गणतंत्र की जननी भारत माता
हमारा देश भारत विश्व का सबसे बड़ा गणतंत्र है- यह एक बहुश्रुत तथ्य है। किंतु गणतंत्र की जननी भी हमारी भारत माता है- इस तथ्य को भी जानने और मान देने की आवश्यकता है।
1947 में ब्रिटिश शासन से मुक्त हुए भारत ने 26 जनवरी 1950 को अपना संविधान और स्वयं की गणतंत्र प्रणाली लागू की। नव स्वतंत्रता प्राप्त भारत ने देश के प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार दिए और अपने हर नागरिक का मत महत्वपूर्ण माना। गणतंत्र के संस्कार इस भूमि में सदा से विद्यमान हैं। प्राचीन भारत में लोकतंत्र तथा गणराज्य व्यवस्था के विकसित रूप प्रचलित थे। यहाँ तक कि भारत के राजतंत्र में भी राजा कभी निरंकुश नहीं होता था अपितु उस पर धर्म का नियंत्रण रहता था। वह राज्य के विद्वानों तथा मंत्रिपरिषद के परामर्श से निर्णय लेता था। सभी समाजों के, जनजातियों के अपने-अपने मुखिया होते थे। इनकी बात का भी सम्मान रखा जाता था।
प्राचीन गणतंत्र को देखें तो वैदिक उल्लेखों में स्थूल रूप में 2 प्रकार की गणतांत्रिक शासन व्यवस्थाएँ सामने आती हैं-प्रथम, जिसमें राजा निर्वाचित होता था। इसे लोकतंत्र का आदि स्वरूप माना जा सकता है तथा दूसरा, जिसमें राज्य की संपूर्ण शक्ति राजा या सम्राट में नहीं अपितु परिषद या सभा में निहित होती थी। इस सभा में अपने कर्मों के कारण समाज में सम्मान प्राप्त व्यक्ति सम्मिलित होते थे।
नीति, सैन्य तथा महत्त्वपूर्ण विषयों पर विमर्श करने वाली गणतांत्रिक इकाई ‘विदथ’ का उल्लेख ऋग्वेद में है। इन चर्चाओं में स्त्री व पुरुष, दोनों ही भाग लेते थे। महाभारत में गणों की विशेषताओं पर विस्तृत चर्चा हुई है। बौद्ध ग्रन्थों व जैन ग्रन्थों में भारत के प्राचीन महाजनपदों के रूप में गणराज्यों का व्यापक वर्णन है।
दक्षिण के चोल, चेर , पांड्य इत्यादि राज्यों में राज्य के भीतर आत्मनिर्भर तथा स्वनिर्णय की शक्ति से युक्त ग्राम इकाइयों के उल्लेख प्राप्त होता है।
वस्तुतः लोकतंत्र या गणतंत्र प्रत्येक नागरिक के अस्तित्व को गरिमा प्रदान करने वाली प्रणाली है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में “हम भारत के लोग” अर्थात भारत के सभी नागरिक मिलकर इस देश को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने की उद्घोषणा करते हैं। हम अपने हृदय में भारत भूमि के प्रति कृतज्ञता का भाव धारण करें और हमारा गणतंत्र पूरे विश्व के लिए आदर्श के रूप में प्रस्तुत हो।