कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा से सेक्युलर गैंग को मिर्ची क्यों लग रही?
कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा से सेक्युलर गैंग को मिर्ची क्यों लग रही?
कांवड़ यात्रा के दौरान शिवभक्तों पर कुछ फूल क्या बरसे, तथाकथित सेक्युलर गैंग पर अंगारे गिरने लगे। असदुद्दीन ओवैसी जैसे सांप्रदायिक नेता प्रश्न करने लगे कि मुसलमानों के साथ भेदभाव क्यों? स्वाभाविक भी है, क्योंकि स्वाधीनता के बाद से तो यह देश इसी कांग्रेसी सोच पर चल रहा था। देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। फिर ये फूल हिन्दुओं के हिस्से में कैसे आ गए। इन्हीं इस्लामिक आकांक्षाओं के कारण देश बंट गया, लेकिन हिन्दुओं के हिस्से में कांग्रेसी सौजन्य से इस्लाम-परस्त धर्म निरपेक्षता आई। इसी के चलते 2022-23 में सरकार अल्पसंख्यकों पर पांच हजार करोड़ रुपये खर्च करने वाली है। यह अल्पसंख्यक कल्याण का बजट है, जिसका 99 प्रतिशत हिस्सा मुसलमानों के हिस्से में आएगा।
भारत में बहुसंख्यक समाज की इच्छा, आकांक्षा का सम्मान, प्रकटीकरण राजनीतिक रूप से अपराध रहा है। अल्पसंख्यक कल्याण के नाम पर हजारों करोड़ लुटाने वाले इस देश को आदत ही नहीं रही कि हिन्दू के लिए कुछ किया जाए। हिन्दू देवालयों से हजारों करोड़ रुपये हर साल वसूलकर सरकार खर्च कर डालती है। देश के चार लाख मंदिरों पर सरकारी कब्जा है। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्य भी हैं, जो मंदिरों से मिलने वाले पैसे को हज सब्सिडी और मदरसों पर खर्च करते हैं।
तथाकथित बुद्धिजीवी, सेक्युलर, वामपंथी, ईसाईवादी और जिहादी लॉबी को हिन्दुओं के हर त्यौहार, आराध्य, प्रतीक चिह्न से परेशानी है, फिर कांवड़ तो हिन्दू आस्था का सामूहिक प्रकटीकरण है। न कोई छोटा न कोई बड़ा। कांवड़ इसलिए भी खटकती है कि यहां कोई जाति नहीं है, कोई भेद नहीं है, सब भोले हैं। इस बार के कांवड़ मेले ने दस साल का रिकॉर्ड तोड़ा है। इससे पुराना आंकड़ा अभी तक नहीं है। 14 जुलाई से शुरू हुए कांवड़ मेले में 3.80 करोड़ शिवभक्तों ने हरिद्वार से जल भरा। यदि गंगोत्री, गोमुख, ऋषिकेश एवं अन्य स्थलों से जल उठाने वाले शिवभक्तों की संख्या को जोड़ लिया जाए, तो यह किसी भी सूरत में पांच करोड़ से कम नहीं है। यह भी एक संयोग ही है कि 2014 से शिवभक्तों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई। 2013 में जहां सिर्फ 1.95 करोड़ कांवड़ उठाई गईं, 2014 में यह आंकड़ा सीधे 2.65 करोड़ पहुंच गया। 2017 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की विदाई के बाद यह आंकड़ा तीन करोड़ 70 लाख हो गया।
यह स्वतः चलने वाला मेला है। बिना सरकारी इंतजाम और सहायता लिए सैकड़ों किलोमीटर की पद यात्रा। अपने महादेव का जलाभिषेक करने की श्रद्धा लेकर चलने वाला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समूह है। अब चूंकि यह हिन्दू धार्मिक आस्था का प्रतीक है, इसलिए ओवैसी को आपत्ति होना स्वाभाविक है। दरअसल, अपने क्रमवार ट्वीट्स और एक वीडियो में असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि पुलिस वाले कांवड़ियों पर फूल बरसा रहे हैं, पैरों पर लोशन लगा रहे हैं। दिल्ली पुलिस ने कांवड़ियों को परेशान न करने के लिए लोहारों को उनके रास्ते से हटा दिया, यूपी सरकार ने उनके रास्ते में मांस पर प्रतिबंध लगा दिया। यह कौन सी संस्कृति है, क्या यह रेवड़ी संस्कृति नहीं है? ओवैसी ने यह भी कहा कि अगर कोई मुसलमान कुछ मिनटों के लिए भी खुली जगह में नमाज अदा करता है, तो यह एक विवाद हो जाता है। अकेले ओवैसी क्यों, अनेक बेरोजगार पत्रकारों और अवार्ड वापसी बुद्धिजीवियों ने प्रश्न उठाया कि शिवभक्तों पर पुष्प वर्षा में सरकारी पैसा कैसे खर्च हो सकता है।
अब जरा तस्वीर का दूसरा पहलू देखिए। इस देश में अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के नाम पर रेवड़ियां बांटी जाती रही हैं। संविधान की दृष्टि में सभी समान हैं, लेकिन देश में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय है। यह जगजाहिर है कि इस मंत्रालय का नाम भर से पता चलता है कि अल्पसंख्यक कल्याण का मंत्रालय है। इसकी 99 प्रतिशत योजनाओं एवं बजट का लाभ मुसलमान उठाते हैं, लेकिन आज तक देश में किसी ने आपत्ति नहीं की। सरकारें बदलती रहीं, और इस बजट का आकार बढ़ता ही रहा। अल्पसंख्यक मंत्रालय का बजट 2013-14 में तीन हजार एक सौ तीस करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2022-23 में पांच हजार बीस करोड़ रुपये कर दिया गया है। अल्पसंख्यक मामलों के पूर्व मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने लोकसभा में पूरक प्रश्नों के उत्तर में बताया था कि अल्पसंख्यक समुदायों (पढ़ें-मुसलिम) की शिक्षा के लिए 2013-14 में 1888 करोड़ रुपये का बजट आवंटन 2022-23 में बढ़ाकर 2515 करोड़ रुपये किया गया है।
जिसमें शैक्षिक सशक्तिकरण के अंतर्गत अल्पसंख्यक छात्रों के लिए मौलाना आजाद राष्ट्रीय अध्येतावृति योजना, अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित विद्यार्थियों के लिए विदेश में अध्ययन हेतु शैक्षिक ऋण पर ब्याज इमदाद की योजना, अल्पसंख्यक सामुदायों से संबंधित अभ्यर्थी/ विद्यार्थी के लिये नि:शुल्क कोचिंग और सम्बद्ध योजना, संघ लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित प्रारंभिक परीक्षाओं को उतीर्ण करने वाले अल्पसंख्यक छात्रों हेतु सहायता की योजनाएं चल रही हैं। जिनमें आर्थिक सशक्तिकरण के लिए अल्पसंख्यक कौशल विकास, पारंपरिक कलाओं/ शिल्पों के विकास हेतु कौशल विकास एवं प्रशिक्षण योजना, मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय कौशल अकादमी, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं वित्त निगम के माध्यम से रियायती ऋण (एनएमडीएफसी), अल्पसंख्यक महिलाओं में नेतृत्व-क्षमता विकास की योजना आदि प्रमुख हैं।
इनके अतिरिक्त हमारी धरोहर के अंतर्गत भारतीय संस्कृति की समग्र संकल्पना के अधीन भारत के अल्पसंख्यक समुदाय की समृद्ध विरासत संरक्षित करने की योजना, भारत में पारसियों की घटती जनसंख्या को रोकने के लिए केन्द्रीय क्षेत्र की योजना, वक्फ़ प्रबंधन, कौमी वक्फ बोर्ड तरक्कियाती योजना ( राज्य वक्फ बोर्ड के अभिलेखों के कम्प्यूटरीकरण तथा सुदृढ़ीकरण की पूर्ववर्ती योजना), शहरी वक्फ़ संपत्ति विकास योजना ( वक्फ़ को सहायता अनुदान के लिए पूर्ववर्ती योजना : शहरी वक्फ सम्पतियों का विकास), संस्थानों को सहायता के लिए मौलाना आजाद शिक्षा फाउंडेशन के लिए सहायता अनुदान (MAEF), राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं वित्त निगम को इक्विटी, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक विकास एवं वित्त निगम की राज्य एजेंसियों को सहायता अनुदान आदि योजनाएं भी चल रही हैं।
प्रति वर्ष पांच हजार करोड़ रुपये से अधिक का बजट अल्पसंख्यकों के नाम पर खर्च कर दिया जाता है और इन तथाकथित धर्म निरपेक्षों को शिव भक्तों पर कुछ फूल बरस जाने से परेशानी हो रही है।