चाहों का हार होली में, उतारो एक बरस का खुमार होली में, मिलो गले से बार बार होली में।’ सागर निजामी ने लिखा- ‘फसल-ए-बहार आई है होली के रूप में, सोला सिंघार लाई है होली के रूप में, राहें पटी हुई हैं अबीर-ओ-गुलाल से, हक की सवारी आई है होली के रूप में।’ नजीर अकबराबादी ने लिखा- ‘आ धमके ऐश तरब क्या क्या जब हुस्न दिखाया होली ने, हर आन खुशी की धूम हुई, यूं लुत्फ़ जताया होली ने, हर खातिर को खुरसंद किया, हर दिल को लुभाया होली ने।’ लेकिन, घृणा की खेती करने वाले कट्टरपंथियों ने मुसलमानों को इतना गुमराह किया कि त्यौहारों को भी हराम और हलाल बना दिया। अलगाववाद के ऐसे बीज बोए कि देश का बंटवारा हो गया और बंटवारे के बाद भी जो मुसलमान भारत में रह गए हैं, वे एक और बंटवारे की ओर आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन, इसके बावजूद कई अच्छी खबरें भी आती हैं, जो सुकून देती हैं कि मुसलमानों के एक वर्ग में अभी भी ईमान जिंदा है। होली ईश्वर के होने का प्रमाण है, मुसलमान इसे यों मान लें कि होली खुदा के होने का प्रमाण है और होली को उसी तरह मनाएं जैसे हिन्दू मनाते हैं। जैसे उत्तर प्रदेश के ही बाराबंकी से अच्छी खबर आई कि दरगाह में हिन्दुओं और मुसलमानों ने मिल कर होली मनाई। काशी से अच्छी खबर आई कि मुस्लिम और हिन्दू महिलाओं ने मिल कर फूलों की होली खेली और मुस्लिम महिलाओं ने कहा कि यह हमारे पूर्वजों का त्यौहार है, नहीं खेलेंगे तो जन्नत में जाकर क्या उत्तर देंगे।

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *