जहां न पहुंचे कवि और रवि वहां पहुंचे कोरोना
शुभम वैष्णव
कहावत है कि जहां ना पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि। परंतु आज के दौर में यह कहावत कुछ यूं है कि जहां न पहुंचे कवि और रवि वहां पहुंचे कोरोना। कोरोना अब घर-घर दस्तक दे रहा है। वह ऐसे लोगों का हाथ थामने की जुगत में घर के बाहर बैठा है जो मास्क नहीं लगाते, बार बार साबुन से हाथ नहीं धोते और सामाजिक दूरी का पालन भी नहीं करते हैं।
अब तो सच में लगने लगा है कि कोरोना एक वायरस नहीं बल्कि एक पहेली है। सुना है इसके अलग अलग स्ट्रेंस का पता चला है यानि यह अपने रूप बदल रहा है। एक तरफ लोगों में कोरोना का खौफ दिख रहा है तो कुछ अलमस्ती में हैं। कोई पापड़ खाकर कोरोना से ठीक होने की बात कह रहा है तो कोई कोरोना के फैलने के अलग-अलग तरीके बता रहा है। लेकिन कुछ लोगों ने इस दौर को भी देश सेवा के अवसर के रूप में लिया। उन्होंने राशन, पानी, दवाइयॉं और कपड़े आदि तो वंचितों तक पहुंचाए ही लेकिन कुछ ने उनसे भी आगे बढ़कर दुनिया को इस महामारी के कहर से बचाने के लिए बनने वाली वैक्सीन के ट्रायल के लिए अपनी देह ही दान दे दी। दूसरी ओर कुछ समाज तोड़क इस मौके पर भी अपनी राजनीति चमका रहे हैं।
लेकिन कोरोना है कि सबको अपनी चपेट में लेने की जिद पर अड़ा हुआ है। अब यह समय समझदारी का है क्योंकि कोरोना वायरस ज्यादा समझदार हो गया है जबकि लोग नासमझ होते जा रहे हैं।