खालिस्तान : कांग्रेस और उसकी राजनीति (भाग 2)
खालिस्तान : कांग्रेस और उसकी राजनीति (भाग 2)
जरनैल सिंह भिंडरावाले को किसने तैयार किया?
1977 में पंजाब में विधानसभा चुनाव हारने के बाद, ज्ञानी जैल सिंह ने संजय गाँधी को एक सलाह दी। उन्होंने दो सिक्ख संतों के नाम उन्हें सुझाए, जिनमें से एक दमदमी टकसाल गुरुद्वारा दर्शन प्रकाश का जत्थेदार और दूसरा जरनैल सिंह भिंडरावाले था। उसे यह गद्दी पूर्व जत्थेदार, संत करतार सिंह की अमृतसर में एक सड़क दुघर्टना में मृत्यु के बाद मिली थी।
कुलदीप नायर अपनी पुस्तक, ‘Beyond the Lines, An Autobiographyʼ में लिखते हैं, “संजय गांधी के दोस्त, संसद सदस्य कमलनाथ याद करते हैं, पहले संत से जब हम मिले तो वे साहसी कम दिखाई दिये। भिंडरावाले की आवाज में दम था और वह हमें काम का आदमी लगा। हम उसे कभी–कभार पैसे भी दिया करते थे, लेकिन हमने यह नहीं सोचा था कि वह आतंकवादी बन जायेगा।”
जीबीएस सिंधु अपनी पुस्तक ‘The Khalistan Conspiracyʼ में आगे लिखते हैं, “संजय गाँधी को जरनैल सिंह भिंडरावाले के धार्मिक कार्य में कोई रुचि नहीं थी। वे तो उसका इस्तेमाल सिक्ख जनता को रिझाने और अकाली दल को सत्ता से हटाने के लिए करना चाहते थे।” आमतौर पर इन सभी षड्यंत्रों का केंद्र दिल्ली स्थित 1, अकबर रोड का बँगला हुआ करता था, जिसे कई लेखकों ने ‘अकबर रोड गैंगʼ की भी संज्ञा दी है।
भिंडरावाले का इस्तेमाल कांग्रेस (आई) द्वारा 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों के प्रचार में भी किया गया था। इसमें अमृतसर से पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष आरएल भाटिया, गुरुदासपुर से सुखबंस कौर भिंडर (पंजाब के डीजीपी, प्रीतम सिंह भिंडर की पत्नी), और तरणतारण से गुरदयाल सिंह ढिल्लो (लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष, 1969-1971; 1971-1975) शामिल थे। मार्क टुली और सतीश जैकब अपनी पुस्तक ‘Amritsar: Mrs Gandhiʼs Last Battleʼ में लिखते हैं कि इन प्रत्याशियों ने अपने चुनावी पर्चों तक में यह लिखवाया हुआ था कि ‘भिंडरावाले का हमें समर्थन मिला हुआ है।ʼ
ढिल्लो यह चुनाव अकाली दल के प्रत्याशी से हार गए और उन्हें इंदिरा गाँधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद कनाडा का भारतीय राजदूत बनाकर भेजा था, जबकि वहां उस समय खालिस्तानी अलगाववाद अपने चरम पर पहुंचा हुआ था। ढिल्लो के भिंडरावाले के साथ संबंध पहले ही सार्वजनिक हो गए थे। इसलिए यह कोई अचानक बना संयोग तो नहीं बल्कि जानबूझकर किया गया कृत्य अधिक लगता है।
लोकसभा चुनावों में इंदिरा गाँधी की जीत के साथ ही तत्कालीन पंजाब सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। वहां विधानसभा के फिर से चुनाव हुए और इस बार कांग्रेस जीत गई। इंदिरा गाँधी ने ज्ञानी जैल सिंह के प्रतिद्वंदी दरबारा सिंह को मुख्यमंत्री बनवा दिया। ज्ञानी जैल सिंह को केंद्र में गृहमंत्री का पद मिल गया। केंद्र और राज्य दोनों स्थानों पर कांग्रेस की सरकार होने के बाद भी पंजाब में लॉ एंड आर्डर की स्थिति दिन–प्रतिदिन बिगड़ती चली गयी। खालिस्तानी चरमपंथी आये दिन किसी–न–किसी प्रमुख व्यक्ति की हत्या करते रहे और केंद्र की कांग्रेस सरकार के इशारे पर उन्हें रोकने के प्रयासों में लगातार नीरसता दिखाई देने लगी।
उन दिनों पंजाब केसरी आमतौर पर भिंडरावाले अथवा खालिस्तान के विरुद्ध अधिक लिखता था। इसलिए समाचार–पत्र के संस्थापक लाला जगत नारायण की भिंडरावाले के समर्थकों ने 9 सितंबर 1981 को हत्या कर दी। उसी दिन भिंडरावाले, हरियाणा के हिसार में मौजूद था। मुख्यमंत्री दरबारासिंह ने डीआईजी ऑफ पुलिस, डीएस मंगत को तुरंत हिसार जाकर भिंडरावाले को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। कुलदीप नायर इस संदर्भ में लिखते हैं, “ज्ञानी जैल सिंह ने हरियाणा के मुख्यमंत्री भजन लाल को फोन कर संदेश भेजा कि न उन्हें इस मामले में फंसना है और न ही भिंडरावाले को गिरफ्तार होने देना है।” सतीश जैकब आगे की जानकारी देते हुए लिखते हैं कि इस एक फ़ोन के बाद स्वयं भजनलाल ने अपने अधिकारियों को भिंडरावाले को जितना संभव हो सके, वहां तक सकुशल छोड़ने के आदेश दिये थे। इस प्रकार भिंडरावाले को 300 किलोमीटर दूर अमृतसर में उसके गुरुद्वारे तक सुरक्षित पहुंचा दिया गया।
भिंडरावाले की गिरफ्तारी को लेकर दरबारा सिंह एकदम अड़े हुए थे। उन्होंने पंजाब के मुख्य सचिव को एसके सिन्हा से मिलने के लिए भेजा। सिन्हा उस दौरान सेना में पश्चिमी कमांड के लेफ्टिनेंट जनरल पद पर तैनात थे। उन्होंने, पंजाब के मुख्य सचिव को बताया कि यह सेना का काम नहीं है।जीबीएस सिंधु लिखते हैं, “दो दिन बाद सिन्हा को प्रधानमंत्री कार्यालय से भिंडरावाले को गिरफ्तार करने का संदेश मिला। उन्होंने रक्षामंत्री आर वेंकटरमन से इस मामले पर चर्चा की। अगले दिन रक्षामंत्री ने सिन्हा को निर्देश दिए कि सेना को नहीं बल्कि स्थानीय पुलिस को इस काम के लिए लगाया जाएगा।”
विमान अपहरण
आखिरकार, एक लंबे गतिरोध के बाद भिंडरावाले को गिरफ्तार नहीं बल्कि बातचीत के माध्यम से समर्पण करने के लिए मना लिया गया। उसे पहले फिरोजपुर जेल और बाद में लुधियाना के एक रेस्ट हाउस में नजरबंद किया गया। कुछ दिनों बाद, 29 सितंबर 1981 को समाचार आया कि दिल्ली से अमृतसर होते हुए श्रीनगर जा रहे इंडियन एयरलाइन के एक विमान का दल खालसा के पांच चरमपंथियों ने अपहरण कर लिया है। तब विमान में 117 यात्री सवार थे। उन सभी को विमान सहित लाहौर ले जाया गया। अपहरणकर्ताओं ने इन यात्रियों की रिहाई के बदले भिंडरावाले की रिहाई की मांग की। हालांकि, पाकिस्तानी सरकार ने कार्यवाही करते हुए विमान को यात्रियों सहित उनके चंगुल से छुड़ा लिया।
चौधरी चरण सिंह ने आनंद बाजार पत्रिका के एक अंक का हवाला देते हुए लोकसभा में 27 अप्रैल 1983 को बताया कि इस विमान अपरहण के अपहरणकर्ताओं को ज्ञानी जैल सिंह का समर्थन प्राप्त था। उन्होंने कहा, “हाईजैकिंग करने वाले लोगों में, उनका जो लीडर था, वह गिरफ्तार हो गया। पुलिस के सामने उसने जो कंफेशन किया और कहा कि हमारे 17 बहुत बड़े–बड़े एक्टिव सिम्पेथाइजर्स हैं। ये 17 ऑफिसर्स, जिनमें लीडिंग पब्लिक लाइफ के लोग थे, उसने उनके नाम बताए। ये लोग ज्ञानी जैल सिंह के दोस्त हैं, उनके अजीज हैं, उनके appointee हैं।” चौधरी चरणसिंह को लोकसभा में अपने इस भाषण के बाद जान से मारने कि धमकी का एक पत्र मिला। उस पर पता – दल खालसा, कमरा नंबर 32, गुरु नानक निवास था।
विमान अपहरण के बदले भिंडरावाले को रिहा करने का षड्यंत्र सफल न हो सका। इस पर आगे की जानकारी देते हुए मार्क टुली लिखते हैं, कि पंजाब के एक कांग्रेस नेता और दिल्ली सिख गुरुद्वारा कमेटी के अध्यक्ष संतोख सिंह ने प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से मुलाकात कर भिंडरावाले की रिहाई का दबाव बनाया। उसने प्रधानमंत्री को धमकी दी कि अगर भिंडरावाले को रिहा नहीं किया गया तो दिल्ली सिक्ख गुरुद्वारा कमेटी कांग्रेस की वफादार नहीं रहेगी।
इस तरह के छोटे–मोटे राजनैतिक फायदे के लिए कांग्रेस ने न्याय को ताक पर रख दिया। यह कहने में कोई जल्दीबाजी नहीं है कि इस एक गलती ने प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की मौत की भी पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी। जल्दी ही, बेचैन हो रहे गृहमंत्री, जैल सिंह ने संसद में बयान दिया कि भिंडरावाले को हम रिहा कर देंगे।….और एक महीने से भी कम समय तक नजरबंद रहने के बाद, भिंडरावाले 15 अक्टूबर 1981 को रिहा हो गया। उस दिन भिंडरावाले के स्वागत के लिए स्वयं संतोख सिंह आया था। (लोकसभा में 1 दिसंबर 1981 को समर मुखर्जी का वक्तव्य) हालाँकि, 22 दिसंबर 1981 को संतोख सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गयी। हाल ही में, कांग्रेस की सरकार में पंजाब के उप–मुख्यमंत्री (20 सितंबर 2021 से 16 मार्च 2022) बने सुखजिंदर सिंह उनके ही बेटे हैं।
हत्या, गिरफ्तारी, विमान अपहरण, प्रधानमंत्री की भागीदारी और रिहाई ने जरनैल सिंह भिंडरावाले को आवश्यकता से अधिक प्रचारित कर दिया था। इस तेजी से उभरती लोकप्रियता से अकाली दल को भी खतरा महसूस होने लगा।
क्रमश: