खड्ग है यदि हाथ में, तो संधि के प्रस्ताव होंगे (कविता)

खड्ग है यदि हाथ में, तो संधि के प्रस्ताव होंगे (कविता)

सेवा निवृत कर्नल विवेक प्रकाश सिंह

खड्ग है यदि हाथ में, तो संधि के प्रस्ताव होंगे (कविता)

बल भुजाओं में है तो
मंगल सभी उद्भाव होंगे,
खड्ग है यदि हाथ में
तो संधि के प्रस्ताव होंगे।।

विनय का औचित्य तब
जब शक्ति का स्वामी है तू ,
शांति का अस्तित्व तब
जब प्रलय पथगामी है तू ।।

छद्म की पहचान कर
निज धर्म का तू मान कर,
बोधकर षड्यंत्रों का
रणचंडी का आह्वान कर।।

तू सबल है तो निरंतर
प्रेम निर्झर द्राव होंगे,
खड्ग है यदि हाथ में
तो संधि के प्रस्ताव होंगे।।

क्षीण आशंकित रहेंगे
तू शिथिल होना नहीं,
वो द्रवित तुझको करेंगे
तू भ्रमित होना नहीं।।

आस्थाओं पर टिका रह
कर्मरत हो कर जुटा रह,
प्रण का तू संज्ञान करके
धर्म से अपने जुड़ा रह।।

समय परिवर्तन का है तो
कुछ कठिन आभाव होंगे,
खड्ग है यदि हाथ में
तो संधि के प्रस्ताव होंगे।।

हँस रहा इतिहास हम पर
भूलते जिसको निरंतर,
हो पृथक अपनी जड़ों से
खा रहे क्रमशः हैं ठोकर।।

कर्म और निष्ठा से च्युत
फिर गर्व क्या अभिमान क्या,
धर्म और संस्कृति से च्युत
तेरी भला पहचान क्या।।

हो सजग अब तो अपितु
प्रस्तुत कुटिल समभाव होंगें,
खड्ग है यदि हाथ में
तो संधि के प्रस्ताव होंगे।।

शत्रु की संख्या अधिक है
मित्र शंका से व्यथित है,
करना है निश्चित हमें बस
राष्ट्र हित में जो उचित है।।

हो रहा है नव सवेरा
तम का अब टूटेगा घेरा,
रह अडिग प्रण पर तू अपने
स्वप्न हो साकार तेरा।।

कर सबल तू स्वतः को
खंडित सभी दुर्भाव होंगे,
खड्ग है यदि हाथमें तो
संधि के प्रस्ताव होंगे।।

(कर्नल विवेक प्रकाश सिंह, हाल ही में भारतीय सेना से सेवानिवृत हुए हैं। सेवानिवृत्ति के पश्चात् वे अपनी साहित्यिक रुचि को एक नया आकार देने के प्रयास में हैं। ‘ज़िंदगी आज मुझे जीने दे’ की सफलता के पश्चात ‘निनाद’, ‘आ तेरा शृंगार कर दूँ’ और ‘अंतर्द्वन्द्व’ नाम के काव्य संकलनों के संपादन में व्यस्त हैं)

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