दिल्ली दंगों का एक साल, कॉल फॉर जस्टिस लड़ेगा पीड़ितों की लड़ाई
नई दिल्ली, 24 फरवरी। दिल्ली दंगों की बरसी पर कॉल फॉर जस्टिस की ओर से एक दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक – दिल्ली दंगे : साजिश का खुलासा – का विमोचन किया गया। पुस्तक में विस्तार से पिछले साल पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के बारे में लिखा गया है।
पुस्तक में बताया गया है कि किस तरह से साजिश के अंतर्गत दंगे भड़काए गए। पहले सत्र का संचालन डॉ. जसपाली चौहान ने किया। मंच पर वरिष्ठ अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा, अधिवक्ता नीरज अरोड़ा, पत्रकार आदित्य भारद्वाज मौजूद थे। कॉल फॉर जस्टिस के संयोजक नीरज अरोड़ा ने दिल्ली दंगों की प्लानिंग और उसको करने के कारणों के बारे में विस्तार से बताया।
अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा ने कार्यक्रम में कहा कि जिस तरह दिल्ली दंगे भड़काए गए, उसी तरह इस साल कृषि कानूनों को लेकर भी किसानों को भड़काया जा रहा है। ग्रेटा थनबर्ग की टूलकिट यदि बाजार में नहीं आई होती तो फिर से दिल्ली दंगों जैसी स्थिति पैदा हो सकती थी। यह शुक्र है कि इस बार ऐसा नहीं हो पाया है। दिल्ली दंगों और किसान आंदोलन के बीच काफी समानता है। दोनों में एक ही तरह का नेतृत्व काम कर रहा था। इन दोनों आंदोलनों में कई चेहरे एक जैसे हैं। पत्रकार आदित्य भारद्वाज ने बताया कि वो खुद उस इलाके में रहते हैं, जहां ये दंगे हुए थे। उनके अनुसार दंगों की योजना बहुत ही बेहतर तरीके से बनाई गई थी। दंगा उस समय शुरू किया गया, जब घरों में पुरुष नहीं थे। जिन दुकानों और जगहों पर हमला किया जाना था, वो पहले से ही तय था। उसके लिए सारे हथियारों की भी व्यवस्था की गई थी।
पुस्तक के लेखक मनोज वर्मा ने बताया कि दिल्ली दंगों की साजिश एक अंतरराष्ट्रीय साजिश थी। जिसको कई महीनों पहले प्लान कर लिया गया था। पुस्तक के अन्य लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप महापात्रा ने बताया कि जब कोर्ट में सीएए को लेकर 150 से ज्य़ादा पिटिशन लगी हुई थीं, तो उस समय योजनाबद्ध तरीके से दंगे कर कानून को प्रभावित करने के प्रयास किए गए।
न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) प्रमोद कोहली ने भावुक होते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर से होने के नाते वह जानते हैं कि दंगा क्या होता है। बहन-बेटियों की अस्मत लूटी गई। लोगों की हत्याएं हुईं। दिल्ली दंगा पीड़ितों की दास्तां सुन कर ऐसा लग रहा है कि इनके साथ इंसाफ नहीं हो रहा है। हम न्याय के लिए संबंधित लोगों तथा आर्थिक सहायता के लिए सरकार तक इनकी बात पहुंचाएंगे। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एमसी गर्ग ने कहा कि अगर पीड़ित परिवार अपनी समस्याओं की रिपोर्ट “कॉल फार जस्टिस’ को भेजें तो हम उनकी लड़ाई लड़ेंगे। आईपीएस बोहरा – पीड़ित को अगर लगता है कि दबाव में बयान लिया गया है तो वो अपना बयान बदल सकते हैं।